रविवार, 21 जुलाई 2019

ब्रह्मा जी की खूँटी

ब्रह्मा जी की खूँटी

उसकी साँसें धीरे-धीरे कम होती जा रहीं थीं। नब्ज़ का भी पता नहीं लग रहा था। तभी उसे दुमची (टेल बोन) के अंतिम बिन्दु पर एक तीव्र प्रकाश का अनुभव हुआ जो ऊपर की ओर उठता चला आ रहा था। देखते ही देखते वो प्रकाश शरीर के उच्चतम शिखर तक पहुँच गया था। अन्तर में पूरा का पूरा शरीर दैदीप्यमान होकर चमक रहा था। उस ज्योति का अनुसरण करते करते उसकी आँखे भ्रूमध्य ऊपर कहीं जा कर अवस्थित हो गयी थीं। ब्रह्मकमल सामने था। वो पूर्णतः आकाश तत्व में विलीन हो गया था। उसका शरीर बोध समाप्त हो चुका था।

मेडिसिन में एम.डी., डॉ. दिनकर शर्मा को कानपुर आये हफ़्ता नहीं बीता होगा। नया शहर - नये लोग। जानने - समझने में  जीवन के कुछ साल और निकल जायेंगे। ट्रांस्फरेबल पोस्ट का यही एक फ़ायदा है। जगह बदल जाती है। हर स्थान पर एक नया जन्म। और वो भी पिछले जन्म (पोस्टिंग) के कर्म-अकर्म से निर्लिप्त। ये उनकी वृहद सरकारी सेवा की आखिरी पोस्टिंग थी। हर बार की तरह इस बार भी शुरुआत शहर के दर्शनीय स्थलों के भ्रमण से ही होनी थी।

किसी ने उन्हें ब्रह्मावर्त जाने के लिये बता दिया। बहुत ही पवित्र जगह है। बिठूर का ऐतिहासिक महत्त्व होने के साथ साथ पौराणिक महत्त्व भी है। रानी लक्ष्मीबाई का बाल्यकाल यहीं पर बीता था। स्वतंत्रता सेनानी नाना साहब और तात्याटोपे की ये कर्मस्थली भी रही है। सीता माता के भगवान राम द्वारा परित्याग के पश्चात बिठूर स्थित वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में लव-कुश का जन्म हुआ था। ध्रुव ने यहीं पर अपनी तपस्या से दैवीय तारे के रूप में चमकने का वरदान पाया था।

विज्ञान और चिकित्सा के परा-स्नातक होने के नाते शर्मा जी के धर्म-कर्म का ज्ञान बस वहीं तक सीमित था जितना एक पण्डित परिवार के परिवेश में बिन प्रयास के मिल जाता है। श्लोक-दोहे-चौपाइयाँ उन्हें कंठस्थ थे। लेकिन उसी तरह जैसे तोता रट तो लेता है लेकिन उसके अर्थ और भाव से अनजान रहता है। पढ़ाई के दौरान घर से दूर रहने के कारण उनका दृष्टिकोण दकियानूसी नहीं रह गया था। देश-विदेश की यात्राओं ने भी उनके ज्ञान चक्षुओं को और खोल दिया था। आस्था-आत्मा-परमात्मा से उनका ज़्यादा लेना-देना नहीं था। हर चीज़ को तर्क की कसौटी पर परखने की आदत, बीमारी की हद तक उनमें प्रवेश कर चुकी थी। क्यों-कहाँ-कैसे किये बिना उन्हें संतोष न मिलता। बिठूर के बारे में भी उनका विचार था कि पत्नी शारदा देवी के साथ एक आउटिंग हो जायेगी और गंगा स्नान भी। जैसे इतनी जगह देखी हैं, ये भी सही। 

स्नान के पश्चात ब्रह्मावर्त घाट की सीढियाँ चढ़ते हुये उनका ध्यान छोटे से मन्दिर की ओर अनायास चला गया। लिखा था "ब्रह्मा जी की खूँटी"। उत्सुकता वश वो उस मन्दिर के पास पहुंच गये। मन्दिर में बैठे बच्चे टाइप के पुजारी ने बिना किसी भूमिका के कहना शुरू कर दिया - दर्शन कर लो। यहाँ तक आने के बाद यदि इसका दर्शन नहीं किया तो क्या लाभ। 

