आज लिखना ज़रूरी है...
अब न लिखोगे
तो लिखोगे कब
देश को बेच के नेता
जब निकल लेंगे? तब.
सत्ता के नेता जब बकते हैं
कितने थेंथर से दिखते हैं
शर्म बेच के खा गए जैसे
अपनी अम्मा के दलालों जैसे
कहते हैं बाबा तुम अपना काम करो
हमें अपना काम करने दो
तुम योग सिखाओ
हम भोग करें
तुम रोग भगाओ
हम रोग करें
मोटी चमकती चमड़ी में
ए सी से चमकते चेहरों में
झक्क सफ़ेद खादी के कपड़ों में
भी
ये बीमार लगते हैं
दिमागी असुंतलन का
शिकार लगते हैं
इन्हीं की सत्ता का ही तो
अब तक बोलबाला था
मिली भगत से ही तो
बाहर गया धन काला था
अब जब बाबा ने घुड़की लगाई है
पूरे देश में अलख जगाई है
तो इनकी करतूतें सामने आई हैं
सत्याग्रह के विरुद्ध
जो दमन की नीति अपनाई है
ये सत्ता परिवर्तन की
अंगडाई है
माँ भारती के सपूतों अब क्या डरना
वतन के लिए कुछ तो करना
आज़ादी के बाद ये
भ्रष्टाचार से
आज़ादी की जंग है
सियासतदानों पे चढ़ा
सत्ता का रंग है
गर्व और घमंड से ये चूर हैं
गाँधी की खादी पहन के भी
ये हो गए मगरूर हैं
इस कुशाशन को पलटना जरुरी है
इनके अमरत्व-बोध को तोडना ज़रूरी है
वर्ना ये ऐसे ही देश बेचते रहेंगे
और इमानदारों की आन से खेलते रहेंगे
जात-पात-मज़हब से ऊपर उठ के
सोचो किसके साथ हो तुम
गद्दारों की फ़ौज में कहीं
शामिल तो नहीं तुम
साठ सालों का कुशाशन
या उम्मीद की इक किरण
भारतवासियों!
जगाओ भारत स्वाभिमान अपने दिलों में
वर्ना जिक्र भी न होगा तुम्हारा
दुनिया की दास्तानों में
- वाणभट्ट
समसामयिक प्रस्तुति ..अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंनमस्कार
जवाब देंहटाएंआज तो देशभक्ति का जोर लगा व जगा हुआ है,
देखो क्या है भविष्य में
मोटी चमकती चमड़ी में
जवाब देंहटाएंए सी से चमकते चेहरों में
झक्क सफ़ेद खादी के कपड़ों में
भी
ये बीमार लगते हैं
दिमागी असुंतलन का
शिकार लगते हैं...samyik abhivyakti
अब न लिखोगे
जवाब देंहटाएंतो लिखोगे कब
देश को बेच के नेता
जब निकल लेंगे? तब.
तुम योग सिखाओ
हम भोग करें
तुम रोग भगाओ
हम रोग करें-----
------अति सुन्दर व सामयिक एवं भ्रष्टाचारियों को सटीक उत्तर...बधाई...
इस कुशाशन को पलटना जरुरी है
जवाब देंहटाएंइनके अमरत्व-बोध को तोडना ज़रूरी है
वर्ना ये ऐसे ही देश बेचते रहेंगे
और इमानदारों की आन से खेलते रहेंगे
.
वाणभट्ट जी ,
बहुत ही सार्थक और सामयिक रचना , लोगों का अंतर्मन झकझोरती हुई।
.
कटु अभिव्यक्ति ...पर उतनी ही सच भी
जवाब देंहटाएं"जात-पात-मज़हब से ऊपर उठ के
जवाब देंहटाएंसोचो किसके साथ हो तुम
गद्दारों की फ़ौज में कहीं
शामिल तो नहीं तुम"
काश हम सब की ऐसी ही सोच हो - फिर कुछ भी असंभव नहीं - सुंदर प्रेरक रचना
एकदम सामयिक, पर ना तो सरकार और ना बाबा की नीयत साफ है, मन को शांत रखिये, राजनीति कुछ ऐसी हे है अपने देश में,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सच कहा है ... अब नही तो कब लिखेंगे ... कब जागेंगे ... पर .... पर ये सरकार जो दमन की नीति पर चल पड़ी है ... कभी नही जागेगी ....
जवाब देंहटाएंतीखा कटाक्ष...सच भी यही है...
जवाब देंहटाएं"जगाओ भारत स्वाभिमान अपने दिलों में
जवाब देंहटाएंवर्ना जिक्र भी न होगा तुम्हारा
दुनिया की दास्तानों में"
सही कहा है आपने.
बाण भट्टजी !हम आपका पूरा समर्थन करतें हैं .घटनाओं की विरूपता को साक्षी भाव से नहीं देखा जा सकता .रात के अंधेरों में मशाल लिए शहर को आग लगाने वालों की इन्त्जामियत की आपने अच्छी खबर ली है .इस मुहीम में हम भी आपके संग संग हैं .चाटुकार चमचे करें ,नेता की जयकार ,
जवाब देंहटाएंचलती कारों में हुई ,देश की इज्ज़त तार .
छप रहे अखबार में ,समाचार har बार ,
कुर्सी वर्दी मिल गए भली करे करतार ।
बाबा को पहना दीनि ,कल जिसने सलवार ,
अब तो बनने से रही ,वह काफिर सरकार ।
है कैसा यह लोकतंत्र ,है कैसी सरकार ,
चोर उचक्के सब हुए ,घर के पहरे -दार ,
संसद में होने लगा यह कैसा व्यापार ,
आंधी में उड़ने लगे नोटों के अम्बार ।
मध्य रात पिटने लगे ,बाल वृद्ध लाचार ,
मोहर लगी थी हाथ पर ,हाथ करे अब वार ।
और जोर से बोल लो उनकी जय -जय कार ,
सरे आम लुटने लगे इज्ज़त ,कौम परिवार ,
जब से पीज़ा पाश्ता ,हुए मूल आहार ,
इटली से चलने लगा ,सारा कारोबार ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).,डॉ .नन्द लाल मेहता .
वक्त की मजबूरी है ,
जवाब देंहटाएंअब लिखना बहुत ज़रूरी है ।
जगाओ भारत स्वाभिमान अपने दिलों में
जवाब देंहटाएंवर्ना जिक्र भी न होगा तुम्हारा
दुनिया की दास्तानों में
-बिल्कुल...जागृति जरुरी है.
जाग्रति के ओजपूर्ण भाव लिए रचना ......बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसार्थक और सामयिक रचना ..बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंकाश! हम सब की ऐसी ही सोच हो, फिर कुछ भी असंभव नहीं|
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