गुरुवार, 3 मार्च 2011

भोर का तारा हुआ मै

बच्चन जी के एकांत संगीत से प्रेरित :

१. भोर का तारा हुआ मै

रात गए जागा देर तक, 
तडपा बेबस सा अब तक
सुबह आ गयी जलाने,
यूँ ओस से पारा हुआ मै

भोर का तारा हुआ मै

चाँद से बातें हुई कुछ,
भूली  मुलाकातें हुईं कुछ
कुछ उसने, मैंने कहा कुछ, 
यूँ चाँद का प्यारा हुआ मै

भोर का तारा हुआ मै

याद तेरी खींच मैंने, 
भींच लीं सीने से अपने 
रात यूँ काटी है मैंने, 
अब बेसहारा हुआ मै

भोर का तारा हुआ मै 

२. रात्रि का चौथा प्रहर है

तारों को मेरे पास पा कर, 
नींद बैठी दूर जा कर
लाखों आवाहन का मेरे, 
उस पर न कोई असर है

रात्रि का चौथा प्रहर है

मौन मै हूँ मौन नीरवता,
वातावरण में है सरसता
रात अँधेरे में खिली, 
जूही पर जैसे भ्रमर है 

रात्रि का चौथा प्रहर है

चाँद है टूटा हुआ सा,
जिंदगी से ऊबा हुआ सा
कोसता किस्मत को अपनी, 
क्योंकि बेचारा अमर है

रात्रि का चौथा प्रहर है

- वाणभट्ट 

2 टिप्‍पणियां:

  1. भोर का तारा हुआ मै

    -वाह!! आनन्द आ गया..अति भावपूर्ण.

    आपका ईमेल तो भेजिये

    sameer DOT lal AT gmail Dot com पर.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर भावप्रवण रचना ....मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

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