रविवार, 24 अप्रैल 2011

मीटिंग इज अ प्लेस वेयर मिनट्स आर केप्ट आवर्स आर लौस्ट

मीटिंग इज अ प्लेस वेयर मिनट्स आर केप्ट आवर्स आर लौस्ट 

जब मै मीटिंग में घुसा तो कुछ देर हो चुकी थी. लंगूर की शक्ल का वर्मा बॉस गुस्से में भरा बैठा था. गुस्से में वो चिम्पंजी सा लग रहा था. मुझे उसका चेहरा देख कर हंसी आ रही थी. पर वो डैम सिरियस था. लग रहा था कम्पनी का सारा दारोमदार उस एक बेचारे पर है. मै भी मनहूस सी शक्ल बना कर कोने वाली सीट पर बैठ गया. कहीं मुस्कराता देख कर पारा और न चढ़ जाये इसलिए ये मुलम्मा चढ़ाना जरूरी था. 

बॉस बोल रहा था, बोल क्या रहा था चीख रहा था कि अगर सब लोग इसी ढर्रे पर चलते रहे तो हो गया कम्पनी का बेडा पार. कम्पनी को ऊपर उठाने के लिए उसने जी जान लगा रक्खी है पर नीचे वाले हैं कि पूरे मौज मस्ती में लगे रहते हैं. कोई काम समय पर नहीं, कोई टार्गेट नहीं, जब देखो बहानेबाजी, अरे भाई मै जब तुम्हारी उम्र का था तो दिन-रात एक कर देता था. तभी कम्पनी ने मेरे काम को देख कर धडाधड प्रोमोशन दिया. मै सीनियर मैनेजर कि कुर्सी तक ऐसे ही नहीं पहुँच गया.  

मैंने फुसफुसा के अपने पडोसी से पूछा यार अजेंडा क्या है. उसने भी फुसफुसा के जवाब दिया अबे अगर कोई काम की बात निकल आये तो उसे ही अजेंडा समझ लेना. मुझे तो नींद आ रही है. रात बीवी क्लास ले रही थी अब ये. वैसे भी जब इसकी प्रोसिडिंग निकलेगी तो उसे पढ़ लेना. अभी तो ये पास्ट टेंस मोड़ में चल रहा है. पूरी कहानी दोहराने में एक-आध घंटे तो निकल ही जायेंगे. जगा देना.


शर्मा जी ने भी देर से एंट्री मारी. कर्मठ आदमी थे बॉस को लगता था की ऊपर मैनेजमेंट की नज़र में ये ना आ जायें इस लिए अपनी कृपा नहीं वक्र दृष्टि हमेशा बनाये रखता था. शर्मा जी को देखते ही उसकी आँखों में एक चमक सी आ गयी. मौका भी था और दस्तूर भी.

"क्या शर्मा इज थिस द टाइम टु रीच. आप जैसा सेनियर अगर लेट आएगा तो नये इम्प्लायिज़ पर हम क्या इम्प्रेशन डालेंगे". 

"सर जो आपने अर्जेंट रिपोर्ट मांगी थी वही तैयार कर रहा था. इसी में थोड़ी देर हो गयी". शर्मा जी ने जवाब दिया.

" एक तो देर से आते हो और बहाने बनाते हो. अपनी गलती मान लेने से कोई छोटा तो नहीं हो जाता." बॉस बात का बतंगड़ बना रहा था. "हम लोग भी इतने सालों से कम्पनी के साथ काम कर रहे हैं. पर क्या मजाल की अपने बॉस को कभी रिप्लाई दिया हो. तुम बहस कर रहे हो. डोन'ट यू नो हाउ टु टाक तो योर सेनियर्स."

शर्मा जी एक निहायत ही शरीफ और सज्जन इंसान थे. कंपनी के प्रति वफादार और अपने सेनियर्स को रोज़ कंपनी को चूना लगाते देखा करते थे. इसलिए उन्हें कंपनी के प्रति अपनी वफादारी पर कुछ गुमान भी था. लगता था जिस दिन इनका कच्चा-चिटठा बड़े मैनेजर के सामने रक्खूँगा इस वर्मा की तो ऐसी-तैसी हो जाएगी. पर सोचते थे कि नौकरी है तो किसी न किसी की चाकरी भी करनी पड़ेगी. इसलिए चुप रह जाते. 


पर उस दिन वो इस उम्मीद में थे कि शायद बॉस उन्हें रिपोर्ट टाइम पर ख़तम करने कि शाबाशी दे. इसलिए भड़क गए. " सर मै सारा-सारा दिन कंपनी के काम में खटता रहता हूं. कल आप ही ने कहा था कि रिपोर्ट आज मेरी टेबल पर होनी चाहिए. फिर मीटिंग जरूरी है या रिपोर्ट. मीटिंग में जो भी होता है प्रोसेडिंग में तो आ ही जाता है. मेरे आने या न आने से क्या फर्क पड़ जाता."


वर्मा खुश हो गया. तीर सीधे निशाने पर लगा है. "शर्मा ये तुम्हारे घर कि खेती नहीं है कि जब जी में आया मुंह उठाये चले आये. हर चीज़ का तौर-तरीका होता है. मीटिंग है तो टाइम पर आना ही पड़ेगा. रात में रिपोर्ट निपटा लेते, किसी ने रोका तो नहीं था. हम भी कभी जूनियर हुआ करते थे पर कभी बॉस को शिकायत का मौका नहीं दिया. और तुम हो कि जुबां लड़ाते हो. आई विल राइट तो माय बॉस अबाउट योर मिसबिहेव." शर्मा जी को सन्न करने के लिए इतनी डोज़ काफी थी. मीटिंग अपनी दिशा भटक चुकी थी.


