माँ को याद करने के बहाने ढूँढते हैं अब
जैसे अपने ही घर का पता पूछते हैं अब
चलने-फिरने से भी कभी बेज़ार थे
आँचल से निकल दुनिया घूमते हैं अब
तूने अपना सब कुछ दिया बिना शर्त
अपने पास तेरे लिए न वख्त है अब
खुदगर्जी के रंग में सबने खुद को रंग लिया
माँ, तू न जाने किस ज़माने में जीती है अब
वख्त तो करवट बिन आवाज़ बदलता है
दुनिया बदली, तू क्यों नहीं बदले है अब
बूढी हो गयीं हैं तेरे माथे की सलवटें माँ
पर तेरी आँखों में सितारे नज़र आते हैं अब
तेरी दुआ तो हर पल रहती थी साथ मेरे
दुश्मनों के माँ की दुआएं भी मेरे साथ हैं अब
- वाणभट्ट
मां को नमन।
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (13-05-2013) के माँ के लिए गुज़ारिश :चर्चा मंच 1243 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ |
वख्त तो करवट बिन आवाज़ बदलता है
जवाब देंहटाएंदुनिया बदली, तू क्यों नहीं बदले है अब ...
माँ ही है जो नहीं बदलती कभी ... विशष कर अपने बच्चों के साथ ...
कुछ वक्त,दें सकें
जवाब देंहटाएंमाँ को याद करने के बहाने ढूँढते हैं अब
जवाब देंहटाएंजैसे अपने ही घर का पता पूछते हैं----
वर्तमान में यही तो हो रहा है,बहुत सच्ची और सार्थक रचना
बधाई
आग्रह है "उम्मीद तो हरी है" का अनुसरण करें
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत सुंदर गज़ल
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर, आज का यथार्थ
जवाब देंहटाएं