रविवार, 3 अगस्त 2014

फटा पोस्टर

फटा पोस्टर

एक अगस्त का अख़बार हमेशा की तरह बोर ख़बरों से भरा पड़ा था। कानपुर में बिजली कटौती। पेट्रोल-डीज़ल के दामों में बढ़ोत्तरी। सभी चैनलों के बाबा ये कहते रहते हैं कि सुबह-सुबह भगवान को याद करो तो दिन पॉजिटिविटी से भर जाये। पर अख़बार पलट लेने की बीमारी का क्या किया जाये। आम आदमी को तो इसी धरती पर जीना है। इस ग़रज़ से अख़बार पलट लेने में कोई बुराई नहीं है। सो मैंने भी अख़बार पलट लिया। और न पलटता तो अफ़सोस रहता। कोई अगर गलती से पूछ लेता कि आज कोई ख़ास खबर तो मै क्या जवाब देता। आज अख़बार में फिल्म 'पी के' का पहला प्रोमोशनल पोस्टर रिलीज़ हुआ। फिल्म गज़नी से ही आमिर के लक्षण समझ नहीं आ रहे थे। इस बार तो भाई पूरे साफ़ थे, कपड़ों से।

मै अपने एमएसटी ग्रुप के साथ कानपुर-लखनऊ मेमू में ट्रेन में जगह घेरने की जद्दोज़हद में लगा था। सारा ग्रुप एक-दूसरे के लिये जगह का जुगाड़ कर ही लेता। सब साथ-साथ बैठते। ग्रुप के खबरची त्रिवेदी ने अख़बार निकाल लिया। और पूरी तन्मयता से पढने लगा। उसके अगल-बगल बैठे बाजपेयी और लोहानी ने भी अपनी नज़रें अखबार में गड़ा दीं। पन्ने पलटते रहे और मैं 'पी के' के पोस्टर पर इनकी भाव-भंगिमा का इंतज़ार करता रहा। मुझे पूरी उम्मीद थी कि ज़ोर का झटका धीरे से लगने वाला है।

उस पृष्ठ पर पहुंचते ही तीनों की आँखें अप्रत्याशित दृश्य देख चमक उठीं। भरपूर निगाह मार के त्रिवेदी ने अखबार का वो पन्ना मेरी ओर कर दिया। देख भई ये लोग अपनी फिल्म को हिट कराने के लिये कुछ भी कर सकते हैं। अब मैंने उस पृष्ठ पर गहन दृष्टि डाली। विधु विनोद और हिरानी की फिल्म है 'पी के'। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्में मैं 'सजा-ए-मौत' और 'खामोश' के ज़माने से देख रहा हूँ। वो भी हॉल में। तभी से मै इनका मुरीद बन चुका था। 'परिंदा' और '1942 - अ लव स्टोरी' के बाद वे किसी परिचय के मोहताज नहीं रह गये। 'एकलव्य' के अलावा उनकी किसी फिल्म ने मुझे निराश नहीं किया।  यही बात कुछ हद तक आमिर के साथ भी लागू है। उसकी फिल्में हर वर्ग के दर्शक का ध्यान रखतीं हैं। तो जो सबसे ज़्यादा आश्चर्यजनक बात थी कि ये टीम अपनी फिल्मों के प्रमोशन के लिए नहीं जानी जाती। इनका नाम सुन कर लोग ख़ुद-ब-ख़ुद हॉल तक पहुँच जाते हैं। ये शायद पहली बार है जब चोपड़ा को पूरे एक पेज का विज्ञापन देना पड़ा है। आजकल फिल्मों पर दाँव इतने बढ़ते जा रहे हैं कि इस विज्ञापन से मुझे कोई आपत्ति होने से रही। पहले ही दिन में सौ करोड़ का टारगेट रख कर शाहरुख़, सलमान और आमिर को साइन किया जाता है। इसलिये ये अपने कपडे तो उतारेंगे ही और दूसरों के भी।

आमिर-सलमान-शाहरुख़ और मुझमें एक बात कॉमन है। हमारा इयर ऑफ़ बर्थ सेम है। ये बात अलग है कि मैंने बम्बई का रुख नहीं किया नहीं तो शायद खानों के बीच एक भट्ट भी शामिल होता। ये सभी अपनी फिल्मों के बारे में सस्पेंस बना के चलते हैं। चोपड़ा-हिरानी-आमिर की जो टीम आखिर तक अपनी फिल्मों के बारे में कुछ नहीं बताती थी। उसका इस तरह का विज्ञापन थोड़ा अप्रत्याशित है। लोग उनकी फिल्मों का इंतज़ार करते। जो एक सरप्राइज़ ट्रीट की तरह होतीं। हर बार नए कलेवर। हर बार नयी कहानी। हर बार किस्सागोई की नयी मिसाल। पर इस बार दिसम्बर की फिल्म के लिए अगस्त में प्रमोशन चौंकाने वाला काम था। 

