सूरज जब डूबने चला
तो गर्वोक्ति से बोला,
कौन करेगा मेरा काम
मेरे डूबने के बाद।
पिछली पंक्ति में खड़े
टिमटिमाते-सहमे से दिये ने कहा धीरे से,
बहुत निर्बल और दीन हूँ किन्तु
प्रयास करूँगा लड़ने का अँधेरे से।
माटी के उस दिये ने सहस्त्र दियों को जला दिया
सबने मिल कर काली रात को उजिया किया,
जलता दिया जग को एक सन्देश दे गया
स्वयं जलना पड़ता है जब हो अंधेरा घना।
सूर्य उगने की प्रतीक्षा में न समय गवायें
क्यों न सब मिल रात का उत्सव मनायें,
अपने अंतस में भी इक दीपक जलायें
अमावस में तारों और जुगनुओं सा जगमगायें।
शुभ दीपावली सभी को...🙏🙏🙏
-वाणभट्ट
(कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर की एक कविता से प्रेरित)
अति सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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