कबीर दास ने बुरा देखने का प्रयास किया था और उसका अन्त ख़ुद उन्हीं पर हुआ. वो अन्तर्ज्ञान का युग था. आज का युग बहिर्ज्ञान का है. हर कोई दीदे फाड़े बाहर की ओर देख रहा है. बाहर इतनी हैप्पनिंग्स हो रही हैं कि आदमी को अन्दर जाने का समय तभी मिलता है जब मुँह में दाँत और पेट में आँत काम करना बन्द कर दें. वो कुछ भी मिस नहीं करना चाहता. पाँच अख़बार और पचहत्तर न्यूज़ चैनल्स के बाद भी लोग-बाग़ (तथाकथित पत्रकार) अपना-अपना यूट्यूब चैनल बना के लाइक और सब्सक्राइब करने की डिमांड करते घूम रहे हैं. ये वो लोग हैं जिन्हें लगता है कि इन्होंने नहीं बताया तो दुनिया पीछे छूट जायेगी. जब चैनल के चैनल प्रो और अगेंस्ट सरकार हो गये हों तो भला अपना एजेंडा चलाने वाले पत्रकार कहाँ बच पायेंगे. ख़ासियत ये हैं कि अन्दर की ख़बर रखने वालों को किसी भी स्थापित भारतीय मीडिया पर भरोसा नहीं है. वो या तो बीबीसी देखते हैं या अल-जज़ीरा. जिनको अपनी अंग्रेज़ी पर शुबहा हो उन्हें इन्हीं देसी पत्रकारों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. और ये लोग अपनी-अपनी पसन्द के अनुसार पक्ष और विपक्ष की धज्जियाँ उड़ाया करते हैं.
जिस उम्मीद में मैने ब्लॉग लिखना शुरू किया था कि कुछ एक्स्ट्रा इनकम हो जायेगी, उसी उम्मीद से ये भी अपने यूट्यूब चैनल पर लाइक या सब्सक्राइब करने का निवेदन करते रहते हैं. सुना है हज़ार फॉलोवर्स होने पर यूट्यूब कुछ पैसा देता है. मै भी सोच रहा हूँ कि इतनी मेहनत करके ब्लॉग लिखने से अच्छा है कि कुछ मिनट के लिये किसी भी महान हस्ती को गरियाना शुरू कर दिया जाये. डेढ़ सौ करोड़ के देश में हज़ार सब्सक्राइबर्स खोज पाना कौन सा कठिन काम है. अलग-अलग वाट्सएप्प ग्रूप्स पर जिन्हें रोज गुड मॉर्निंग, नये-नये वीडियोज़ और जोक्स भेजता रहता हूँ, वो ही अगर सब्सक्राइब कर लें, तो डेढ़-दो हज़ार लोग तो हो ही जायेंगे. लेकिन मार्केट में सब के सब किसी न किसी की बुरायी खोज के गरियाने में लगे हैं, तो मैंने सोचा कि मैं कुछ अलग करूँगा. लोग बुराई करने में लगे हैं तो मैं तारीफ़ करने में लग जाता हूँ. किसी वाट्सएपिया गुरू ने बताया था कि अच्छाई और भलाई के रास्ते पर भीड़ कम है. अगर मैं आम लोगों की भलाई का ज़िक्र करूँ तो शायद लोगों को अच्छा लगे और सब्सक्राइबर्स आसानी से मिल जायें.
वाणभट्ट कोई रवीश और अर्नब और सुधीर और अंजना की तरह ख्यातिलब्ध पत्रकार तो है नहीं जो किसी बड़े नेता-अभिनेता का इंटरव्यू ले सके. सो मेरे पास बचे पड़ोसी शर्मा जी. जिनसे मेरे सम्बन्ध वैसे ही थे जैसे दो पड़ोसियों के होते हैं या होने चाहिये. मैने मकान बनवाया तो उन्होंने भी बनवा लिया, मैने दूसरा तल्ला बनवाया तो उन्होंने भी बनवा लिया, मैने कार खरीदी तो उन्होंने भी. गोया दुनिया में उनका सारा कम्पटीशन मुझसे ही था. लेखक और सम्वेदनशील (डरपोक और दब्बू) होने का और कोई फ़ायदा हो न हो, हर कोई आपको अपने फ़ायदे के लिये यूज़ करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है. वैसे तो उन्हें मुझसे कोई खास मतलब तो था नहीं क्योंकि मैं खाता-पीता नहीं. जब पार्टी देनी हो तो दूर-दराज़ से लोगों को खोज लाते और मुझसे कहते यार तुझे क्या बुलाना, तू तो न पीता है, न पिलाता. लेकिन जब काम पड़ता तो मेरी ही घण्टी बजाते. चाहे घर की हो या फोन की. इसलिये मुझे इतना भरोसा तो था कि वो मेरे इस नेक काम के लिये मना नहीं करेंगे. सो पॉडकास्ट के लिये कैमरा, कैमरा स्टैंड और माइक लेकर उनके घर पहुँच गया.
