१. परिणाम
आहत माँ
उफान कर बोली,
"उपजा बबूल,
बोया था आम.
चिरसिंचित अभिलाषाओं का,
उफ़!
ये परिणाम.
२. परदा
चाँद को घूरता पा कर.
धरती ने ओढ ली,
चांदनी कि झीनी चादर.
और,
उस चादर कि आड़ ले,
घूरे जा रही है चाँद को,
प्यार से.
- वाणभट्ट
एक नाम से ज्यादा कुछ भी नहीं...पहचान का प्रतीक...सादे पन्नों पर लिख कर नाम...स्वीकारता हूँ अपने अस्तित्व को...सच के साथ हूँ...ईमानदार आवाज़ हूँ...बुराई के खिलाफ हूँ...अदना इंसान हूँ...जो सिर्फ इंसानों से मिलता है...और...सिर्फ और सिर्फ इंसानियत पर मिटता है...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ऑर्गन डोनेशन
ऑर्गन डोनेशन जब ऑर्गन डोनेशन का फॉर्म ऑनलाइन भरा तो सरकार की तरफ़ से एक सर्टिफिकेट मिल गया. उसमें शरीर के सभी अवयव जिनको किसी की मृत्यु के ...
-
यूँ होता तो क्या होता हुयी मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है वो हर इक बात पे कहना कि यूँ होता तो क्या होता ये शेर ग़ालिब के लिखे उन शेरो...
-
ऑर्गन डोनेशन जब ऑर्गन डोनेशन का फॉर्म ऑनलाइन भरा तो सरकार की तरफ़ से एक सर्टिफिकेट मिल गया. उसमें शरीर के सभी अवयव जिनको किसी की मृत्यु के ...
-
गुब्बारे लो गुब्बारे...रंग बिरंगे प्यारे प्यारे...बचपन में ये या इससे मिलती जुलती कविता हम सबने पढ़ी-सुनी होगी. इनके ना-ना प्रकार के रंग बाल ...
Ahaaa! Loved the second one.
जवाब देंहटाएं