प्रार्थना के शिल्प में !
(देवी प्रसाद मिश्र की रचना 'प्रार्थना के शिल्प में नहीं' से प्रेरित ...)
हे अग्नि !
हे वायु !
हे जल !
हे आकाश !
हे धरा !
निवेदन है
कि
आप कहीं दूर एकांत में जा
अपने कान भींच लें
आँखें मींच लें
कि
साक्षी के सम्मुख
असत कहने का साहस
नहीं है मुझमें
कि
विजय सदा सत्य की होती है.
- वाणभट्ट
बड़ी बात
जवाब देंहटाएंयह बात एकदम सही है,गुजरात में देख लो साबित हुई है।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
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