माँ को याद करने के बहाने ढूँढते हैं अब
जैसे अपने ही घर का पता पूछते हैं अब
चलने-फिरने से भी कभी बेज़ार थे
आँचल से निकल दुनिया घूमते हैं अब
तूने अपना सब कुछ दिया बिना शर्त
अपने पास तेरे लिए न वख्त है अब
खुदगर्जी के रंग में सबने खुद को रंग लिया
माँ, तू न जाने किस ज़माने में जीती है अब
वख्त तो करवट बिन आवाज़ बदलता है
दुनिया बदली, तू क्यों नहीं बदले है अब
बूढी हो गयीं हैं तेरे माथे की सलवटें माँ
पर तेरी आँखों में सितारे नज़र आते हैं अब
तेरी दुआ तो हर पल रहती थी साथ मेरे
दुश्मनों के माँ की दुआएं भी मेरे साथ हैं अब
- वाणभट्ट