बुधवार, 16 मार्च 2011

समय

समय 

एक-एक लम्हा
बीत गया
बिना दस्तक दिए
बिना आवाज़ किये

सोते रहे 
चादर ढांपे

जब आँख खुली है
तो चारों ओर अँधेरा है घुप्प 
और
समय अपने गुज़र जाने 
का
चीख-चीख कर 
एलान कर रहा है 

- वाणभट्ट

1 टिप्पणी:

  1. एक-एक लम्हा
    बीत गया
    बिना दस्तक दिए
    बिना आवाज़ किये....

    कविता में गहन चिन्तन के लिए बधाई।

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