शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

गाँधी जी कि याद आती है

गाँधी जी कि याद आती है.

जब किसी मन्दिर से भजन
और
मस्जिद से अजान
की
आवाज आती है.

जिसने धर्म का मर्म जाना
गीता-कुरान का सार माना
पर इस देश में जब
मजहबी नारों की आवाज आती है
गाँधी तेरी बहुत याद आती है.

पर-उपदेश तो कुशल हैं बहुतेरे,
संत वही जो खुद पर तौले
सुबह चैनलों पर जब बाबाओं की
फ़ौज आती है
बापू तुम्हारी याद आती है

तस्वीर तेरी है हर थाने में,
खादी ओढ़े नेताओं में,
अक्स तेरा है.
पर जो मन से तुझको माने,
ऐसा कोई शख्श कहाँ है.

हिंसा का तांडव चंहुओर
भ्रष्टाचार हुआ बहुजोर
सहमी सी है न्यायपालिका
और
किम्कर्तव्यविमूढ़ सरकार.

कैसे फैले उजियारा
इस दीप में, तेल है न बाती है

गाँधी की उपयोगिता आज भी समझ आती है.

- वाणभट्ट

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

आईने में वो

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. स्कूल में समाजशास्त्र सम्बन्धी विषय के निबन्धों की यह अमूमन पहली पंक्ति हुआ करती थी. सामाजिक उत्थान और पतन के व...