किसी भी तीर्थ स्थान या मन्दिर जाने पर ये फिलिंग हर पढ़े-लिखे इंसान में आती है कि धर्म के नाम पर बेवकूफ़ बना कर हर कोई पैसा वसूलना चाहता है। खूँटी पूरी तरह से फूलों से ढँकी हुयी थी। चूँकि पहली बार बिठूर आना हुआ था इसलिये शर्मा जी के लिये - ये क्या बला है - जानना ज़रूरी था। बीस का नोट उन्होंने बच्चे के सामने ही पुष्प के ऊपर रख दिये। उसने छोटी सी छड़ी से फूलों को एक ओर सरका दिया। बमुश्किल आधे इंच की चाँदी जड़ित एक खूँटी फूलों के नीचे से निकल आयी। उस पुजारी रूपी बच्चे ने रटे-रटाये शब्दों में उस खूँटी का महात्म्य बताना शुरू कर दिया।

यही वो जगह है जहाँ ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करने से पूर्व 99 साल तक तपस्या की थी। तपस्या करके जब वो उठने लगे तो उनके दाहिने पैर की खड़ाऊँ इसी जगह धँस कर पाताल तक पहुँच गयी और उनके अनेक प्रयासों के बाद भी नहीं निकल पायी। ये जो चाँदी की परत में लिपटी आधे इन्च का खूँटी जैसी चीज़ दिखायी दे रही है, ये उसी खड़ाऊँ का अँगूठा है। ये खूँटी ही समस्त ब्रह्माण्ड का केन्द्र है। इसके दर्शन मात्र से आपकी सभी मनोकामनायें पूरी हो जायेंगी। 

चित्र : सौ. भास्कर.कॉम
जल्दी शादी के कुछ फ़ायदे भी होते हैं। शर्मा जी का विवाह तभी हो गया था जब वो बीएससी कर रहे थे। उसके बाद एमबीबीएस व एम.डी. की पढ़ाई उन्होंने मैरिड हॉस्टल से ही की। आज उनके दोनों बेटा-बेटी अपनी-अपनी शिक्षा लेकर विवाहोपरान्त यूएस में सेटल थे। पत्नी के साथ जीवन सकुशल व्यतीत हो रहा था। ऐसे में उनके पास माँगने के लिये कोई ख़ास मनोकामना नहीं बची थी। उन्होंने खूँटी को मस्तक नवाया और बढ़ लिये। मन ही मन वो मुस्कुरा रहे थे कि हमारे देश में आस्था के नाम पर किस तरह अंध-विश्वास फैलाया जाता है।  

जीवन अपनी रफ़्तार से चलता रहता है। डॉक्टर साहब तो हर जगह व्यस्त हो जाते अपने काम में लेकिन उनकी पत्नी शारदा के लिये समय काटना थोड़ा मुश्किल हो जाता। ऑफिसर्स कॉलोनी की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि कोई आपके ऊपर है या कोई आपके नीचे। हर किसी से खुल कर घुल-मिल भी नहीं पाते। ऐसे में आदमी कितना टीवी देखे। वैसे भी आधा जीवन तो व्यतीत ही हो चुका था। दिन पर दिन रोज-रोज उफ़ान मारने वाले शौक़ भी कम होते जा रहे थे। बगल के वर्मा जी और उनकी मिसेज़ हर सन्डे किसी सत्संग में जाया करते थे। मिसेज़ वर्मा थोड़ी सात्विक प्रवृत्ति की महिला थीं। इसलिये जब भी मिलती थीं तो शर्माइन से ध्यान-योग की बातें किया करतीं थीं। ये बातें शारदा जी की समझ से परे थीं। उनके लिए तो घर में स्थापित मंदिर को फूल-धूप दिखा देना, हनुमान चालीसा और सुन्दर काण्ड पढ़ लेना, आरती गा लेना ही अल्टीमेट पूजा थी। एक बार जब शर्मा जी टूर पर थे तो उन्हें वर्माइन के साथ उनके सत्संग जाने का मौका मिला। बेसिकली वो एक ध्यान केन्द्र था। जहाँ कोई चेला गुरु के उद्बोधन को पढता फिर सब लोग ईश ध्यान के प्रयास में लग जाते। ध्यान, आत्म-साक्षात्कार की दिशा में पहला सोपान माना जाता है। इस गहरे गूढ़ शब्द का मतलब शर्माइन को ज़्यादा तो समझ नहीं आया लेकिन स्थिर होकर ध्यान में बैठने का आनन्द अनिर्वचनीय था। यदा-कदा जब भी उन्हें मौका मिलता वो वर्मा परिवार के साथ हो लेतीं। लेकिन धीरे-धीरे वो इस ग्रुप की नियमित सदस्या बन गयीं।   

