अकेले हम, अकेले तुम
कितना अलग है,
आदमी,
आज आदमी से.
अपने में ही लिपटा.
अपने में ही खोया.
सबके हैं अपने सपने.
सब के सब हैं बेगाने से.
ढपली है सबकी अपनी.
राग सभी के हैं अपने.
ऐसी भी क्या लाचारी है,
कि सब बेजुबान से हैं.
एक ही छत के नीचे,
अब कितने मकान से हैं.
- वाणभट्ट
कितना अलग है,
आदमी,
आज आदमी से.
अपने में ही लिपटा.
अपने में ही खोया.
सबके हैं अपने सपने.
सब के सब हैं बेगाने से.
ढपली है सबकी अपनी.
राग सभी के हैं अपने.
ऐसी भी क्या लाचारी है,
कि सब बेजुबान से हैं.
एक ही छत के नीचे,
अब कितने मकान से हैं.
- वाणभट्ट
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