आँखों देखी
अगर वो किसान का खेत होता और बाबा की गाय घुस गयी होती तो कोई हंगामा नहीं बरपता. हमारे किसान संतोषी टाइप के जीव हैं. बिजनेस की तरह नहीं कि अपने उत्पाद और मेहनत की कीमत मनमानी माँग लें. जब बिजनेस वाला शो देखना शुरू किया, तब पता चला कि एक बार ब्रैंड बन जाये तो मार्केट प्राइस और मुनाफ़ा आप ख़ुद डिसाइड कर सकते हैं. जबकि खेती में किसान मेहनत ख़ुद करते हैं और प्राइस मार्केट निर्धारित करता है. उस पर ऊपर वाले का आशीर्वाद भी ज़रूरी है कि सब ठीक-ठाक निकल जाये तो बिचौलियों का कर्ज़ उतर जाये.
जब हमारी विभागीय कार धूल उडाती हुयी गाँव में प्रधान जी के दालान में पहुँची तो ग्रामीण भाइयों की भीड़ लग गयी. सभी को उम्मीद रहती है कि बड़ी गाड़ी आयी है तो कुछ बीज-खाद दे कर जायेगी. खेतों का मुआयना करने हमारी टीम जिधर भी जाती तो लोगों का एक छोटा लेकिन दृश्यमान हुजूम उधर बढ़ लेता. वो भीड़ में सबसे पीछे धीरे-धीरे लाठी के सहारे चला आ रहा था. उपरी शरीर पर कोई कपडा नहीं था और नीचे का हिस्सा एक मैली सी आधी धोती से कुछ ढँका-अनढँका सा था. चेहरा पूरी तरह से भाव रहित था. भीड़ का अंग हो कर भी वो भीड़ से अलग दिख रहा था. उसे देख कर मन में दया भाव का आना सहज ही था. सोचा जब चलने लगूँगा तो कुछ सहायता राशि उसके हाँथों में रख दूँगा. हमारे टीम लीडर एक खेत के पास जा कर रुक गये. और आवाज़ लगाते हुये बोले - अरे भाई सिरोही, तुम्हारी मूँग तो सब नील गाय ने खराब कर दी. कुछ भी नहीं मिलेगा. अब वो पीछे से अपनी उसी चाल से चलते हुये टीम के सामने आ गया. साहब क्या बतायें नील गाय की बहुत समस्या है लेकिन उपर वाले की मेहरबानी रही तो खेत एक-दो कुन्तल दे कर ही जायेगा. तब मुझे एहसास हुआ कि जिस व्यक्ति के प्रति मेरे मन में दया भाव आ रहा था दरअसल वो एक जमीन का मालिक है. और जिसकी आस्था इतनी प्रगाढ़ है, उसे कोई क्या दे सकता है. मै कुछ देता तो शायद वो ले भी लेता लेकिन जमींदार व्यक्ति को कुछ देने की हिमाक़त करने की मेरी हिम्मत न हुयी.
यहाँ बात अलग थी. शोध का खेत था. रात में किसी आवारा जानवर ने खेत में घुस कर फसल को तितर-बितर कर दिया था. ये ऐसा नुक्सान था जिसके पीछे वर्षों की मेहनत और शोध लगा था. उस नुक्सान का आँकलन करना कतई सम्भव नहीं था. जिसका नुक्सान हुआ उसका गुस्सा जायज़ भी था. लेकिन जहाँ खेत की फेंस कई जगह से गल के ख़राब हो चुकी हो वहाँ से किसी छुट्टा पशु का आ जाना असंभव नहीं था. बगल के खेतों में गन्ने की कटाई हो जाने के कारण संभव है कि जानवर इधर घुस गये हों. उनके लिये आम खेत और शोध खेत में फ़र्क करना सम्भव होता तो शायद वो इधर न आते. किसी ने बताया आठ-दस सूअर झुण्ड में आ कर फसल को रौंद गये. किसी ने बताया जहाँ से फेंस टूट गयी है, वहाँ से सूअरों का झुण्ड घुस आता है और फसल तबाह कर जाता है. जहाँ से ये फेन्स टूटी थी, वहाँ से इस खेत के बीच में कई और खेत भी पड़ते थे. किसी ने सूअरों के चरित्र पर प्रकाश डाला कि वो सबसे आख़िर में जो खेत होता है, वहीं विचरना पसन्द करते हैं. वो फसल खाते कम हैं और लोटते ज़्यादा हैं. शहरी सूअरों के बारे में तो हमें कुछ आइडिया है, जो नाली के कीचड़ और गन्दगी में घुस के पड़े रहने में ही आनन्द लेते हैं. सींग वाले जंगली सूअरों के बारे में उतना ही पता है, जितना जिम कॉर्बेट की कहानी में खौफ़नाक जंगली सूअर के शिकार का ज़िक्र था. लेकिन जब दृश्य को रीक्रियेट किया गया तो सीन कुछ ऐसा बना - जहाँ से फेंस टूटी हुयी थी वहाँ से दर्जन भर जंगली सूअरों ने प्रवेश किया. वो फेन्स के किनारे-किनारे या सड़क पर चलते हुये आखिरी उस खेत तक आये, जहाँ फ़सल पक के कटाई के लिये तैयार खड़ी थी. उसे देख के उनके मन उल्लास से भर गये और वो उसमें लोटने लगे.
सुबह प्रत्यक्षदर्शी सिर्फ तहस-नहस हुये खेत को ही देख पाये. ये वारदात रात में हुयी थी. जिसका कोई चश्मदीद गवाह न था. नुक्सान बहुत बड़ा था. आक्रोश उससे भी ज़्यादा. तीस साल के मेरे अनुभव में ऐसा नुक्सान शायद ही कभी हुआ हो. समाधान फेन्स को मजबूत करने में था. लेकिन नतीजा निकाला गया कि चूँकि बुजुर्ग सिक्योरिटी इन्चार्ज अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं कर पा रहा है इसलिये उसे काम छोड़ कर स्वेच्छा से रिटायर्मेंट ले लेना चाहिये. बहुत सम्भव है इस घटना की पटकथा इसी मन्तव्य से लिखी गयी हो. ऐसा भी हो सकता है.
बैक मिरर में सभी पीड़ित पक्ष चाय लड़ाने के उद्देश्य से ऑफिस बिल्डिंग की ओर बढ़ते दिखे.
-वाणभट्ट
सत्य को सामने लाने का धन्यवाद👌🙏
जवाब देंहटाएंव्यवस्था तंत्र की सच्चाई को उजागर करता लेख।👍👍🙏🙏
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