बुधवार, 19 दिसंबर 2012

प्रार्थना के शिल्प में !


प्रार्थना के शिल्प में !

(देवी प्रसाद मिश्र की रचना 'प्रार्थना के शिल्प में नहीं' से प्रेरित ...)

क्षमा
हे अग्नि !
हे वायु !
हे जल !
हे आकाश !
हे धरा !

निवेदन है
कि
आप कहीं दूर एकांत में जा
अपने कान भींच लें
आँखें मींच लें
कि
साक्षी के सम्मुख
असत कहने का साहस
नहीं है मुझमें
कि
विजय सदा सत्य की होती है.

- वाणभट्ट

3 टिप्‍पणियां:

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

बिग बॉस का घर

मैं कमीज़ पहनता हूं तो जैसे कवच पहनता हूं घर से निकलता हूं तो किसी युद्ध के लिए - देवी प्रसाद मिश्र एक जमाना जब पढ़े-लिखे लोग कम थे, लेकिन व...