सोमवार, 26 मई 2014

जीनोटाइप

जीनोटाइप

सत्य आधार जी सभा अध्यक्ष की कुर्सी पर पूरे ठसके के साथ विराजमान थे।

कुछ लोग कभी रिटायर नहीं होते। वे अपने कार्यकाल में इतने महान कार्य सम्पादित कर चुके होते हैं कि उनका जाना एक निर्वात खड़ा कर देता है। और इस खाली जगह को भरने के लिए उनके समतुल्य किसी व्यक्ति को खोज पाना वर्तमान शासकों के लिये निकट भविष्य में संभव नहीं हो पाता। लिहाज़ा ऐसे महान सेवकों को सेवाकाल में विस्तार से नवाज़ा जाता है। यदि सेवा विस्तार नहीं मिला तो तमाम परामर्श समितियों में साहब के समायोजन की पर्याप्त संभावनाएं होतीं हैं। कुछ नहीं तो उनके वैचारिक निवेश का सम्बल अगली पीढ़ी को मिलता रहेगा। यदि आपने अवकाश प्राप्त करने से पहले अपने पोस्ट रिटायरमेंट असाइनमेंट का जुगाड़ नहीं कर लिया तो आपकी अब तक की हुयी जोड़-तोड़ से अर्जित सभी उपलब्धियां व्यर्थ गयीं। नौकरी में रहते हुये जिसने भविष्य के उभरते सितारों के मेन्टॉर बन कर उनका मूल्य-सम्वर्धन कर दिया हो, उसका रिटायर हो जाना कतिपय असंभव है। आपके कार्यकाल के दौरान आपकी असीम अनुकम्पा से योग्यता और अयोग्यता के बावज़ूद जो आगे पदोन्नत होते चले गए, उनके लिए ऋण से उऋण होने का समय है आपका रिटायरमेंट। क्योंकि सिर्फ योग्यता के बल पर यदि कोई आशान्वित है कि वो परम पद प्राप्त करेगा तो वो अवश्य दिवा स्वप्न दोष विकार से पीड़ित होगा। ऋण से उऋण होने का तरीका है किसी प्रकार उनकी आवश्यकता को बनाये रखिये।   

ये सामाजिक प्रगति का ही लक्षण है कि व्यक्ति वानप्रस्थी की आयु में भी गृहस्थ आश्रम के आनन्द  छोड़ना नहीं चाहता। शिलाजीत और पुष्टिवर्धक औषधियों की कम्पनियाँ इन्हीं के भरोसे चल रहीं हैं। संन्यास की तो बात अब बेमानी हो गयी लगती है। चिकित्सा के क्षेत्र में हुए आविष्कार ये सुनिश्चित करते हैं कि जब तक गाँठ में पैसे हैं या जब तक आप न चाहें, धरती का बोझ कम होने से रहा। और कर्मयोगी मनुष्य के साथ दिक्कत ये है कि वो कर्म नहीं करेगा तो जीते जी मर जायेगा। इसलिए ऐसे कर्मयोगियों को अगर देश ने नहीं पहचाना तो ये अपना एनजीओ बना लेंगे। और एनजीओ को मिलने वाली सरकारी-गैरसरकारी अनुदान राशि से देश सेवा करते रहेंगे। जब तक साँसें है कोई ज़िन्दगी को झुठला नहीं सकता।  दिल का धड़कना भी ज़रूरी है। धड़कते दिल में कई स्टंट दफ़न हों तो भी चलेगा। क्योंकि चलती का नाम है गाड़ी। दिमाग जो साठ साल में ही सठियाने लगता है, उस पर प्रश्न करना देश के उदीयमान भविष्य पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर सकता है। ज़िन्दगी है तो सपने भी होंगे। शरीर शिथिल पड़ सकता है पर सपने नहीं। शिथिल शरीर के लिये पुरखों की जड़ी-बूटियां हैं, तेल-मालिश है। रहे सपने तो, दूसरों के खर्च पर हवाई यात्रायें और अतिथिगृहों में मिलने वाली सुविधाएँ आपको सदैव सपने देखने के लिए प्रेरित करतीं रहेंगी। सो जो-जो पुनीत कार्य आपसे अपने उत्पादक कार्य काल में छूट गए हों उन्हें करवाने के लिये यही सबसे मुफीद समय है। क्योंकि अब आपको सिर्फ ज़ुबान हिलानी है और शरीर किसी और को।     

