मंगलवार, 7 नवंबर 2023

बाज़ार

टहलने के बाद और श्रीमती जी के उठने से पहले, मैं चाय बनाने की प्रक्रिया में लगा हुआ था. यही समय है जब कमल, मेरा अख़बार वाला, अख़बार डालता है. तब तक सुबह के छ: बज चुके होते हैं. ये रोज की बात है. देर-से सोने के कारण कभी मै लेट हो सकता हूँ लेकिन यदि कमल ने पेपर नहीं डाला तो जरुर कोई इमरजेंसी होगी या वो शहर के बाहर गया होगा, वो भी किसी जरूरी काम से. एक हिंदी और एक अंग्रेजी अख़बार पलट लेने की अपनी पुरानी आदत आज भी बदस्तूर चल रही है. अख़बार गिरने की आवाज़ सुन कर मै बाहर निकल आया. आज सन्डे था इसलिये रविवासरीय परिशिष्ठ का भी दोनों समाचार पत्रों के साथ आना तय था. जब अख़बार उठाया तो वो असामान्य रूप से भारी था. ईमानदारी से बताऊँ कि मेरे मन में पहला विचार यही आया कि उतने ही पैसे में आज ज्यादा रद्दी मिल रही है कबाड़ी को बेचने के लिये. ये भी लगा, आज मसाला काफ़ी है. ख़बरों से ज्यादा मुझे परिशिष्ठों का इंतज़ार रहता है. खबरों का क्या है. वही घिसी-पिटी ख़बरें. चाहे दस साल पुराना अखबार भी उठा लो, ख़बरें वही रहतीं हैं. बस उनसे जुड़े नाम भले बदल जायें. कोई घटना घटेगी तो आज की खोजी पत्रकारिता उसे ऐसे प्रस्तुत करेगी जैसे आज से पहले ऐसी घटना कभी घटी ही नहीं. किसी विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की न्यूज़ ने सारे टीवी चैनलों और अखबारों में ऎसी धूम मचा रखी थी, जैसे कोई उस विभाग के भ्रष्ट आचरण को जानता ही न हो. आम आदमी तो सरकार को ही भ्रष्टाचार का पर्याय मानता है. नहीं तो अच्छे पे-पैकेज वाले प्राइवेट जॉब्स को छोड़ कर कौन सरकारी नौकरी के लिये जान देता. ये सोच कर कि ब्रेकफ़ास्ट के बाद इत्मीनान से पढूँगा, अख़बारों का पुलिन्दा सेंटर टेबल पर छोड़ दिया. 

नहा-धो कर, नाश्ता करके पूरे फुरसतिया मोड में अख़बार उठा कर सोफ़े पर विराजमान हो गया. दोनों अख़बारों में दो-दो परिशिष्ठ रखे हुये थे. लेकिन ये क्या अख़बार के ऊपर के दोनों पन्नों पर दोनों साइड फुल पेज विज्ञापन छपे हुये थे. आखिरी पेज पर भी ऐसा ही विज्ञापन था. न्यूज़ तीसरे पन्ने से शुरू हुयी थी. उस पर भी आधे पन्ने का विज्ञापन. विज्ञापन इतने आकर्षक और लुभावने थे कि समाचारों की ओर नज़र डालना मुश्किल हो रहा था. नया मकान खरीदना हो या कार बदलनी हो. मॉल्स की सेल हो या किचन अप्लायेंसेज़ पर भारी छूट. इन ख़बरों से अख़बार भरा पड़ा था. पूरा का पूरा एक परिशिष्ठ विज्ञापनों को ही समर्पित था. सब तरफ तकनीकी उत्पादों  के नये-नये मॉडल्स को देख के ऐसी फीलिंग आ रही थी, मानो मेरा घर, घर न हो कर कोई म्यूज़ियम हो. सारे के सारे अप्लायेंसेज़ पचीस साल की गृहस्थी में धीरे-धीरे जमा हुये थे. नए एडवान्स मॉडल्स के सामने सब ओब्सलीट हो चुके लगते थे. इन विज्ञापनों से मुझे याद आया कि दीपावली करीब है, इसलिये बाज़ार घर में घुसने के लिये बेताब हो रहा है. अपनी पुरानी कार, मोटर सायकिल, टीवी, वाशिंग मशीन, मिक्सी आदि को बदलने के बारे में सोच कर मै डिप्रेशन की कगार तक पहुँचने वाला था कि धर्मपत्नी जी कुछ घर के बाहर के काम ले कर आ गयीं. मै यथाशीघ्र अख़बार को टेबल के नीचे छिपा के बाहर निकल लिया. 