मैंने पोस्टर को और गौर से देखा। तो देखा रेलवे ट्रैक के स्लीपर लकड़ी के थे। आमिर ने टू-इन-वन के पीछे अपने शरीर का बाकि हिस्सा छिपा रखा है। मोनो स्पीकर वाला साउंड सिस्टम देखे भी अरसा हो गया। ये दोनों ही बीते ज़माने की चीज़ हैं। सीन देख के कुछ ऐसा लग रहा था जैसे कोई विक्षिप्त व्यक्ति अपने कपडे फाड़ के खड़ा हो गया हो। पर सेंसर बोर्ड के डर से उसे टू-इन-वन पकड़ा दिया गया हो। इस दृश्य में अश्लीलता देख पाना मेरे बस की बात नहीं थी। ऐसा आये दिन दिखता ही रहता है। लोहानी जी बोल उठे देखो ये लोग किस हद तक गिर गए हैं। फिल्म हिट कराने के लिए नंगे होने से भी इन्हें कोई ऐतराज़ नहीं। त्रिवेदी जो पिछले सात सालों से एमएसटी कर रहा था। बोला गुरु ये मामला कुछ अपनी तरह का है। लगता है आमिर कोई एमएसटी वाला बना है। साला रोज ट्रेन लेट। ७२ किलोमीटर के सफ़र में तीन घंटे। अड़ोसी-पडोसी, यहाँ तक कि बच्चे भी पहचानना भूल गए हैं। बीवी को बस तनख्वाह से मतलब है। दस साल होते-होते शायद मेरा हाल भी ऐसा ना हो जाये। लेकिन यार अब टू-इन-वन तो मिलता नहीं आइपॉड से कैसे काम चलेगा।   

अगले दिन नैतिकता के ठेकेदारों ने इस विज्ञापन को कोर्ट में घसीट लिया। उनकी वैचारिक नग्नता  का क्या किया जाये। फिल्म तो हिट होगी ही। और मेरे साथ-साथ वो लोग तो ज़रूर देखेंगे जिन्हें इस दृश्य पर ऐतराज़ होगा। टीम को बधाई एडवान्स में। ये तो बानगी है अभी और हथकण्डे आजमाने बाकी हैं।  



- वाणभट्ट 

14 टिप्‍पणियां:

  1. सब अपनी अपनी नज़र से देखें. फिल्म तो आएगी ही. हम भी इंतज़ार कर रहे हैं.

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  2. फिल्म हिट करने, करवाने के नए नए हथकंडे अपनाते हैं सितारे ... फिर खुद पे ही केस भी करवा दते हैं ... कंट्रोवर्सी हो तो फिल्म भी हिट ... सब मिला जुला कारोबार है ...

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  3. क्या कहें...? पर पब्लिसिटी के लिए हर हद पार करना कितना सही है ? बाकि तो सबकी अपनी अपनी नज़र है और नज़रिया भी

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  4. फिल्म हिट कराने के लिए क्या क्या किया जाता है, लेकिन आमिर से ऐसी आशा नहीं की जाती...

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  5. ताज्जुब है इस देश में अच्छी फ़िल्में क्यों नहीं बन पातीं ! मंगलकामनाएं आपको !

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  6. आमिर फिल्में अच्छी बनाता है पर उसे लोकप्रिय बनाने के लिए विचित्र - विचित्र हथकण्डे अपनाता है । यह उसकी पुरानी आदत है ।

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  7. आमिर-सलमान-शाहरुख़ और मुझमें एक बात कॉमन है। हमारा इयर ऑफ़ बर्थ सेम है। ये बात अलग है कि मैंने बम्बई का रुख नहीं किया नहीं तो शायद खानों के बीच एक भट्ट भी शामिल होता।.. :)

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  8. फिल्म तो हिट होगी ही। इंतज़ार कर रहे हैं :)

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  9. यह सब फिल्मबाजी है
    पैसा कमाने के लिए सब कर सकते हैं ये लोग ----
    बहुत मजेदार लिखा है आपने ---


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  10. आज़ाद दुनिया है भईया यहाँ तो.. जो करो करो, जो कहो कहो :)

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  11. हो सकता है कि फिल्म में यह महज एक सेकंड का दृष्य हो पर विज्ञापन से अगर भीड जुटती है तो क्यू नही।

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  12. हम तो समझ ही नहीं पाते कि किस मुद्दे का समर्थन करना चाहिये और किस का विरोध। लोग ’सत्यमेव जयते’ देखकर पिघल रहे थे, गौरवान्वित हो रहे थे और हम तब भी किंकर्तव्यमूढ़ थे। ’थ्री इडियट्स’ की कॉमेडी मुझे अश्लील लग रही थी लेकिन लोग हँस हँसकर निहाल हो रहे थे। स्कूल कालेज के छात्र-छात्रायें ’बलात्कार’ शब्द का उच्चारण एक दूसरे के साथ मजाक करने में धड़ल्ले से कर रहे थे, मेट्रो में खूब देखा और सुना। मुझे लगता था कि ये साजिश है जनता को इन शब्दों से 'used to' करने की लेकिन जब लोगों को एन्जॉय करते देखता तो प्रतिक्रिया देने से खुद को रोक ही लेता था।
    बहरहाल फ़िल्मी भांडों के ऐसे सद्प्रयासों का सम्मान करना ही चाहिये, जनजागरण लाने के लिये बेचारों को इस हद तक उतरना पड़ता है।

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  13. बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें....

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