जात
नफरतों की दीवार की
नींव बहुत गहरी है
मज़हबी-सियासी बातों में
चाल बहुत गहरी है
जख़्म के भरने में
कुछ वक़्त तो लगता है
हर पल कुरेदने वालों की
घात बड़ी गहरी है
साज़िशों से महफ़ूज़ रह सको
तो ही गनीमत
मंज़र है स्याह और
रात बड़ी गहरी है
उगाते हैं सरसों हथेली पे
ज़ुबानों की खेती है
सियासतदानों की हर
बात बड़ी गहरी है
बाँटते हैं धर्म को
सेकते हैं रोटियाँ
बोलते हैं खून की
जात बड़ी गहरी है
- वाणभट्ट
सियासतदानों का काम यही रहा है शुरू से तभी देश आज तक एक नहीं रह सका है ...
जवाब देंहटाएंअफ़सोस ये भी होता है की लोग नहीं समझते ...
आप अपना ख़्याल रखें ...
Excellent Er. Sahab. We always curse to political parties for unwanted things happening around. I feel this is high time to have a fresh look about the happenings ......certainly you will also agree that most of us are just like politicians and in manyy cases worst .... we are selfish....we (so called educated people..) are dividing people based on caste, creed, region etc. Further, you will agree that most of us wish to point out mistakes of others and do not wish to correct onself. Anyway...Er. Prasoon ji Badhayee...
जवाब देंहटाएंकटु सच ... उम्दा पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंPoetry also
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