दंश
नारी
जब माँ बनती है
तो बड़े गर्व से कहती है
मैंने बेटा जना
जनखों की
बलैयों पे
देती है सब लुटा
कभी
अंदर गहरे
उतर जाती है
ये विडम्बना
पर माँ खुश है
कि
नारी होने का दंश
जो
इस देश में उसने भोगा
उसकी संतति को
न भोगना होगा
- वाणभट्ट
नारी
जब माँ बनती है
तो बड़े गर्व से कहती है
मैंने बेटा जना
जनखों की
बलैयों पे
देती है सब लुटा
कभी
अंदर गहरे
उतर जाती है
ये विडम्बना
पर माँ खुश है
कि
नारी होने का दंश
जो
इस देश में उसने भोगा
उसकी संतति को
न भोगना होगा
- वाणभट्ट
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.03.2014) को "साधना का उत्तंग शिखर (चर्चा अंक-१५४४)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंकैसी विडंबना ..... ?
जवाब देंहटाएंशीर्षक हटा दिया...धन्यवाद...
हटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE पर आपके सुझावों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसबला होकर भी अबला है नहीं जानती जो अधिकार ।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सत्य...किन्तु अपने ही घर में अधिकार के लिए लड़ना पड़ता है... बेटी, बहन और माँ को...
हटाएंदुखद स्थिति से बाहर निकलना होगा हम सबको।
जवाब देंहटाएंये विडंबना है या कोई ग्रंथि .... समाज या पुरुष सत्ता का दर जिसने कुंद कर दिया है नारी सोच को भी ... प्रभावी रचना ...
जवाब देंहटाएंइस स्थिति से बाहर निकलना होगा हम सबको।
जवाब देंहटाएंएकदम सार्थक शब्द
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