एक-आध घन्टे बाद जब मै वापस लौटा तो घर का दृश्य देखने लायक था. माँ-बेटी सेंटर टेबल हटा कर पूरा अख़बार जमीन पर  फैलाये बैठी थीं. जिस पेज को देख कर उनकी आँखें चमक रही थीं, वो इस बात का एलान कर रहा था कि उन्हें बेडशीट्स से लेकर पर्दों से लेकर सोफ़ा कवर और कुशन्स बदलने की प्रेरणा मिल चुकी है. उन्हें मालूम था कि कार और टीवी बदलने की माँग ख़ारिज हो जायेगी. हिन्दुस्तानी महिलायें अपने से ज़्यादा अपने घर के बारे में सोचती हैं. लिहाजा मुझे बताया गया कि शहर के सबसे बड़े मॉल में होम फ़र्निशिंग आइटम्स की सेल लगी है. घर के पुराने पर्दे-चादरें बदल दिये जायें. दीपावली सेल में बहुत सारे समान विशेष छूट के साथ मिल रहे हैं. नये कपड़े भी तो लेने हैं सबके लिये. आप हम दोनों को वहाँ छोड़ दीजिये. शॉपिंग के बाद आपको बुला लेंगे. आदमी भले ही ख़ुद को हेड ऑफ़ द फैमली समझे, पर उसकी औकात एक ड्राइवर से ज़्यादा नहीं होती. लेकिन ड्राइवर होने के अपने फ़ायदे हैं, ज़्यादा दिमाग़ नहीं लगाना पड़ता. बस आर्डर और इंस्ट्रक्शंस फ़ॉलो करने होते हैं. 

मॉल दूर था इसलिये सिर्फ़ छोड़ने का कोई मतलब नहीं था. मुझे रुकना ही पड़ेगा. इंडिया...सॉरी...भारत और साउथ अफ्रीका के मैच की तो ऐसी-तैसी होती दिख रही थी. लेकिन फिर मौका भी नहीं था. अगले हफ़्ते ही तो दिवाली थी. मॉल तक पहुँचने से पहले ही लग गया कि पूरा शहर ही बाज़ार बन गया है और हर कोई घर के बाहर आ चुका है. त्योहार कोई मेरा अकेले का तो है नहीं. दुकानें फुटपाथ छोड़ कर सड़क तक आ गयीं हैं. फुटपाथ तो साल भर घिरे रहते हैं. कभी-कभी तो ये लगता है कि फुटपाथ न होते तो हिंदुस्तानी दुकानदारों की दुकान कैसे चलती. इन्हें ट्रैफ़िक की कोई चिंता नहीं. पहले फुटपाथ घेरेंगे, फिर कोई ग्राहक उनकी दुकान देखने से वंचित न रह जाये, इसलिये बोर्ड सड़क पर लगा देंगे. ये ट्रैफ़िक का सरदर्द है कि वो सड़क खोजे और उस पर चले. भीड़-भाड़ वाले इलाकों में भेंड़ की तरह चलते लोग हॉर्न्स के आदी हो चले थे. यहाँ से गुजरते हुये यदि आपने सम्पुटों का प्रयोग नहीं किया तो आप स्वयं को छोटा-मोटा तपस्वी मान सकते हैं. मैने नहीं किया, लेकिन उसके पीछे कारण कुछ और था. साथ में धर्मपत्नी और बेटी थे. वो क्या सोचेंगे कि मेरी अपब्रिंगिंग सही नहीं हुयी है.

बहरहाल राम-राम करते-करते मॉल के आस-पास पहुँच गये. कुछ दूर से ही जाम का माहौल बन रहा था. मुझे लगा कि सब्जी मंडी होने के कारण जाम लगा होगा. जब मॉल के गेट पर पहुँचा तो समझ आया सब गाडियाँ अन्दर जाने पर उतारू हैं. पार्किंग में उपलब्ध जगह का एहसास बाहर ही होने लगा था. पार्किंग से पहले ही कुछ कारें खड़ी हुयी थीं. अन्ततोगत्वा तीसरे लेवल की पार्किंग में बमुश्किल जगह मिली. त्योहार मनाना तो कोई हिंदुस्तानियों से सीखे, साल भर त्योहार और हर त्योहार एक उत्सव. होली और दिवाली तो विशेष हैं ही. 