गेट के बाहर से घण्टी बजायी तो घर के अन्दर से कोई आवाज़ नहीं आयी. झाँक के देखा तो कार और स्कूटर दोनों खड़ी थीं. मतलब शर्मा घर के अन्दर ही था. जब से साइबर क्राइम शुरू हुआ है चोर-डकैत भी अब घर में घुसने की कोशिश नहीं करते. लोग अपने घर में बैठे-बैठे पास-पड़ोस की हरकत देखने के उद्देश्य से धड़ाधड़ सीसीटीवी लगवा रहे हैं. ताकि पता चल सके कि हमारी काम वाली पडोसी के घर काम तो नहीं कर गयी. मेरी छठीं इन्द्री कह रही थी कि कैमरे के उधर शर्मा अपने 75 इंच के टीवी पर मुझे गेट भड़भड़ाते हुये देख रहा है. मैं भी सोच के आया था कि आज अपना पहला वीडियो तो बना के ही लौटूँगा. काफी देर भड़भड़ाने के बाद उसे जब अन्दाज़ लग गया कि मैं नहीं जाने वाला, तो दरवाजा खोल के बाहर निकला. 'आइये-आइये वर्मा जी. जरा नींद लग गयी थी'. जब कि उसका चेहरा पूरी तरह चैतन्य दिख रहा था. सोचा पूछूँ पूरा घर सो रहा था क्या. लेकिन काम अपना था, इसलिये नाराज़ करना ठीक नहीं लगा. मेरे मन में पहला विचार यही आया कि किसी ढंग के आदमी से हमें शुरुआत करनी चाहिये थी. इस झूठे-मक्कार आदमी से भलाई की भला क्या उम्मीद की जाये. लेकिन मैंने तुरन्त मन में आये निगेटिव विचार का बहिष्कार कर दिया. सेल्फ़ टॉक में बोला - वर्मा, बी पॉज़िटिव.
कैमरा-माइक देख के शर्मा थोड़ा कॉन्शस हो गया. बोला - भाई क्या इरादा है. मैने पूरे डीटेल में उसे बताया कि कैसे यूट्यूब पर अपना चैनल बना कर और सब्सक्राइबर्स बढ़ा कर एक्स्ट्रा कमायी की जा सकती है. शुरुआत उनके इंटरव्यू से करना चाहता हूँ. सुनते ही उनके चेहरे पर ऐसा भाव आया मानो कहना चाह रहे हों कि मेरे इंटरव्यू से जो कमायेगा उसका आधा मुझे दे. मुझे उसका काइयाँपन पहले से मालूम था. लेकिन आज सुबह ही किसी बाबा ने किसी चैनल पर बताया था कि अच्छाई और बुरायी देखने वाले की आँख में होती है. यदि आप को बुरायी दिखायी देती है तो आप में भी वो तत्व विद्यमान है. मुझे अपने अन्दर आये इस कुत्सित विचार पर आत्मग्लानि महसूस हुयी. भगवान सब देखता है. यहाँ तक कि हमारे विचार भी. बहरहाल सेंटर टेबल पर माइक और स्टैंड पर कैमरा सेट करके हमने इंटरव्यू शुरू कर दिया. पहले तो कैमरे के सामने वो कुछ हेज़ीटेन्ट लगे फिर धीरे-धीरे खुलते गये.