कभी-कभी अपने इस आनन्द का वर्णन वो पंडित जी से भी कर देतीं। शर्मा जी पढ़े-लिखे व्यक्ति थे। पत्नी के आनन्द को टाइम-पास का तरीका मान कर हलके से उड़ा दिया। पढ़ने-लिखने के बाद लोगों को जबानी बातें समझ नहीं आतीं। कुछ भी लिख कर या छाप कर दे दीजिये, तो वो पढ़ डालेंगे। मानें शायद फिर भी नहीं, लेकिन उसकी समीक्षा जरूर करेंगे। शारदा देवी सतसंग में उपलब्ध लाइब्रेरी की पुस्तक/पत्रिकायें अक्सर घर ले आतीं। जिन्हें शर्मा जी भी कभी-कभार पलट लेते। हर खोज की जड़ क्यूरॉसिटी से शुरू होती है। शर्माइन ने शर्मा जी में जिज्ञासा तो जगा दी थी। एक दिन उन्होंने भी साथ चलने की इच्छा जता दी। 

नशा चाहे अफीम का हो या आध्यात्मिकता का, सर चढ़ के ही बोलता है। नया मुल्ला वैसे भी प्याज ज़्यादा खाता है। शर्मा जी ने ध्यान को दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बना लिया। सुबह-शाम बिना ध्यान के उन्हें अधूरा सा लगता। अपने व्यस्त शेडयूल में भी जब मौका मिलता वो ध्यान के लिए समय निकालने लगे। अब उनके अध्ययन कक्ष में सिर्फ आश्रम की पुस्तकें ही होतीं। उन में दिये निर्देशों को आत्मसात करने में वो लगे रहते। उनकी दिनचर्या में आये परिवर्तन से पंडिताइन भी परेशान हो जातीं। उन्हें लगता कहीं ये घर-बार से विरक्त न हो जायें। लेकिन शर्मा जी के मन में ऐसा विचार शायद ही आया हो। दिन-रात जब भी मौका मिल जाये शर्मा जी अपनी आत्मसाक्षात्कार की पद्यति को आरम्भ कर देते। उनके गुरु का कहना था - जिस व्यक्ति को भगवान के होने पर भी संदेह है आत्मसाक्षात्कार की स्थिति में वो अपने ही भगवत स्वरुप के दर्शन करेगा। बस निरन्तर भगवान की प्रार्थना करते रहना चाहिये।     

रात तीन बजे उनकी निन्द्रा अचानक टूट गयी थी। अन्दर से ध्यान की तीव्र इच्छा हो रही थी। वो अपनी ध्यान की आसनी पर स्थिर हो बैठ गये। मानो आज बिना दर्शन के नहीं उठेंगे। उन्होंने गुरु की बतायी प्रक्रिया पर अपना ध्यान लगा दिया।  

धीरे-धीरे उनकी साँसें कम होने लगीं। नब्ज़ भी गिरने लगी। तभी उन्हें मेरुदंड के सबसे निचले हिस्से में एक लाल रंग का तीव्र प्रकाश दिखा जो निरन्तर ऊपर की ओर उठता चला आ रहा था। विभिन्न चक्र इंद्रधनुषी रंग के प्रकाश से दैदीप्यमान हो गये। उनके चक्षु सहस्रार पर स्थित तीक्ष्ण श्वेत प्रकाश का अनुसरण करते हुये ऊपर कूटस्थ में टिक गयी थी। पहली बार उन्हें पाँच पंखुड़ियों वाले ब्रह्मकमल के दर्शन हुये। शरीर का बोध एकदम समाप्त हो चुका था। उनका शरीर पूर्णतः आकाश तत्व के साथ एकाकार हो चुका था। समस्त ब्रह्मांड उनके चारों ओर विस्तारित होता दिखायी दे रहा था। वो पुनः अपने सभी चक्रों का निरिक्षण कर सकते थे। टेल बोन, जो बमुश्किल आधा इंच की रही होगी, से ही सभी चक्रों का उद्भव हुआ था। इस स्थिति में पता नहीं कहाँ से उनके अवचेतन मन में ब्रह्मा जी की खूँटी प्रकट हो गयी। बच्चा बोल रहा था - ये खूँटी ही ब्रह्माण्ड का केन्द्र है। हर व्यक्ति के पास ये खूँटी है, हर व्यक्ति सेंटर ऑफ़ यूनिवर्स है। जहाँ स्थिर हो कर बैठ गया, वहीं ब्रह्माण्ड का केन्द्र बन जायेगा। 

प्रातः होते ही उन्होंने शारदा देवी से कहा - चलो बिठूर चलते हैं। ब्रह्मा जी की खूँटी के दर्शन करने हैं। 

- वाणभट्ट 

पंख

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