शर्मा जी नौकरी का महत्व समझते थे. और ये भी समझ रहे थे कि वर्मा को आज मौका मिल गया, जिसका उसे बरसों से इंतज़ार था. प्राइवेट नौकरी थी सरकारी होती तो साले को दो कंटाप मार देते फिर लिखा-पढ़ी चलती रहती. बड़ी मुश्किल से ये जॉब मिला था. आज शाम को जेब ढीली करनी होगी. बार एंड रेस्टोरेंट में वर्मा के साथ बैठने कि बात सोच कर भी उसको उबकाई सी आने लगी. पर मरता क्या न करता, मीटिंग के बाद शाम का प्रोग्राम बना लिया. 


अगले दिन प्रोसेडिंग शर्मा जी को भी मिली. अजेंडा तो कहीं कुछ नहीं था. बस उनके डिस्कशन का ही जिक्र था. लिखा था शर्मा ने सबके सामने वर्मा को बुरा-भला कहा. क्यों न इसके विरुद्ध अनुशाश्नात्मक कार्यवाही कि जाए. शर्मा को लगा शाम कि बियर मूत में बह गयी. वर्मा साला बहुत ही हरामी निकला. बीवी का गुस्सा, बच्चों की फीस और माँ-पिता का चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया.


मूड अपसेट हुआ पर उसके पास भी हर जोड़ का तोड़ था. अब वो बॉस के बॉस के पास जायेगा. वर्मा का कच्चा-चिटठा लेकर. और बताएगा कि वर्मा किस तरह से कंपनी को चूना लगा रहा है. साला वर्मा कल तक मेरे पास माफ़ी मांगने ना आया तो मेरा भी नाम नहीं. तभी किसी ने शर्मा को बताया कि तुम तो शाम को बियर पिला के निकल लिए. बाद में ठाकुर के घर पर बैठक थी दारु की. खाने के साथ. मै भी था. ठाकुर ने वर्मा को चढ़ाया कि मौका अच्छा है, मत चूको चौहान. ये ठाकुर वही था जिसे शर्मा के रिकमेंडेशन पर कम्पनी ने रक्खा था. खैर ये सब तो लगा रहता है. प्राइवेट में नंबर बनाने कि जुगत में तो सभी लगे रहते हैं.                


उसी शाम, दिन ढलने के बाद शर्मा पीटर स्कोच की पूरी बोतल ले कर बड़के बॉस के घर पहुँच गया. तो देखा वर्मा और ठाकुर तो पहले से मौजूद हैं. गप्पें चल रहीं हैं. शर्मा को देखते ही सब मुस्कराए. बड़का बॉस बोला "यार शर्मा तुम बहुत ही समझदार आदमी हो. मेरी मन-पसंद ब्रांड की बोतल लेके आये हो. जाओ जा के केऍफ़सी से मुर्गे की टांग भी ले आओ. ठाकुर तुम भी साथ चले जाओ. जल्दी आना."


बॉस और बॉस के बॉस के साथ जाम टकराते हुए शर्मा-वर्मा-ठाकुर के सारे गिले-शिकवे मिट चुके थे. चियर्स कहते हुए शर्मा के सर से बड़ा बोझ हट चुका था.


- वाणभट्ट    
       

13 टिप्‍पणियां:

  1. स्पेशलिस्ट लगते हो यार :-).....शुभकामनायें !!

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  2. कोर्पोरेट दुनिया का यही दृश्य है। इमानदारी का अकाल है । अनुशासन दिखाते हैं और जताते हैं। ऊंचे ओहदे पर हैं इसलिए नीचे वालों को लज्जित करते हैं। एक बोतल बियर में पिघल जाते हैं। शर्मनाक।

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  3. satish ji, chhuta nahin hoon par dekhata to hoon...

    sushil ji, ye to ek ghatna hai...ant aate-aate to sharma ji ko pata nahin kya-kya karna hoga...

    dhanyavaad rashmi ji, divya ji...

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  4. वाणभटट जी नमस्कार,
    आपका लेख पोल खोलने वाला है,
    ऊँची दुकान फ़ीके पकवान वाले इस दुनिया में बहुत है,
    ज्यादातर आसानी से मिल जायेंगें।

    आपसे एक अनुरोध कि आप दूसरो के व अपने ब्लाग पर भी टिप्पणी हिन्दी में ही देने का कष्ट करे।

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  5. वाणभट्ट जी, आपकी कथा-लेखन की शैली बड़ी ही रोचक है। लगता है पुनः वाणी वाणो बभूव।

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  6. चलो जी आप भी हिन्दी में शुरु हो गये।

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  7. ‘अगर कोई काम की बात निकल आये तो उसे ही अजेंडा समझ लेना.’...अकसर मीटिंग्स में ऐसा होता है...ढेर सारा तामझाम और नतीज़ा सिफ़र...
    बहुत करारा व्यंग है...
    हार्दिक बधाई...

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  8. hahahha meeting hoti hi aisi hai....aur office ki ye politics ...bahut saral tareeke se samjha di aapne.

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  9. इसे कहते हैं ईटिंग, मीटिंग और चीटिंग....

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  10. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया अच्छा लगा
    वाणभट्ट जी, आपकी कथा-लेखन की शैली बड़ी ही रोचक है!
    आपसे एक अनुरोध कि कृपया जाट देवताजी की बात माने....

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