स्टेशन पर गहमागहमी थी। सभी ट्रेनें लेट चल रही थीं। ठंड का हाई एलर्ट जारी हो चुका था। मौसम के साथ ट्रेनों को भी जुकाम हो जाता है।
मैं भी जैकेट, दस्ताने और कनटोप से लैस हो कर अपनी ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था। वेटिंग रूम ठसाठस भरा होने के कारण मैने बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर ही खड़े रहने का निर्णय लिया।
रात के दो बजे का समय रहा होगा। एक बुज़ुर्ग दम्पति बन्द पड़ी बुक स्टाल के सामने कम्बल बिछा और ओढ़ के बैठे हुये थे। बुज़ुर्ग की उम्र पचहत्तर के आसपास लग रही थी। उनकी पत्नी की भी उम्र सत्तर के ऊपर रही होगी। इस ठंड को भगाने के लिये चाय ही सबसे मुफ़ीद लग रही थी, सो मैं चाय की दुकान की ओर बढ़ गया।
पत्नी ने जरूर चाय की फ़रमाइश की होगी, जो महोदय को चाय की दुकान तक आना पड़ा। उम्र के कारण या ठंड के कारण, कहना मुश्किल है, उनके हाथों में चाय के कप कुछ काँप से रहे थे। मेरी चाय खत्म हो चुकी थी, लेकिन उनको हेल्प ऑफ़र करके उनके स्वाभिमान को ठेस लगाने का मेरा मन नहीं किया। दोनों बुज़ुर्गों को चाय पीते देखना एक सुकून भरा दृश्य था।
ढाई-पौने तीन के करीब उनकी ट्रेन का एनाउंसमेंट हो गया। गाड़ी को चार नम्बर प्लेटफ़ॉर्म पर आना था। हम लोग एक नम्बर पर थे। बुज़ुर्ग ने उठ कर दोनों कम्बल को तहा कर एक पिट्ठू बैग में डाल दिया। दोनों हाथों में अन्य दो बैग को लेकर वो बढ़ने ही वाले थे कि पत्नी ने एक बैग पकड़ लिया। आप एक बैग तो मुझको दे दीजिये। पति ने जोर दिया - कोई बात नहीं हल्के ही तो हैं। लेकिन पत्नी ने एक हल्का सा दिखने वाला बैग जबरदस्ती छुड़ा लिया।
पति ने उसे रुकने का इशारा किया। फिर पत्नी के बैग को खोल कर उसमें से दो लीटर पानी की बोतल को निकाल कर अपने बैग में डाल लिया। इस मर्दानगी पर कौन न हो जाये फ़िदा। मुझे भी होना ही था।
-वाणभट्ट
Wow!what a perception!!हृदयस्पर्शी🙏🙏
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ।
मर्द को दर्द नहीं होता।ये एक यथार्थ है कि सिर्फ आत्मानुभूति?
जवाब देंहटाएंरोचक एवं भावपूर्ण लेख👌🙏🙏..... ट्रेनों को जुकाम हो जाता है और शीर्षक मर्दानगी बहुत खूब लिखा।
जवाब देंहटाएंवाह ! यह शाश्वत प्रेम की मूक अभिव्यक्ति है
जवाब देंहटाएंऐसा वैसा न समझें पत्नियों को ... प्रेम कही तो दिखाने दें उन्हें भी ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह! भावपूर्ण रचना।
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