सत्य आधार जी की आँखों में गाम्भीर्य झलक रहा था। और चेहरे पर अद्भुत ओज उनके द्वारा अर्जित उपलब्धियों का सहज बखान कर रहा था। समिति के अन्य सदस्य भी उन्हीं की तरह या तो अवकाश प्राप्त थे या उसी कगार पर पैर लटकाये बैठे थे। अपने अध्यक्षीय भाषण में साहब ने बताया कि किस प्रकार वो देश को अन्न की समस्या और कुपोषण से निजात दिलाना चाहते हैं। इसके लिये दूसरों को क्या-क्या कदम उठाने चाहिये और नयी पीढ़ी को क्या क्या करना चाहिये। किस प्रकार विकसित प्रजातियों और तकनीकों  प्रयोग करके फसलों का उत्पादन और उनकी उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। उनके विचार, उनकी पावन जिव्हा से धारा-प्रवाह फूट रहे थे। 

उनके भाषण का लब्बोलबाब कुछ इस प्रकार था। भारत कृषि प्रधान देश रहा है और रहेगा। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग १५% का योगदान करता है और ५०% जनसँख्या को रोजगार मुहैया करता है। आज आवश्यकता है तो इसे उद्योग की तरह अपनाने की है।आज बहुत सी उन्नत प्रजातियां हमारे प्रजनक लोगों ने विकसित कर दीं हैं। आवश्यकता है तो उनके प्रचार-प्रसार की। किसानों को उन्नत प्रजातियाँ अपनाने की। हम अभी भी औद्योगिक खेती से बहुत दूर हैं। थोड़ा आउट ऑफ़ बॉक्स थिंकिंग हो तो तो कृषि का उत्पादन दुगना करना ज्यादा कठिन नहीं है। यदि कृषि कार्यों में हुए मशीनीकरण को वृहद रूप से अपनाया जाए तो लागत मूल्य कम किया जा सकता है। कम समय में ज्यादा काम हो सकता है। पानी का समुचित प्रबंधन होना चाहिये। इसके लिए ड्रिप या स्प्रिंकलर्स का प्रयोग किया जा सकता है। बुआई से लेकर कटाई तक यदि सभी शस्य क्रियाओं के लिये आधुनिक यंत्रों का प्रयोग करें तो उसी भूमि से अधिक उत्पादन ले सकते हैं। फिर करीब १५-२०% उत्पादित अन्न उचित रख-रखाव और प्रसंस्करण के आभाव में खराब हो जाता है और खाने योग्य नहीं रह जाता।इसके लिए आवश्यक है उचित प्रबंधन। उचित प्रबंधन के द्वारा हम न सिर्फ अधिक अन्न का उत्पादन कर सकते हैं अपितु बल्कि उनका संरक्षण भी कर सकते हैं। आज हमारे पास ऐसी प्रजातियां हैं जो गर्मी झेल सकतीं हैं। एक्सट्रीम कोल्ड में भी सर्वाइव कर सकतीं हैं। ये रेनफेड एरियाज में कम पानी की स्थिति में भी संतोषजनक उत्पादन देतीं  हैं। वी मस्ट थिंक आउट ऑफ़ बॉक्स। थिस इज़ हाई टाइम। इसके लिए देश के इंजीनियरों और मैनेजरों को कृषि क्षेत्र में अपनी सहभागिता बढ़ानी चाहिये। माना कि कृषि में पैसा कम है किन्तु अपने देश और देश की बढ़ती जनसँख्या के लिये प्रोफेशनल्स को आगे आना ही होगा। इत्यादि-इत्यादि।  

बहुत ही ओजपूर्ण था सत्य आधार जी का भाषण। हमारे सिस्टम के हिट और फिट लोगों की एक खासियत है वो कभी उद्वेलित नहीं होते। उन्हें किसी कार्य के लिये प्रेरित करने के लिए वित्तीय प्रावधान का खुलासा करना आवश्यक है। अन्यथा उनके दोनों कान खुले रहते हैं। बड़े-बड़े देश सेवा के लिये उनको प्रेरित नहीं कर सके, तो सत्य आधार जी की भला क्या बिसात। लेकिन उनके हाव-भाव से ऐसा लगता मानो वे इस ओज पूर्ण भाषण को सुनने मात्र से कल से ही देश-सेवा में जुटने वाले हैं। कल से इसलिए कि कल किसने देखा है। ये लोग सभाओं में अपने विचार देने की अपेक्षा बंद कमरों में बॉस के समक्ष अपने उदगार व्यक्त करते हैं। इससे दो फायदे हैं। एक तो बॉस का समय, जो कट नहीं रहा होता है, कट जाता है। और दूसरा बॉस को ये ग़लतफ़हमी बनी रहती है कि यही मेरा वफादार चेला है। बॉस अगर फायदा न भी करे तो कम से कम नुक्सान तो नहीं करेगा। वफ़ादारी चीज़ ही ऐसी है जो दोनों तरफ से निभायी जानी चाहिये। ऐसा सिस्टम के ज्ञानियों और ध्यानियों का मानना है। 