मॉल में भीड़ बेइन्तहा थी. एक से एक सामान आकर्षक पैकिंग में उपलब्ध थे. बड़े-बड़े होर्डिंग्स में मॉडल्स आपको वो-वो चीजें खरीदने को प्रेरित कर रहे थे जिनका इस्तेमाल लोग सिर्फ़ स्टेटस दिखाने के लिये करते हैं. स्टेटस भी वो ही देखेगा जिसे ब्राण्ड का पता होगा. होर्डिंग्स का ये ही फ़ायदा है, मेरे जैसे लोग जो ब्राण्ड नहीं, दाम देख कर शॉपिंग करते हैं, उन्हें भी मालूम हो जाता है कि कौन-कौन से पॉपुलर ब्राण्ड मार्केट में मौज़ूद हैं. विज्ञापन की चकाचौंध इतनी आकर्षक होती है कि आपको लगने लगता है - समथिंग इज़ मिसिंग. ये हर किसी को याद दिलाते रहते हैं कि आपके पास क्या-क्या नहीं है. कोई कमज़ोर दिल का आदमी हो तो इंफेरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स में गोते लगाने लगे. विज्ञापनों का स्टैण्डर्ड इतना हाई है कि आपको लगता है कि दुनिया कितने आगे निकल गयी है और हम पीछे छूट गये हैं. शायद इन्हीं विज्ञापनों को देख कर दुष्यन्त कुमार ये कहने को विवश हुये हों-

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार

घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तिहार

मॉल की शॉपिंग के कुछ फ़ायदे हैं और कुछ नुक़सान. आपको वो चीजें दिख जाती हैं जो आपकी लिस्ट में नहीं होतीं. नुक़सान बस इतना है कि न चाहते हुये भी ख़र्च बढ़ जाता है. त्योहार में तो वैसे भी दिल दरिया हो जाता है. मेरा परिवार थोड़ा मितव्ययी है इसलिये मुझे भरोसा रहता है कि वे कम से कम फ़ालतू के समान तो खरीदने से रहे. सो मैं निश्चिन्त हो कर एक कोने में खड़ा हो गया. उम्मीद थी कि दो घण्टे तो इन्हें लग ही जायेंगे. तब तक मोबाइल पर एक ब्लॉग लिखने की गुंजाइश बनती दिख रही थी. ब्लॉग कोई शोध पत्र तो है नहीं कि जिसके लिये दो-चार जगह से काटा-पीटा-चेपा जाये. शुद्ध क्रिएटिव काम है. कोना देख के मै उसमें रम गया. बता दिया कि तुम लोग शॉपिंग जब कर लेना तो बुला लेना. अपने यूपीआई से पेमेन्ट कर दूँगा. 

तकरीबन दो घण्टे बाद दोनों लोग दिखायी दिये, दो ट्रॉली लिये. मेरा ब्लॉग ख़त्म होने को था लेकिन ख़त्म हुआ नहीं था. मोबाइल देना सम्भव नहीं था. सो उनके हाथ में एटीएम कार्ड दे कर मैं उपसंहार की प्रस्तावना बनाने लगा. सुधी पाठकों का ख़्याल रखना लेखक की ज़िम्मेदारी है. पात्रों को समझना और उन्हें इस तरह प्रस्तुत करना कि लगे वो आम आदमी की आम ज़िन्दगी की कहानी है. उसमें घटनायें-दुर्घटनायें तो हो सकती हैं लेकिन फिल्मों की तरह उसमें कोई एक्सट्रीम हीरो या एक्सट्रीम विलेन नहीं होता. हर किरदार अपनी-अपनी जगह सही होता है. बस आपको उसके दृष्टिकोण से देखना होता है. ब्लॉग में अगर पाठकों को कुछ नया न मिले तो उनका पढ़ना और मेरा लिखना दोनों व्यर्थ गया. इसी उधेड़बुन में एक घण्टा कब निकल गया, मुझे पता नहीं चला. ब्लॉग ख़त्म करके जब मैं काउन्टर की ओर पहुँचा तो दृश्य बहुत ही विकट था. हर काउन्टर पर लम्बी-लम्बी कतारें लगी थीं. अभी भी इन लोगों की लाइन में इनकी दो ट्रॉली के आगे दो ट्रॉली और लगी थीं. जिनमें सामान ऊपर तक भरा था. मुझे लगा कि ये पन्द्रह मिनट और मिल जाते तो मैं बाज़ार और इश्तहार से पीड़ित कहानी के मुख्य पात्र की व्यथा के साथ उचित न्याय कर पाता.

-वाणभट्ट

5 टिप्‍पणियां:

  1. एक बार पुनः उम्दा प्रस्तुति।समसामयिक चित्रण बाजारवाद की हावी होती संस्कृति का उवउचित मूल्यांकन

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  2. मॉल और त्योहार के समय समाचार पत्र का सटीक विश्लेषण। रुचिकर लेख।

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  3. सचमुच कमोबेश यही स्थिति है।
    रोचक लेख सर सटीक आकलन।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० नवम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. सटीक सराहनीय लेख आज का यथार्थ बतलाता।
    दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹

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