दरवाज़े
नंगे पैर तले
ज़मीन पर धुल खिसखिसाती है
दरवाज़ों की दरारों से धूल घुस आई है
बुहारता हूँ पूरा का पूरा कमरा
पर तेज़ हवा से
वापस घुस आती है धूल
दरवाज़ा खोलते ही
तब मन खिसियाता है
कमबख्त
ये दरवाजे भी क्यों होते हैं.
- वाणभट्ट
एक नाम से ज्यादा कुछ भी नहीं...पहचान का प्रतीक...सादे पन्नों पर लिख कर नाम...स्वीकारता हूँ अपने अस्तित्व को...सच के साथ हूँ...ईमानदार आवाज़ हूँ...बुराई के खिलाफ हूँ...अदना इंसान हूँ...जो सिर्फ इंसानों से मिलता है...और...सिर्फ और सिर्फ इंसानियत पर मिटता है...
हर देश-काल में ताकतवर लोग अपनी बात को ऐसे व्यक्त करते रहे हैं, जैसे वो पत्थर की लकीर हो. समय के साथ नये ताकतवर आते गये और नयी लकीरें खींचते ...
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