कलम जवाब देती है...
क्या-क्या लिखवाना चाहते हो तुम
मुझसे
देश और दुनिया की तुमको है
क्या पड़ी
अपनी-अपनी देखो, और देखो
कितनी सुखद है ज़िन्दगी
कितना घिसते हो मुझको
सिवाय मुझे बदलने के
और मिलता है
क्या तुमको
कुछ भी तो नहीं बदला
कितना लिखा तुमने
न्याय और अन्याय पर
दरकते विश्वासों और
समाजी सियासत पर
और हर बार थक के बैठ गए
कि अब नहीं उठाऊंगा लेखनी
फिर भी मेरा साथ नहीं छोड़ पाए
अपने ज़ज्बात नहीं छोड़ पाए
अब भी
मुझे छाती से लगाये घूमते हो
ज़माने के गम दिल में समाये घूमते हो
दिल की धड़कन और
बी.पी. बढ़ाये घूमते हो
कभी मेरा भी ख्याल करो
मेरे भी कुछ ख्वाब हैं
कुछ कल्पनाएँ हो आसमानी
लिखूं मै भी कुछ रूमानी
पर हर बार
तुम हो कि उतर आते हो
यथार्थ के धरातल पे
बिना मेरी परवाह किये
डूब जाते हो दुनिया कि हलचल में
माना
तुम्हारे दिल का गुबार है
मुझे क्या, मेरी मर्ज़ी के बिना
मेरे साथ ये तो बलात्कार है
है ना...
- वाणभट्ट
क्या बात है लिखते भी हो और ताने भी मारते हो, आखिर भट्ट साहब जो है।
जवाब देंहटाएंकुछ भी तो नहीं बदला
जवाब देंहटाएंकितना लिखा तुमने
न्याय और अन्याय पर
दरकते विश्वासों और
समाजी सियासत पर...main aahat tum aahat .... mila kya hai
बात तो कलम की सही है|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंलेखनी के मध्यम से दर्द को खूब उभारा है ..
जवाब देंहटाएंaahat man ki dard bhari aawaz ko lekhni ka roop mila hai...bahut khub
जवाब देंहटाएंखूब कही कलम के मन की.....
जवाब देंहटाएंशायद यह लेखनी नहीं कवि के मन के ही विचार हो सकते हैं। जिस दिन लेखनी थम गई संसार तो नष्ट ही समझो।
जवाब देंहटाएंमनोज जी, यकीन मानिये ये राय मेरी लेखनी की है...जो आजकल डिप्रेशन में है...
जवाब देंहटाएंकिसी ने फ़रमाया था...
कलम के सिपाही सो गये
तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे...
बेचें तो बेचें मेरी बला से...यही लेखनी कहना चाहती है...
कलम की बात खूब कही!
जवाब देंहटाएंमाना कि दर्द बहुत है पर इसके इतर भी बहुत कुछ है . आशा है कि जल्द ही डिप्रेशन से बाहर आ जायेगी आपकी कलम.
जवाब देंहटाएंचलिये .इसी बात पर एक रूमानी कविता हो जाये. लेखनी भी खुश
जवाब देंहटाएंhttp://kuchmerinazarse.blogspot.in/2013/06/5.html
जवाब देंहटाएंलेखनी फिर भी साथ नहीं छोडती ..
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