बारात निकलने में अभी समय था। गर्मी और उमस इतनी की पानी से नहाने के तुरन्त बाद आदमी पसीने से नहा जाये। अगल-बगल डिओ से तर करके उसे कुछ महकने का एहसास हुआ। बाकी शरीर पर ठंडा-ठंडा कूल-कूल टेलकम पाउडर भभूत की तरह मल लिया। उसे लगा कि शरीर के सारे पोर उसने सील कर दिये। अब देखें पसीना कहाँ से निकलता है।
शो बिजनेस वाला उसका काम था। इस तरह के हाई-एनर्जी वाले कामों में दारू-गुटका कब अत्यावश्यक सामग्री बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता। ये बात अलग है कि ऐसी आदतें शरीर को अन्दर से खोखला भी कर देती हैं। आदमी ने कपड़ों को शायद इसीलिये ईज़ाद किया होगा कि शरीर मेन्टेन करने से कपड़े मेन्टेन करना ज्यादा आसान होगा। और संज्ञा भी दी तो परिधान की। शरीर चाहे कितना भी बेडौल हो जाये ये परिधान सब कमियों को छिपा कर परी जैसी फिलिंग देता है। प्रेस कर लो, कलफ़ कर लो। कमर कमरा बन जाये तो फेंटा ढीला कर लो। बड़ी सुविधायें हैं, तोंद कम करने के अलावा। अपनी आदतों के कारण आदमी अन्दर से कितना ही खोखला हो गया हो लेकिन जब ड्राइक्लीन किया हुआ सूट पहनता है तो जेहन में लाट साहबी सवार हो जाती है। हंस बने कौवे की चाल-ढाल दोनों बदल जाती है।
टाइट फिट ब्लैक सूट और वाइट शर्ट उसकी पसंदीदा ड्रेस थी। वैसे शादियों के स्टैंडर्ड के अनुसार उसने कपड़े भी एलआईजी, एमआईजी और एचआईजी टाइप के सिलवा रखे थे। बरातियों का जैसा स्टैंडर्ड होता उसी हिसाब से वो ड्रेस पहनता। अलबत्ता कलर कम्बीनेशन वही रहता। मैयत में भी कभी-कभी बैंड बजाना पड़ जाता था, उसके लिये कुर्ते, शेरवानी और अचकन भी बनवा रखे थे। आज हाई क्लास वाली शादी थी। उम्मीद थी न्योछावर भी अच्छा मिलेगा। लेकिन उफ़ ये उमस भरी गर्मी।
पैंट-शर्ट पहन कर वो टाई पहनने के लिये आदमक़द आईने के सामने खड़ा हो गया। अपने चेहरे को देख कर मुस्कराया। लेकिन तम्बाखू से ज़र्द पड़ गये दाँतों को देख कर उसका कॉन्फिडेंस लड़खड़ा गया। मूँछों को कंघी से नीचे खींच कर पुनः मुस्कराने की कोशिश की। अब थोड़ा ठीक लगा। टाई लगा कर उसने उस उमस भरी गर्मी में मन-मसोस कर सूट के तीनों पीस पहन लिये। ये उसका ड्रेसिंग सेंस ही उसको बैंड के बाकी मेम्बर्स से अलग करता था। उसे पूरी बैंड को लीड करना होता था। जब बाराती हर्षातिरेक में नाच रहे हों, तो उन्हें ये पहचानने में दिक्कत न हो कि न्योछावर किसे देना है, इसलिये भी ये टीम-टाम जरूरी था।
वो पूरी तरह सूट-बूट में तैयार हो चुका था जब उसे कनपटी के बगल से बहते पसीने का आभास हुआ। मन हुआ टाई उतार दे लेकिन फिर वो बैंड मास्टर न लगता। पैसे वालों की बारात थी। शायद मामला दो-चार घंटे तक खिंच जाये। ऐसा सोच कर उसने कोट उतारना ही उचित समझा। सूट के तीसरे पीस और मैचिंग टाई में उसने अपनी बाँकी छवि को एक बार फिर दर्पण में निहारा। कॉन्फिडेंस दोहरा हो गया। अब वो सही से बैंड को लीड कर सकता है।
बाराती सज-धज के तैयार थे। बैंड वाले धीरे-धीरे ढम-ढम कर रहे थे। बीच-बीच में भोंपू वाले भी पों-पों करके अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते। घुड़चढ़ी के बाद बैंड अपनी पूरी रौ में आ गया। शहनाई पर लीड बैंड मास्टर के हाथ ही थी। उसने मीठी सी धुन निकाली - टीं टीं टीं टींटों टैन्टर (आई एम अ डिस्को डान्सर) भोंपू वालों ने साथ दिया - पों-पों-पों-पों और बारात चल पड़ी। बैंड मास्टर ने अपना पूरा ध्यान न्यौछावर देने वाले जीजा, फूफा और मामाओं पर केंद्रित कर दिया।
- वाणभट्ट
एक सुंदर यथार्थ छायांकन।
जवाब देंहटाएंबैंड मास्टर की भी मजबूरी । बहुत अच्छा चित्रण किया है ।
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