मंगलवार, 5 दिसंबर 2023

वो जो तुम हो


एक प्रेम वो है जो घटता है

किसी घटना की तरह

सम्भवतः विकसित होती

आयु और सौंदर्यबोध की

परिणति


एक प्रेम होता है अन्जाना सा

बन्धन ही है जिसके प्रारब्ध का अवलम्ब

जो घटित होता है धीरे-धीरे

और परिपक्व होता है

समय की कसौटी और

आँच पर


एक हर पल माँगता है 

सर्वस्व आपका

एकाधिकार के साथ

बताने और जताने पर निर्भर

प्रेम-निर्वहन 

शब्दों और उपहारों पर


दूसरा बस देना जानता है

न बोलता है

न जताता है

बस एक कर्तव्य बोध सा

जुड़ा रहता है 

घर-परिवार के साथ

सबके लिये उसकी झोली में है

थोड़ा-थोड़ा प्रेम 

एकाधिकार नहीं सर्वाधिकार के साथ

अम्मा-बाबू-भगिनी-भाई-बच्चों में

बराबर बँटा हुआ

इन सबसे जो बच गया वो ही

हिस्सा है उसका अपना


वो बस देना जानता है 

बस थोड़े आदर

थोड़े स्नेह की

आशा किन्तु

बिना किसी अनिवार्यता के साथ

इस अनअभिव्यक्त प्रेम की 

न कोई संज्ञा है न विशेषण


एक प्रेम शब्दों तक सीमित 

दूसरा शब्दों की आवश्यकता से परे

एक अधिकार

एक समर्पण

जिस प्रेम को हमने कभी न शब्द दिया

न परिभाषित करने का प्रयास किया

उस अव्यक्त 

प्रेम के आगे पाता हूँ 

स्वयं को नतमस्तक


-वाणभट्ट

तुम-मै-हम: अब तक उन्तीस...🧡💛💚💜❤️

8 टिप्‍पणियां:

  1. दिगम्बर नासवा5 दिसंबर 2023 को 5:16 pm बजे

    प्रेम के कई रूप दर्शाती आपकी लाजवाब कलम … बहुत बधाई हो २९ पूर्णतः पूर्ण होने की … साथ बना रहे 🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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  2. जिसे परिभाषित न किया जा सके, वही तो प्रेम है !!

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  3. प्रेम व्यवहार से परिलक्षित और महसूस होता है,शब्दो के ताने बाने से भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति👍सुंदर रचना और वैवाहिक वर्षगाँठ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं💐🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुंदर ,बहुत सुंदर भावाव्यक्ति।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना को स्थान देने के लिये धन्यवाद...🙏🙏🙏

      हटाएं
  5. प्रेम को समुचित रूप से परिभाषित करती है यह रचना. अभिनंदन.

    जवाब देंहटाएं

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

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