बुधवार, 14 सितंबर 2022

चलनी

पार्टिकल साइज़ एनालीसिस (कण आकार विष्लेषण) हेतु घटते हुये क्रम में चलनियाँ एक के नीचे एक लगी हुयीं थी. बेसन में उपस्थित कणों के आकार का परीक्षण होना था. इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक सीव शेकर को अधिकतम आयाम और आवृति पर सेट करके, सजीव तसल्ली से कुर्सी पर बैठ गया. टाइमर 10 मिनट का था. उतनी देर खड़े रहने का कोई औचित्य नहीं था. टेलर बाबा की सीरीज़ के अनुसार चलनियों को व्यवस्थित किया जाता है. बड़े छेद वाली चलनी सबसे ऊपर और सबसे महीन सबसे नीचे. हैमर मिल से बना बेसन कितना महीन या मोटा है, ये जानना आवश्यक होता है कि बेसन का सेव बनेगा या लड्डू. कणों के आकार के अनुसार ही पिसे बेसन या आटे की ग्रेडिंग की जाती हैं. इसी तकनीक का उपयोग मृदा का विश्लेषण के लिये मृदा वैज्ञानिक भी करते हैं.

बचपन में जब भी खेल होता था तो कई बार गुल्ली-डंडे में आउट होने वाला बच्चा ये कहते पाया जाता था - 'तेली के तीन दाम'. यानि कम से कम तीन चांस दो, तब देखो मेरा कमाल. यदि शोध के क्षेत्र में न आया होता तो शायद इसका मतलब आसानी से समझ न आता. यहाँ हर डाटा कम से कम तीन रेप्लिकेशन्स में लिया जाता है. एक या दो बार में सही आँकलन नहीं हो पाता इसलिये सुनिश्चित करने के लिये प्रयोग को कई बार करना पड़ता है. औसत और मानक विचलन के साथ ही डाटा रिपोर्ट किया जाता है. एक ही काम को तीन बार करने के लिये बहुत ही धैर्य की आवश्यकता होती है. शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुये नीति-नियन्ताओं ने पीएचडी को शोध व अध्यापन सेवाओं के लिये अनिवार्य न्यूनतम योग्यता बना दिया है. अमूमन तीन से छः साल में समाप्त होने वाली यह डिग्री वही प्राप्त कर सकता है, जिसमें ज्ञान प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा हो या धैर्य कूट-कूट के भरा हो. कभी शोध और अध्यापन में वही व्यक्ति आते थे, जिनकी इस क्षेत्र में रुचि (हॉबी) हुआ करती थी. जब से ये क्षेत्र नौकरी के अवसर बने हैं, तब से लोग-बाग प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी करते-करते पीएचडी कर जाते हैं. उधर निकल गये तो ठीक नहीं तो प्रोफ़ेसरी पक्की है ही. बक़ौल शहरयार साहब - गर जीत गये तो क्या कहना, हारे भी तो बाजी मात नहीं.

सजीव ने पूरी सीव एनालीसिस की प्रक्रिया को तीन बार किया. हर बार किस चलनी पर कितना बेसन रुका, उसे तौला. उसे आश्चर्य नहीं हुआ कि हर बार हर चलनी पर लगभग बराबर मात्रा ही प्राप्त हुयी. यही प्रयोग की सफलता है कि विचलन कम से कम हो. मानव त्रुटियाँ कम करने के उद्देश्य से ही रिप्लीकेशन्स करने का प्रावधान विकसित किया गया है. 

शेकर अपनी गति से कम्पन कर रहा था. हर बार दस मिनट पूरी तरह सजीव के अपने थे. एक विचार से वो चिपक गया. क्या इंसानों पर भी ये चलनी का सिद्धान्त लागू होता है. एक आचार-विचार-विहार के लोग प्रायः एक चलनी में एकत्र हो जाते हैं. जो लोग एक चलनी में आ जाते हैं, वो न ऊपर जा सकते हैं, न नीचे. कुछ लोग चलनी की निचली सतह पर चिपके रहते हैं. जरा सा झटका लगा तो नीचे वाली चलनी में जा गिरते हैं.  जो मोटा होगा वो ऊपर अटक जायेगा और जो महीन होगा वो नीचे निकल जायेगा. उसे आप चाह कर भी अपनी चलनी में नहीं ला सकते. लेकिन जो आपकी चलनी में फँस गया तो वो चाहे कुछ भी कर ले पर अपनी चलनी नहीं बदल सकता. सजीव सोच रहा था, उसके जितने भी दोस्त थे, वो दुनिया के किसी भी कोने में पहुँच गये हों, या कितनी भी तरक्की कर ली हो, लेकिन दोस्त बने रहे. जो चलनी में नहीं आये, वो ऊपर-नीचे तो हैं, लेकिन दोस्त नहीं कह सकते उनको.  

ध्यान के उन गहनतम क्षणों में दृश्य साफ़ होता जा रहा था. सारे दोस्त-रिश्तेदार उसने ऊपर वाली चलनी में डाल कर शेकर स्टार्ट कर दिया. उसे भली-भाँति समझ आ रहा था. जो तुम्हारी चलनी में हैं, वो हमेशा वहीं रहेगा, और जो नहीं है वो कभी उस चलनी का सदस्य था ही नहीं. दिक्कत तब होती है जब हम दूसरी चलनी के सदस्य अपनी चलनी में लाना चाहते हैं. ज्ञान कहीं भी, कभी भी मिल सकता है बस थोड़ा ध्यानावस्थित होने की आवश्यकता है. सजीव के लिये, ये ब्रह्मज्ञान बुद्धा अवेकनिंग टाइप का ज्ञान था. 

- वाणभट्ट

सितम्बर 14, 2022: हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित


3 टिप्‍पणियां:

  1. सही में यह ब्रहम ज्ञान ही है। बहुत ही सरल व्याख्या की है लेखक ने।

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  2. जबरदस्त विश्लेषण चलनी और बेसन के माध्यम से मानव मन की छंटनी ।वाह!

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  3. बहुत गहन सोच, जो हर स्थिति में सटीक है। शुभकामनाएँ!

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