कवि की बेबसी
शब्द जब कागज़ पर आकार लेते हैं
सच कहता हूँ
सृजन का गहन दर्द देते हैं
ऐ कवि तू अभिशप्त है
अपना स्वर्ग छोड़ कर
दूसरों का नर्क भोगने को
और वो जीवन जीने को
जो तेरा अपना नहीं
देश-काल की चिंता में
हर कोई घुलता नहीं
गरीबों का देश है
मसीहा मिलता नहीं
कलम कुछ कर सकेगी
ये वहम मत पाल
बहरे कानों को ऊंची आवाज़ की आदत है
सब खुश हैं तू कुछ मुस्करा
गाते हैं सब तू गुनगुना
अफसाने बुनना छोड़
अपने स्वर्ग से नाता जोड़
और देख
दुनिया जगमगाती है
बेबसी सिर्फ़ तेरी ही नहीं इनकी भी है
खुश रहना इनकी बेबसी है
क्योंकि
और भी गम हैं ज़माने में
अब जब तू शब्दों को आकार दे
उसमें बेबसी नहीं
अपना प्यार दे
- वाणभट्ट
एक नाम से ज्यादा कुछ भी नहीं...पहचान का प्रतीक...सादे पन्नों पर लिख कर नाम...स्वीकारता हूँ अपने अस्तित्व को...सच के साथ हूँ...ईमानदार आवाज़ हूँ...बुराई के खिलाफ हूँ...अदना इंसान हूँ...जो सिर्फ इंसानों से मिलता है...और...सिर्फ और सिर्फ इंसानियत पर मिटता है...
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शब्दों को सच्चे मन से लिखना ही सच्चा प्यार है।
जवाब देंहटाएंदेश-काल की चिंता में
जवाब देंहटाएंहर कोई घुलता नहीं
गरीबों का देश है
मसीहा मिलता नहीं
एक एक पंक्ति में कवि ह्रदय का दर्द दिखता है
बहुत सही कहा है आपने ....पर जो किसी के दर्द को महसूस भी करता है तो .....उसे सिर्फ धोखे का मुहं देखना पड़ता है
शब्द जब कागज़ पर आकार लेते हैं
जवाब देंहटाएंसच कहता हूँ
सृजन का गहन दर्द देते हैं
Behtreen Panktiyan... Vicharniy bhav liye rachna
कलम कुछ कर सकेगी
जवाब देंहटाएंये वहम मत पाल
बहरे कानों को ऊंची आवाज़ की आदत है
सब खुश हैं तू कुछ मुस्करा
गाते हैं सब तू गुनगुना
कवि के दर्द को कहती अच्छी रचना
शब्द जब कागज़ पर आकार लेते हैं
जवाब देंहटाएंसच कहता हूँ
सृजन का गहन दर्द देते हैं
एक एक पंक्ति में कवि ह्रदय का दर्द दिखता है|
शब्द जब कागज़ पर आकार लेते हैं
जवाब देंहटाएंसच कहता हूँ
सृजन का गहन दर्द देते हैं.... असह्य वेदना के पश्चात कुछ कह पाते हैं
ek kavi hardaya ka dard bayan karti hai kavita kuch bhi ho kalam majboor nahi ho sakta pyar aur dard to do pahloo hai sikke ke.bahut achcha likhte ho aap.
जवाब देंहटाएंसच्चे कवि हृदय की जीवंत प्रस्तुति - लाजवाब
जवाब देंहटाएंसुन्दर कामना!
जवाब देंहटाएंमाँ सरस्वती को नमन!
Shabdon ko bebasee men mat dhal apna pyar de . Kawi man ko sahee sseekh.
जवाब देंहटाएंशब्दों का खूबसूरत इस्तेमाल करते हुए सुंदर भाव संजोये है आपने...
जवाब देंहटाएंकवी के कोमल मन की जिद्द है ये ... दूसरों का दर्द झेलना चाहता है ... नहीं तो प्यार के शब्दों की भी कमी नहीं है ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत,
जवाब देंहटाएंआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
कवि के दर्द को बखूबी उकेरा है आपने अपनी कविता में.बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंअब जब तू शब्दों को आकार दे
जवाब देंहटाएंउसमें बेबसी नहीं
अपना प्यार दे
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
देश-काल की चिंता में
जवाब देंहटाएंहर कोई घुलता नहीं
गरीबों का देश है
मसीहा मिलता नहीं
कलम कुछ कर सकेगी
ये वहम मत पाल
सही कहा है आपने, पर
कवि तो अपने मन की करता है इसे कौन समझाये ।
बाणभट्ट जी बहुत सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंदेश-काल की चिंता में
जवाब देंहटाएंहर कोई घुलता नहीं
गरीबों का देश है
मसीहा मिलता नहीं
कलम कुछ कर सकेगी
ये वहम मत पाल
बहरे कानों को ऊंची आवाज़ की आदत है...
सच्चाई बताती हुई एक इमानदार रचना ! अति सराहनीय.
.
संवेदनशील दिल की आज वाकई कद्र नहीं ! अपने लिए जीना सफल माना जाता है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
जिसके सीने में दर्द नहीं वो कवि भी नहीं..सही शब्द दिया है..अच्छा लिखा है.
जवाब देंहटाएंthoughtful touching poem
जवाब देंहटाएंसब तो कह दिया आपने...
जवाब देंहटाएंऐ कवि तू अभिशप्त है
अपना स्वर्ग छोड़ कर
दूसरों का नर्क भोगने को
-एकदम सटीक!!
Kya baat hai! Kavi ka yahi satya hai Vanbhatt ji.
जवाब देंहटाएंशब्द जब कागज़ पर आकार लेते हैं
जवाब देंहटाएंसच कहता हूँ
सृजन का गहन दर्द देते हैं
सुन्दरता से सत्य व्यक्त हुआ है!