रविवार, 12 मई 2013

मातृ दिवस आया है

माँ को याद करने के बहाने ढूँढते हैं अब
जैसे अपने ही घर का पता पूछते हैं अब

चलने-फिरने से भी कभी बेज़ार थे
आँचल से निकल दुनिया घूमते हैं अब

तूने अपना सब कुछ दिया बिना शर्त
अपने पास तेरे लिए न वख्त है अब

खुदगर्जी के रंग में सबने खुद को रंग लिया 
माँ, तू न जाने किस ज़माने में जीती है अब  

वख्त तो करवट बिन आवाज़ बदलता है
दुनिया बदली, तू क्यों नहीं बदले है अब

बूढी हो गयीं हैं तेरे माथे की सलवटें माँ
पर तेरी आँखों में सितारे नज़र आते हैं अब  

तेरी दुआ तो हर पल रहती थी साथ मेरे 
दुश्मनों के माँ की दुआएं भी मेरे साथ हैं अब 

- वाणभट्ट 

8 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार !
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (13-05-2013) के माँ के लिए गुज़ारिश :चर्चा मंच 1243 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ |

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  2. वख्त तो करवट बिन आवाज़ बदलता है
    दुनिया बदली, तू क्यों नहीं बदले है अब ...

    माँ ही है जो नहीं बदलती कभी ... विशष कर अपने बच्चों के साथ ...

    जवाब देंहटाएं
  3. माँ को याद करने के बहाने ढूँढते हैं अब
    जैसे अपने ही घर का पता पूछते हैं----
    वर्तमान में यही तो हो रहा है,बहुत सच्ची और सार्थक रचना
    बधाई

    आग्रह है "उम्मीद तो हरी है" का अनुसरण करें
    http://jyoti-khare.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुन्दर, आज का यथार्थ

    जवाब देंहटाएं

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

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