गुरुवार, 10 मार्च 2011

आशाओं का दीप जला है

एक और... 
एकांत संगीत के प्रति ...

आशाओं का दीप जला है

कुछ कहा मधुर मुस्कानों ने
कुछ सुना ह्रदय के कानों ने
मन के भीतर था जो गुमसुम
फूल वही आज खिला है

आशाओं का दीप जला है

चाँद से शबनम गिरी है
ओस में मिश्री घुली है
हर रात है आँखों में बीती
हर रात का ये सिलसिला है

 आशाओं का दीप जला है

खुशबु सी है क्यूँ पवन में 
मदहोश क्यूँ बदल गगन में
हर तरफ आलम है ये अब 
नज़रों को जब से पढ़ा है

आशाओं का दीप जला है

(मज़े की बात है, सूत न कपास है)

- वाणभट्ट 



1 टिप्पणी:

  1. खुशबु सी है क्यूँ पवन में
    मदहोश क्यूँ बदल गगन में
    हर तरफ आलम है ये अब
    नज़रों को जब से पढ़ा है

    आशाओं का दीप जला है.....

    बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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