समय
एक-एक लम्हा
बीत गया
बिना दस्तक दिए
बिना आवाज़ किये
सोते रहे
चादर ढांपे
जब आँख खुली है
तो चारों ओर अँधेरा है घुप्प
और
समय अपने गुज़र जाने
का
चीख-चीख कर
एलान कर रहा है
- वाणभट्ट
एक नाम से ज्यादा कुछ भी नहीं...पहचान का प्रतीक...सादे पन्नों पर लिख कर नाम...स्वीकारता हूँ अपने अस्तित्व को...सच के साथ हूँ...ईमानदार आवाज़ हूँ...बुराई के खिलाफ हूँ...अदना इंसान हूँ...जो सिर्फ इंसानों से मिलता है...और...सिर्फ और सिर्फ इंसानियत पर मिटता है...
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. स्कूल में समाजशास्त्र सम्बन्धी विषय के निबन्धों की यह अमूमन पहली पंक्ति हुआ करती थी. सामाजिक उत्थान और पतन के व...
एक-एक लम्हा
जवाब देंहटाएंबीत गया
बिना दस्तक दिए
बिना आवाज़ किये....
कविता में गहन चिन्तन के लिए बधाई।