बुधवार, 29 सितंबर 2010

लम्हे

मोड़ पर खड़े लम्हे
याद दिलाते हैं
कि
उनकी उपेक्छा कर
हमने की थीं छोटी या बड़ी गलती

ये लम्हे खुद को पहचनवाने की कोशिश
में खड़े हैं
और हम हैं कि उन्हें भूलने में लगे हैं

दरअसल हम डरते हैं
कि
उन लम्हों में हम फिर वो भूल दोहरा न दें

- वाणभट्ट

सोमवार, 27 सितंबर 2010

घाव करें गंभीर ...

घाव करें गंभीर .....

१. मज़हबी नारों में
इंसानियत की आवाज़ दब गई
नक्कारखाने में तूती की आवाज़
सुनी है कभी ?

२. मत पूछो ये सड़क शहर जाती है.
शहर की ओर भागता है सियार
जब
मौत आती है.

३. ज़बरन मुस्कुराते बच्चे,
बस्तों के बोझ से दबे बच्चे,
बचपन में ही हैं कितने बड़े बच्चे.

४. मैं बस एक आदमी हूँ,
आदमी से ही मिलता हूँ,
आदमियत पे मिटता हूँ.

- वाणभट्ट

मुर्गीदाना

किसी भी भाषा में यदि किसी मुहावरे की रचना हुयी है तो उसके पीछे देश-समाज का वर्षों का अनुभव निहित होता है. तभी तो मुहावरे एकदम टाइम टेस्टेड उ...