शनिवार, 25 मई 2024

प्रदूषण

हर ओर है धुआँ और धुंध 

साँसों पर पहरा है

हवाओं का 


शोर इतना है कि 

कान का बहरा जाना भी

है सम्भव 


तारे भी छुप जाते हैं

रातों में अपना अस्तित्व बचाने को

कि धरती इस तरह जगमगाती है 

अँधेरा हटाने को 


कुहाँसा सा छा जाता है 

मन और मस्तिष्क पर 

जब सूचना तन्त्र परोस देता है

अप्रमाणिक सूचनायें 

अनियंत्रित स्रोतों से 


बाढ़ सी आ रखी है 

व्यक्तिगत अवधारणाओं की 

विज्ञान में हैं सबके पास 

अनेक समाधान 

यही है अनेकता में एकता 

एक समस्या के अनेक निदान 


विषयों कि पहचान बनाये रखने के लिये

आवश्यक भी है भिन्नता 

हर विशेषज्ञ के पास है अपनी 

समाधान की विधियाँ 

किन्तु 

एकीकृत समाधान से विद्वतजनों को 

डर है उनके विषय के गौण हो जाने का 


प्रकृति ने सदैव किया है

अपना संरक्षण

वो करती रहती है आज भी

अपना पोषण 

अपनी विधि से 

किन्तु यह तभी सम्भव है 

जब वो बच जाये 

मनुष्य के अवांछित हस्तक्षेप से


प्रकृति छेड़-छाड़ कुछ सीमा तक सहती है 

फिर देती है बदले के संकेत 

यदि कोई पढ़ पाये तो 

नहीं तो वो बदले भी लेती है 

अपनी प्राकृतिक विधि से 


विनाश करती है 

प्रचंड प्रलयंकारी रूप में 

इस तरह से कि 

किसी पर ना लगे उसका दोष 

ले लेती है प्रकृति सब दोष अपने ऊपर 

ताकि मनुष्य को न हो

किसी तरह का अपराध बोध 


अंग्रेजी में लिखे और पढ़े गये 

विज्ञान के 

अप्राकृतिक समाधानों का 

आधार है स्वार्थ 

जिसमें से झाँकता है 

ढंका-छिपा अर्थ


हानि और लाभ के गणित में

सर्वाधिकार पर एकाधिकार में सिमट 

अपने में ही उलझा 

माध्यम बन रह गया है विज्ञान 


हर ज्ञानी व्यस्त है ज्ञान को भुनाने में 

उस ज्ञान को जो सहज उपलब्ध था, है और रहेगा 

पूर्वजों द्वारा प्रदत्त निशुल्क ज्ञान 

शास्त्रों, वेदों, पुराणों और पुस्तकों के 

माध्यम से 


मँहगी शिक्षा और शोध व्यय का 

मूल्य तो भरना ही होगा किसी को

ज्ञानी को ज्ञान का लाभ चाहिये 

समाज कल्याण के आधार पर 

स्वयं के लिये 


विज्ञान के नाम पर 

अपना-अपना झण्डा और डंडा उठाये 

ज्ञानी-ध्यानी 

निरंतर लिप्त हैं कूटनीति और राजनीति में 

एक के बाद एक असफल होती 

प्रकृति के अप्राकृतिक सुधार विधियों के

इसीलिये उठा लाते हैं नये-नये झुनझुने 

बजाने को कि कुछ साल और निकल जायें 

समाधान के प्रयास में 

चला चली की बेला पर 

पकड़ा जायेंगे लकड़ी अगली पौध को 

जो गढ़ेगी अपना नया झुनझुना 


देश-विदेश के पंच सितारा होटलों में 

आयोजित संगोष्ठीयों में 

विश्वस्तरीय आवभगत और स्वादिष्ट व्यंजनों से 

तृप्त आत्माओं के साथ 

विज्ञान की पुनर्स्थापना हेतु 

गहन चिंतन और मंथन भी है 

एक प्रकार का 

वैज्ञानिक प्रदूषण


-वाणभट्ट 

3 टिप्‍पणियां:

  1. कितने ज्ञानी और विज्ञानी आकर चले गये, प्रकृति को संवारना तो दूर उसे समझ भी न पाए। लगता तो है, ऋषियों की वाणी एक बार फिर सुनी जाएगी

    जवाब देंहटाएं

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

आईने में वो

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. स्कूल में समाजशास्त्र सम्बन्धी विषय के निबन्धों की यह अमूमन पहली पंक्ति हुआ करती थी. सामाजिक उत्थान और पतन के व...