सभा में इंजिनियर शर्मा भी बैठा था। उनकी उम्र अभी-अभी ऐसी गहन सभाओं में बैठने की हुयी थी। भाषण सुन कर उद्वेलित हो गया। इस देश के इंजीनियरों को ये ग़लतफ़हमी अक्सर हो जाती है कि सिर्फ वो ही आउट ऑफ़ बॉक्स प्राग्मेटिक सोलूशन्स सोच सकते हैं। जबकि शासन उनका उपयोग सिर्फ जिम्मेदारी फिक्स करने में करता है। फाइलों पर मलाई अफसर और उनका मुंह लगा बीए फेल बाबू खाये, जिम्मेदारी अभियंता की। बड़ी नाइंसाफी है। शर्मा ने कुछ बोलने के लिये हाथ खड़ा कर दिया। सभा में उपस्थित विद्वतजनों ने उसे घूर कर देखा। पर बेचारा देश के प्रति अपने कर्तव्यबोध के कीड़े के प्रभाव से उस क्षण ग्रसित हो गया लगता था। बोला सर मै कुछ कहना चाहता हूँ। चूँकि मामला आउट ऑफ़ बॉक्स और युवाओं का था, सत्य आधार जी को आज्ञा देनी पड़ी। बाकि सब बकरे की खैर मनाने में लग गये। उन्हें मालूम था कि सत्य आधार जी को सुनाने की आदत है, सुनने की नहीं। 

अपने अंध जोश से भरपूर शर्मा ने कहना शुरू कर दिया। सर मै मानता हूँ कि कृषि उद्योग नहीं है किन्तु इसने कितने ही उद्योगों को संरक्षण और पश्रय दे रक्खा है। बीज, कीटनाशक, खर-पतवारनाशक, कृषि यंत्र, भण्डारण, प्रसंस्करण सभी क्षेत्रों में अनेकों राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सक्रिय भागीदारी है। ये सभी कम्पनियाँ दिन-दूनी रात चौगनी तरक्की कर रही हैं। इनका ग्राहक या तो किसान है या आम उपभोक्ता। जबकि कृषि अपने आप में एक हानिकारक व्यवसाय बनता जा रहा है। एक ही कृषि क्षेत्र के लिए अनेक प्रजातियों के बीज संस्तुत हैं। बीज बनाने का काम कम्पनियाँ कर रहीं हैं, जिनके लिए किसान एक ग्राहक है और वो इनसे अपने उत्पाद का अधिकतम मूल्य वसूलतीं हैं। यदि एक क्षेत्र के लिए कम से कम प्रजातियां चिन्हित हों तो थोड़े प्रशिक्षण के बाद उनका बीज बनाना किसानों के लिए भी संभव हो सकता है। प्रजातियों के विकास से उत्पादन बढ़ाना सिंगल डाइरेक्शन सोच है। एक बार एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि वो मैदानी इलाकों के लिए ऐसी मछली विकसित कर रहा था जो ठण्ड में न मरे। मैंने उसे राय दी की भाई ठन्डे इलाके की मछली ले आओ शायद वो जिन्दा रह जाए। लेकिन फ्री की राय में वित्तीय प्रावधान तो होता नहीं इसलिए वो भाई अभी तक अपने प्रयास में तन-मन-धन से लगे हुए हैं। संभवतः हम सभी कृषि समस्याओं का समाधान फसल सुधार के द्वारा करना चाहते हैं। किन्तु अच्छे से अच्छे बीज को चाहिए खाद, पानी और उचित प्रबंधन। खाद्यान्नों की उत्पादन और उपलब्धता बढ़ाने के लिये समग्र दृष्टि की आवश्यकता है। अच्छे बीज, उर्वर भूमि, समुचित जल प्रबंधन, उचित शस्य क्रियाएँ और साथ में मशीनीकरण, भण्डारण और प्रसंस्करण में ग्रामीण सहभागिता के द्वारा ही हम कृषि को उद्योग के रूप में स्थापित कर सकते हैं। किसी भी उद्योग के लिये ब्रेक इवन पॉइंट का निर्धारण किया जाता है। इसी प्रकार कितनी भूमि और कितनी पैदावार किसान के लिये फायदेमंद होगी इसका आँकलन ज़रूरी है। जितना प्रयास हम फसलों को उन्नत करने में कर रहे हैं उससे कम खर्च में वर्षा और भूगर्भ जल का संचयन और संवर्धन कर के हम अधिक से अधिक वर्षा आधारित कृषि क्षेत्र को सिंचित क्षेत्र में बदल कर पैदावार बढ़ा सकते हैं। इससे मौसम पर हमारी निर्भरता कम होगी और मौसम की मार से भी रहत मिलेगी। सर आज की लड़ाई हमें उन्हीं हथियारों से लड़नी है, जो हमारे हाथ में हैं। सस्टेनेबिलिटी अर्थात निरंतरता किसी भी उद्योग का मूल है। ये बात कृषि पर भी लागू है। उन्नत प्रजातियों की उत्पादन क्षमता और वास्तविक उत्पादन में सदैव अंतर रहा है। हमें ऐसे प्रबंधन परिक्षण करने चाहिये जिससे हम उत्पादन को उस प्रजाति की अधिकतम उत्पादन क्षमता तक ले जा सकें। ऐसा बोल के इंजिनियर शर्मा आत्मविभोर होकर चुप हो गया। उसे लगा उसने देश की खाद्यान्न समस्या सिर्फ अपनी बातों से सुलझा दी। उसे क्या पता था कि विद्वान लोग समस्या को सुलझाने नहीं उलझाने में यकीन रखते हैं। समस्या है तो विद्वान हैं। समस्या खत्म तो विद्वान की आवश्यकता भी ख़त्म हो सकती है।   

