वो जो तुम हो
एक प्रेम वो है जो घटता है
किसी घटना की तरह
सम्भवतः विकसित होती
आयु और सौंदर्यबोध की
परिणति
एक प्रेम होता है अन्जाना सा
बन्धन ही है जिसके प्रारब्ध का अवलम्ब
जो घटित होता है धीरे-धीरे
और परिपक्व होता है
समय की कसौटी और
आँच पर
एक हर पल माँगता है
सर्वस्व आपका
एकाधिकार के साथ
बताने और जताने पर निर्भर
प्रेम-निर्वहन
शब्दों और उपहारों पर
दूसरा बस देना जानता है
न बोलता है
न जताता है
बस एक कर्तव्य बोध सा
जुड़ा रहता है
घर-परिवार के साथ
सबके लिये उसकी झोली में है
थोड़ा-थोड़ा प्रेम
एकाधिकार नहीं सर्वाधिकार के साथ
अम्मा-बाबू-भगिनी-भाई-बच्चों में
बराबर बँटा हुआ
इन सबसे जो बच गया वो ही
हिस्सा है उसका अपना
वो बस देना जानता है
बस थोड़े आदर
थोड़े स्नेह की
आशा किन्तु
बिना किसी अनिवार्यता के साथ
इस अनअभिव्यक्त प्रेम की
न कोई संज्ञा है न विशेषण
एक प्रेम शब्दों तक सीमित
दूसरा शब्दों की आवश्यकता से परे
एक अधिकार
एक समर्पण
जिस प्रेम को हमने कभी न शब्द दिया
न परिभाषित करने का प्रयास किया
उस अव्यक्त
प्रेम के आगे पाता हूँ
स्वयं को नतमस्तक
-वाणभट्ट
तुम-मै-हम: अब तक उन्तीस...🧡💛💚💜❤️
प्रेम के कई रूप दर्शाती आपकी लाजवाब कलम … बहुत बधाई हो २९ पूर्णतः पूर्ण होने की … साथ बना रहे 🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएंजिसे परिभाषित न किया जा सके, वही तो प्रेम है !!
जवाब देंहटाएंप्रेम व्यवहार से परिलक्षित और महसूस होता है,शब्दो के ताने बाने से भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति👍सुंदर रचना और वैवाहिक वर्षगाँठ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं💐🙏🙏
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंअति सुंदर ,बहुत सुंदर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
रचना को स्थान देने के लिये धन्यवाद...🙏🙏🙏
हटाएंप्रेम को समुचित रूप से परिभाषित करती है यह रचना. अभिनंदन.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
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