घाव करें गंभीर .....
१. मज़हबी नारों में
इंसानियत की आवाज़ दब गई
नक्कारखाने में तूती की आवाज़
सुनी है कभी ?
२. मत पूछो ये सड़क शहर जाती है.
शहर की ओर भागता है सियार
जब
मौत आती है.
३. ज़बरन मुस्कुराते बच्चे,
बस्तों के बोझ से दबे बच्चे,
बचपन में ही हैं कितने बड़े बच्चे.
४. मैं बस एक आदमी हूँ,
आदमी से ही मिलता हूँ,
आदमियत पे मिटता हूँ.
- वाणभट्ट
१. मज़हबी नारों में
इंसानियत की आवाज़ दब गई
नक्कारखाने में तूती की आवाज़
सुनी है कभी ?
२. मत पूछो ये सड़क शहर जाती है.
शहर की ओर भागता है सियार
जब
मौत आती है.
३. ज़बरन मुस्कुराते बच्चे,
बस्तों के बोझ से दबे बच्चे,
बचपन में ही हैं कितने बड़े बच्चे.
४. मैं बस एक आदमी हूँ,
आदमी से ही मिलता हूँ,
आदमियत पे मिटता हूँ.
- वाणभट्ट
बहुत सुंदर रचनाएँ। सियार झकझोरने वाली थी और बच्चे सोचने वाली।
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