इस बीच सभा में उपस्थित सभी के चेहरे पर विभिन्न हाव-भाव आते और जाते रहे। शर्मा के खैरख्वाह आँखें मार-मार के उसे चुप होने को आगाह करते रहे। पर उस पर तो जैसे विक्रम वाला वेताल सवार था, ये बात अलग थी कि यहाँ हलाल वेताल को होना था और ठहाके विक्रम को लगाने थे। सत्य आधार जी को सुनने की आदत तो थी नहीं। उन्हें शर्मा का इस प्रकार बोलना अखर गया। लेकिन इस बक्से के बाहर की सोच को वो चुप भी नहीं करा सकते थे। वो मुस्कराते हुए बोले इंजिनियर तुम्हें अपना जीनोटाइप मालूम है। शर्मा आश्चर्यचकित सा बोला - नहीं सर। "तुम्हारा जीनोटाइप है यूएसए टाइप। यू नो मीनिंग ऑफ़ यूएसए, इट्स अन-सटिस्फाइड आंटी यानि असंतुष्ट चाची"। पूरी सभा सन्नाटे में आ गयी। अपने गज़ब का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर की तारीफ करते हुये सत्य आधार जी का ठहाका कमरे में गूँज रहा था।

शर्मा ने सत्य आधार (जी की अब कोई गुंजाईश न थी) की आँखों में आँखे घुसेड़ दीं। सर आपने न सिर्फ मेरा बल्कि अपना जीनोटाइप भी बता दिया। साऊथ अफ्रीका। उसके बाद जो हुआ वो कहानी का हिस्सा नहीं है। 

- वाणभट्ट

9 टिप्‍पणियां:

  1. कहे भी इस जीनोटाइप वाले भी आइना कैसे देख पायेंगें .... सुन्दर चिंतन सरलता से समझाया

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  2. अन्वेषण - परक , रोचक आलेख । प्रसून जी ! आपका चिन्तन स्तुत्य है ।

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  3. महोदय आपने आज के परिप्रेक्ष्य में झांकते हुए अपने विचार लिखे हैं, मुझे यह बहुत अच्छा लगा!
    लखन सिंह

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  4. क्या बात है, इन दोनों पात्रों से मिलने का दिल है :)
    आभार आपका !

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  5. सच को अनोखे और अपने ही अंदाज़ में लिखा है आपने ..
    पात्रों के माध्यम से गहराई बयान करती पोस्ट ...

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  6. ऋण से उऋण होने का तरीका है किसी प्रकार उनकी आवश्यकता को बनाये रखिये। दमदार पंक्ति !आखिर में जो हुआ होगा , बड़ा रोचक रहा होगा

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  7. आपका लेख सटीक है।व्यवस्था का तंत्र किस प्रकार चल रहा है,पात्रों के माध्यम से रोचक तरीके से समझाया है।....."जी" की आवश्यकता नही रही👏👏

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  8. किसान सोलह आने लगाता है और चौदह आने पाता है। अगर ओला पड़ गया,मूसलाधार बारिश हो गयी तो वह भी गया।जब कि कृषि को तथाकथित उन्नत करने वाली कंपनियां लाखों करोड़ की आर्थिक साम्राज्य की मालिक हैं ।उनके झंडा बरदार तमाम कृषि वैज्ञानिक और विद्वान हैं। समस्या का बना रहना अनिवार्य है।विद्वान का अस्तित्व समस्या पर ही निर्भर करता है। वाह वाणभट्ट जी!आप ने मीठी छुरी से पूरी आंत को काट दिया है।पर शायद जिसकी कटी है उसे मालूम है या नहीं ।संदेह है।

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यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

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