गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

सम्बल

सम्बल 

झुर्रियों से लदी 
लाठी के सहारे रेंगती बुढ़िया  

चुम्बक लगी लकड़ी से 
लोहा बटोरती बंजारन सी औरत 

कुछ सिक्कों के लिए दिन-रात 
मेहनत करता अपाहिज भिखारी 

ट्रेन से कटी जाँघ पर 
कृत्रिम पाँव बाँधता आदमी 

बजबजाती गलियों में 
घोड़ी के आगे नाचते लोग

तेल चुपड़े बालों को गूँथ 
चटक बिंदी लगाती मजदूरन 

कूड़े में खज़ाना खोजती 
अबोध लड़कियाँ 

गंदे मैले कपड़ों में 
चमकती आँखें वाले बच्चे 

झोपड़ी से आती 
मासूम की किलकारी 

सबूत हैं जीवन का  

जो 
झकझोर के उठा देते हैं 
सोयी पड़ी
जिजीविषा को

और ज़िन्दगी बढ़ जाती है 

- वाणभट्ट   

आईने में वो

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