स्क्रीनिंग
भ्रष्ट वातावरण से त्रस्त, सत्यनिष्ठ, धर्मनिष्ठ और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति टें बोल गया. समय के साथ बदल नहीं पाया. डार्विन के सिद्धांतानुसार अयोग्य सिद्ध हो गया. साथ ही हो गया मानव मूल्यों का अंत भी. गुणों की परख स्वस्थ वातावरण में होनी चाहिये. चाहे आदमी हो या फसल.
सुधार
घास खाने वाला शेर विकसित हो जाये तो अन्य वन्य जीवों का स्वतः संरक्षण हो जाये. नहीं, उसमें रिस्क है. गधे और घोड़े का सुधार करो. सुधार की सम्भावना दुर्बल में होती है. शेर का तो संरक्षण होता है.
ब्रह्मा
ब्रह्मा जी की साकार कल्पना है ये ब्रह्माण्ड. ब्रह्मा ने कुछ ब्रह्मा धरती पर भेज दिये. ताकि कोई उनकी भूल को सुधारता रहे. इनोवेशन और प्रमोशन के चक्कर में ये ब्रह्मा, ब्रह्मा से आगे निकल गये.
प्रजाति
गर्मी वैश्विक स्तर पर छायी हुयी है. प्रत्येक प्राणी छाया में सिकुड़ने को विवश है. लम्बे समय तक दिन भर धूप झेलने से अच्छा फसल ने स्वयं को समेट लिया. अगली पीढ़ी चलती रहे सो 50 दिन में ही तैयार हो गयी. घोषणा कर दी गयी, नयी प्रजाति के विकास की.
ब्रह्मज्ञान
एक ऐसा पैकेजिंग सिस्टम बनाया जाये जिसमें अनाज रख दो तो कभी ख़राब न हो. फिल इट-शट इट-फॉरगेट इट. नये वैज्ञानिक के सामने विचार रखा. ब्रह्म रूपी जूनियर ने ज्ञान दिया - सर आप कुछ भूल रहे हैं. फिल इट-शट इट-पब्लिश इट एंड देन फॉरगेट इट.
मशीनी कटाई
पुदीने में बहुत औषधीय गुण हैं. इसकी हार्वेस्टर से कटाई के लिये फसल की ऊँचाई बढ़ा दी है. अब ये कम्बाइन से कट सकता है. ट्रैक्टर से बोआई में पंक्तियों कि दूरी 45 से 50 सेमी रखनी होगी. अरे नहीं भाई, तब पौधों की संख्या कम हो जायेगी. कोई बात नहीं, बोआई और निराई मजदूरों से करवा लेंगे.
तत्व
गेहूँ में आयरन और ज़िंक. चावल और दाल में भी. आरोग्यकारी स्वस्थ जीवन के लिये आवश्यक हैं ये तत्व. पता नहीं था, पुरखों को. वो पूरी थाली खाते थे. दाल-भात-रोटी-सब्जी-सलाद-अँचार-दही-पापड़. कभी-कभी कुछ गिज़ा. और वे थे स्वस्थ भी.
समस्या
समस्या को खोज के लाना और उसका विस्तारण आवश्यक है. ताकि समाधान के लिये फण्ड मिलता रहे. फण्ड लगातार मिलता रहे इसलिये समस्या का बने रहना भी उतना ही आवश्यक है.
समाधान
समाधान प्रायः सरल और सस्ते होते है. किन्तु विश्व के सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क बिना चुनौती वाला सरल काम नहीं करते. इसलिये आम समस्या को पहले चुनौती बनाओ. फिर आरम्भ करो समाधान के लिये फण्ड की तलाश. फण्ड न मिला तो समस्या समाप्त.
सबका साथ
सभी समस्याओं का एक ही विधि और विधा से समाधान. इसलिये कि लकीर पीटना है सहज और आसान. कुछ ओवरहाइप्ड़ लगता है न. सस्ते, शीघ्र और टिकाऊ समाधान के लिये आवश्यक है - सबका साथ और सबका विकास. और ये जुमला नहीं है.
कैंसर
हवा और पानी से भी फैलता है. टिंडा, लौकी और तरोई से भी बच नहीं सकते. ये कैंसर है. नयी-नयी दवायें खोज रहे हैं, धरती के भगवान. ताकि इलाज में कोई कमी न रहे.
फूलो फलो
कीट-पतंगों, खर-पतवारों को समाप्त करने के लिये नये-नये अणुओं की खोज जारी है. लेकिन जिनका कोई नहीं उनका होता है ख़ुदा. हर अणु की तोड़ में होता गया उनका क्रमिक विकास. स्ट्रॉन्ग, एक्स्ट्रा स्ट्रॉन्ग और एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा स्ट्रॉन्ग अणुओं की खोज से कम्पनियाँ फूल भी रही हैं और फल भी.
प्रकृति
माँ से अधिक बच्चों को कौन समझता है. माँ को पता था कि उसके बच्चे लाभ के लिये न जंगल रहने देंगे न पेड़. पर्यावरण संरक्षण के लिये खर-पतवार बनाना प्रकृति की विवशता है. उसका छोटा किन्तु अथक प्रयास है वातावरण बचाने को.
ग्लोबल वार्मिंग
बेमौसम की बारिश और मौसम की अतिरंजना से सब व्यथित हैं. पशु, पक्षी, प्राणी और वनस्पति भी. समस्या के आसान से समाधान हैं. किन्तु जमीन पर उतरना पड़ेगा. वातानुकूलित कमरे के बाहर. आभासी दुनिया से निकल कर. यथार्थ में. वो भी हर एक को. कुछ करने का समय है, आपदा में अवसर तलाशने का नहीं.
-वाणभट्ट
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...