उनकी परतें खुलने लगीं. मेरा जन्म गाँव के एक गरीब किसान के यहाँ हुआ. अनपढ़ माँ ने मुझे पढ़ायी की अहमियत समझायी. पिता जी तो बस खेती में मदद की ही आस करते थे. प्राइमरी के मास्टर जी ने मेधा को पहचाना और छात्रवृत्ति के एग्जाम के लिये तैयारी करवायी ताकि शहर के सरकारी स्कूल में दाख़िला मिल सके. अपने गाँव से शहर आने वाला मै पहला व्यक्ति था. शहर के गवर्नमेन्ट इंटर कॉलेज के होस्टल में जब रहने आये तो मेरी ही तरह उस जिले के अन्य गाँवों से और भी बच्चे आये थे. सभी मेहनती बच्चे आपस में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा रखते थे. क्लास में शहर के बच्चे भी थे. जिनको देख के इंफेरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स हुआ करता था. हमारी अँग्रेज़ी की शिक्षा कक्षा छः से आरम्भ हुयी, जब कि शहर के बच्चे नर्सरी से अँग्रेज़ी पढ़ रहे थे. चूँकि होस्टल के सब छात्रों को छात्रवृत्ति से ही गुजारा करना होता था, इसलिये शहरी बच्चे जिस स्वच्छंदता से जिया करते थे, वो हमें स्वप्न सा लगता था. पढ़ायी के अलावा और कोई काम था नहीं. कुछ शहर वाले दोस्त भी बने. लेकिन उनकी मौज-मस्ती-ख़र्चे अलग थे. इसलिये दोस्ती बस क्लास और पढायी तक रही. चूँकि हमारा टारगेट सिर्फ़ पढायी था, इसलिये पहले ही अटेम्प्ट में रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन मिल गया. चार साल इंजीनियरिंग की पढ़ायी के साथ पूरा फ़ोकस अँग्रेज़ी सुधारने में लगा दिया. यहाँ भी पढ़ायी छात्रवृत्ति पर ही निर्भर थी. इसलिये तमन्नाओं पर अंकुश लगाना जरूरी था. क्लास के एक लड़के की पर्सनाल्टी मुझे अच्छी लगती थी, उसी को कॉपी करने का प्रयास शुरू कर दिया. उसकी चाल-ढाल, कपड़े पहनने का सलीका, बोलने-बतियाने का तरीका. पहली ब्रान्डेड जींस नौकरी लगने के बाद खरीदी. बाद में भाई-बहन को पढ़ाने की जिम्मेदारी मैंने अपने ऊपर ले ली. सभी ठीक-ठाक नौकरी में हैं. आज तीस साल शहर में रहते हो गये लेकिन मेरे अन्दर का गाँव अभी भी जीवित है, जो मुझे शहरी होने से रोकता है. शहर की चिकनी-चुपड़ी पॉलिश्ड बातें करने की कोशिश तो करता हूँ लेकिन उसमें कहीं न कहीं नकलीपन सा लगता है. अपने कॉम्प्लेक्सेज़ के साथ जीना कठिन है, लेकिन मुझे रोज जीना पड़ता है. प्रत्यक्ष रूप से जो शहरों में व्याप्त हेकड़ी है, उसे बनाये रखने की कोशिश करता रहता हूँ. ताकि कोई मुझे बहुत शरीफ़ समझ कर फ़ायदा उठाने का प्रयास न करे. अब तो दूसरों पर डॉमिनेट करने की प्रवृत्ति गाँव तक पहुँच गयी है. मै आज भी अपने आस-पास के लोगों से प्रभावित हो जाता हूँ और उनसे कुछ न कुछ सीखने का प्रयास करता रहता हूँ. गाँव के मास्टर जी से लेकर अब तक जो भी लोग मेरी ज़िन्दगी में आये, वो मेरे व्यक्तित्व का अंग बन गये.
मै और मेरा कैमरा उनको खुलते हुये सुनते-देखते रहे. मुझे लगा कि भक्ति चैनल पर किसी स्वामी महाराज का प्रवचन सुन रहा हूँ. मेरे ज्ञान चक्षु खुल रहे थे. किसी के बारे में हम लोग बड़ी जल्दी अपनी ओपिनियन बना लेते हैं. लेकिन यदि किसी को सही से जानना हो तो उसके किरदार में घुसना ज़रुरी है. हर शख़्स की अपनी कहानी है, सबके अपने-अपने सच हैं. लेकिन हैं सब के सब भले. कबीर जी से माफ़ी के साथ मै कहना चाहता हूँ कि भलाई देखने की कोशिश हो तो हर कोई भला ही दिखता है. जब सब भले हों तो मैं भी बुरा कैसे हो सकता हूँ. वैसे भी हमारे बुजुर्गों ने कहा है कि आप भले तो जग भला. अब चूँकि पहली बार मैने भलाई के मुद्दे की बात उठाई है तो ये कहने में गुरेज कैसा कि - मो सम भला न कोय.
एक आदमी के बनने या न-बनने में भी बहुत लोगों का योगदान होता है. जिनसे हम अच्छी या बुरी चीज़ें सीखते हैं. वही हमारी वर्तमान पर्सनाल्टी का हिस्सा बन जातीं हैं. बरबस निदा फ़ाज़ली साहब की ये पंक्तियाँ याद आ गयीं-
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको देखना हो कई बार देखना
अपना वीडियो कम्प्लीट कर के यूट्यूब पर अपलोड कर दिया है. दिल खोल के लाइक और सब्सक्राइब कीजिये. अगला पॉडकास्ट मै मोहल्ले के माफ़िया पर बनाने की सोच रहा हूँ. उसकी भी कोई दिल को छू जाने वाली अन्तर्कथा ज़रूर होगी. अपने पॉडकास्ट पर मै हर टॉम-डिक-हैरी (ऐरे-गैरे) को अपनी भावनायें व्यक्त करने का मौका दूँगा. आज ही सुबह मुझे सपना आया है कि यूट्यूब वाले चेक लिये मेरे घर का पता पूछते घूम रहे हैं.
-वाणभट्ट