अपने-अपने सच हैं सबके
झूठ पकड़ कोई आगे बढ़ता
कोई है सच का दमन थामे
सही गलत कोई क्या आंके
आखिर सबके अपने सच हैं
दीन-धरम दुनिया की बातें
करते कोई नहीं अघाते
पर जब करने की बारी आती
अपने सच हावी हो जाते
पाप-पुण्य सब परिभाषाएं हैं
झूठ-कपट अब मूल-मंत्र है
लम्पटता सिद्धांत बन गई
इस युग का तो यही तंत्र है
संग समय के जो नहीं चलते
समय उन्हें धूसर कर देता
गुनी जनों ने देखा तौला
और सदाचार से कर ली तौबा
- वाणभट्ट
एक नाम से ज्यादा कुछ भी नहीं...पहचान का प्रतीक...सादे पन्नों पर लिख कर नाम...स्वीकारता हूँ अपने अस्तित्व को...सच के साथ हूँ...ईमानदार आवाज़ हूँ...बुराई के खिलाफ हूँ...अदना इंसान हूँ...जो सिर्फ इंसानों से मिलता है...और...सिर्फ और सिर्फ इंसानियत पर मिटता है...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
प्रोस्पैरिटी इंडेक्स
भारत वर्ष को लेकर विकसित देश बस गरीबी और भुखमरी की बातें करते हैं. उन्हें ये बताते बड़ा अच्छा लगता है कि अभी भी हमारा देश ग्लोबल हंगर इंडेक्...
-
ब्रह्मा जी की खूँटी उसकी साँसें धीरे-धीरे कम होती जा रहीं थीं। नब्ज़ का भी पता नहीं लग रहा था। तभी उसे दुमची (टेल बोन) के अंतिम बिन्दु ...
-
कर्तव्य परायणता साथियों आज सुबह से बचपन में पढ़ी एक कहानी कर्तव्य परायणता बार-बार याद आ रही है। लेखक का नाम बहुतेरा याद करने पर भी नहीं...
-
पावर हॉउस (ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है और इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है.) शहर जहाँ से लगभग खत्म होता है, व...
पर जब करने की बारी आती
जवाब देंहटाएंअपने सच हावी हो जाते
***
यही तो विडम्बना है!