१. परिणाम
आहत माँ
उफान कर बोली,
"उपजा बबूल,
बोया था आम.
चिरसिंचित अभिलाषाओं का,
उफ़!
ये परिणाम.
२. परदा
चाँद को घूरता पा कर.
धरती ने ओढ ली,
चांदनी कि झीनी चादर.
और,
उस चादर कि आड़ ले,
घूरे जा रही है चाँद को,
प्यार से.
- वाणभट्ट
एक नाम से ज्यादा कुछ भी नहीं...पहचान का प्रतीक...सादे पन्नों पर लिख कर नाम...स्वीकारता हूँ अपने अस्तित्व को...सच के साथ हूँ...ईमानदार आवाज़ हूँ...बुराई के खिलाफ हूँ...अदना इंसान हूँ...जो सिर्फ इंसानों से मिलता है...और...सिर्फ और सिर्फ इंसानियत पर मिटता है...
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