आस
एक भिखारी
पुरानी, अनजान कब्र के पास,
रोज़ बैठता है.
इस उम्मीद में
कि
कभी तो होगा इसका जीर्णोद्धार
लगेंगे इस पर भी मेले हर शुक्रवार
तब
वो
अच्छन, झुम्मन और कल्लन की तरह
हेड भिखारी होगा
और
वहां बैठने वाले हर भिखारी से
वसूलेगा हफ्ता.
- वाणभट्ट
एक नाम से ज्यादा कुछ भी नहीं...पहचान का प्रतीक...सादे पन्नों पर लिख कर नाम...स्वीकारता हूँ अपने अस्तित्व को...सच के साथ हूँ...ईमानदार आवाज़ हूँ...बुराई के खिलाफ हूँ...अदना इंसान हूँ...जो सिर्फ इंसानों से मिलता है...और...सिर्फ और सिर्फ इंसानियत पर मिटता है...
हमारे हिन्दू बाहुल्य देश में धर्म का आधार बहुत ही अध्यात्मिक, नैतिक और आदर्शवादी रहा है. ऊँचे जीवन मूल्यों को जीना आसान नहीं होता. जो धर्म य...
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