शनिवार, 15 जुलाई 2023

एक ग़ज़ल - बेवजह

एक ग़ज़ल - बेवजह


कभी आईने में दिखते अक्स पर गौर करना...

फिर देखना धीरे-धीरे अपनी परतों का उधड़ना...


हर शख़्स जानता है दूसरे को करीब से...

बहुत मुश्किल है ख़ुद का सामना करना...


रिश्तों में अजब से जज़्बात हैं शामिल...

कहने को अपने हैं, समझे तो बेगाना...


दुनिया की रफ़्तार भी गजब की है...

सब चाहते हैं सबसे आगे निकल जाना...


बारिश कभी कम सर्दी कभी ज़्यादा...

उस पर चाहते हो तुम क़ुदरत को नचाना...


घर पे रहो तो बाहर निकलने का करता है दिल...

साथ हो जब अपने तो कैसा घबराना...


एक दिन तो जान जायेगा जीने का फ़लसफ़ा...

दूसरों के फ़लसफ़े ख़ुद पे न आजमाना...


ख़ुद से ही ख़ुद को भी कभी दाद 'भट्ट' दे ले...

मसरूफ़ ज़माने को मुमकिन नहीं फ़ुर्सत मिल पाना...


वाह-वाह क्या बात है...ये स्वरचित पंक्तियाँ हैं...योगेश जी को धन्यवाद...एक उम्दा ग़ज़ल लिखवाने के लिये...😊


-वाणभट्ट

3 टिप्‍पणियां:

  1. दिगंबर नासवा16 जुलाई 2023 को 8:49 am बजे

    ग़ज़ब … बहुत गहराई से रखा है अपनी सोच को … उन्हें शेर कहना ज़्यादा अच्छा है …

    जवाब देंहटाएं
  2. ज़िंदगीं का सटीक फ़लसफ़ा बयान करतीं सुंदर पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

जीनोम एडिटिंग

पहाड़ों से मुझे एलर्जी थी. ऐसा नहीं कि पहाड़ मुझे अच्छे नहीं लगते बल्कि ये कहना ज़्यादा उचित होगा कि पहाड़ किसे अच्छे नहीं लगते. मैदानी इलाक...