हर ओर है धुआँ और धुंध
साँसों पर पहरा है
हवाओं का
शोर इतना है कि
कान का बहरा जाना भी
है सम्भव
तारे भी छुप जाते हैं
रातों में अपना अस्तित्व बचाने को
कि धरती इस तरह जगमगाती है
अँधेरा हटाने को
कुहाँसा सा छा जाता है
मन और मस्तिष्क पर
जब सूचना तन्त्र परोस देता है
अप्रमाणिक सूचनायें
अनियंत्रित स्रोतों से
बाढ़ सी आ रखी है
व्यक्तिगत अवधारणाओं की
विज्ञान में हैं सबके पास
अनेक समाधान
यही है अनेकता में एकता
एक समस्या के अनेक निदान
विषयों कि पहचान बनाये रखने के लिये
आवश्यक भी है भिन्नता
हर विशेषज्ञ के पास है अपनी
समाधान की विधियाँ
किन्तु
एकीकृत समाधान से विद्वतजनों को
डर है उनके विषय के गौण हो जाने का
प्रकृति ने सदैव किया है
अपना संरक्षण
वो करती रहती है आज भी
अपना पोषण
अपनी विधि से
किन्तु यह तभी सम्भव है
जब वो बच जाये
मनुष्य के अवांछित हस्तक्षेप से
प्रकृति छेड़-छाड़ कुछ सीमा तक सहती है
फिर देती है बदले के संकेत
यदि कोई पढ़ पाये तो
नहीं तो वो बदले भी लेती है
अपनी प्राकृतिक विधि से
विनाश करती है
प्रचंड प्रलयंकारी रूप में
इस तरह से कि
किसी पर ना लगे उसका दोष
ले लेती है प्रकृति सब दोष अपने ऊपर
ताकि मनुष्य को न हो
किसी तरह का अपराध बोध
अंग्रेजी में लिखे और पढ़े गये
विज्ञान के
अप्राकृतिक समाधानों का
आधार है स्वार्थ
जिसमें से झाँकता है
ढंका-छिपा अर्थ
हानि और लाभ के गणित में
सर्वाधिकार पर एकाधिकार में सिमट
अपने में ही उलझा
माध्यम बन रह गया है विज्ञान
हर ज्ञानी व्यस्त है ज्ञान को भुनाने में
उस ज्ञान को जो सहज उपलब्ध था, है और रहेगा
पूर्वजों द्वारा प्रदत्त निशुल्क ज्ञान
शास्त्रों, वेदों, पुराणों और पुस्तकों के
माध्यम से
मँहगी शिक्षा और शोध व्यय का
मूल्य तो भरना ही होगा किसी को
ज्ञानी को ज्ञान का लाभ चाहिये
समाज कल्याण के आधार पर
स्वयं के लिये
विज्ञान के नाम पर
अपना-अपना झण्डा और डंडा उठाये
ज्ञानी-ध्यानी
निरंतर लिप्त हैं कूटनीति और राजनीति में
एक के बाद एक असफल होती
प्रकृति के अप्राकृतिक सुधार विधियों के
इसीलिये उठा लाते हैं नये-नये झुनझुने
बजाने को कि कुछ साल और निकल जायें
समाधान के प्रयास में
चला चली की बेला पर
पकड़ा जायेंगे लकड़ी अगली पौध को
जो गढ़ेगी अपना नया झुनझुना
देश-विदेश के पंच सितारा होटलों में
आयोजित संगोष्ठीयों में
विश्वस्तरीय आवभगत और स्वादिष्ट व्यंजनों से
तृप्त आत्माओं के साथ
विज्ञान की पुनर्स्थापना हेतु
गहन चिंतन और मंथन भी है
एक प्रकार का
वैज्ञानिक प्रदूषण
-वाणभट्ट
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंकितने ज्ञानी और विज्ञानी आकर चले गये, प्रकृति को संवारना तो दूर उसे समझ भी न पाए। लगता तो है, ऋषियों की वाणी एक बार फिर सुनी जाएगी
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