ओल्ड होम
अम्मा-बाबू उसी दिन
बन गये भगवान
जिस दिन धरा पर
हुआ मेरा पदार्पण
जन्मों भटकने के पश्चात
मिला था मानव जीवन
आप ही तो थे
माध्यम
निर्बोध शिशु की
छोटी थी अभिलाषा
सामीप्य आपका
प्रेम और ममता
जन्म लेते ही
मिल गया विशाल ऋण
जिससे होना है असम्भव
उऋण
समय के साथ शिशु
बढ़ता गया प्रति दिन
लग गया प्रयास में
करने पूरे आपके स्वप्न
शिशु के सुख छोटे थे
वो था निर्लिप्त
इस अवस्था में भी
आप हैं आसक्त
समय के साथ आप
घटते गये
घर-परिवार पालने में
दुनिया से कटते गये
अब जब आपके स्वप्न
फड़फड़ा कर उड़ने को हैं तैयार
आपको लगने लगा
निवेश हो जायेगा बेकार
कौन देखेगा वृद्ध अशक्त को
दूध के ऋण याद दिलायेंगे
तो उड़ते पंछी
वापस आ जायेंगे
आपकी आपेक्षायें बहुत बड़ी हैं
कतिपय सम्भव नहीं उन्हें पूरा कर पाना
आप चाहते हैं बच्चों का
आँख, कान और घुटना बन जाना
समय की आपा-धापी पहले भी थी
अब भी है, कल और बढ़ेगी
सब कुछ तो होगा
किन्तु समय की कमी रहेगी
आपका दिया इस जीवन में
कैसे लौटा पाउँगा
पीढ़ी का अन्तर
कैसे पाटूंगा
जो आपने दिया मुझे
ये विश्वास दिलाता हूँ
ये विश्वास दिलाता हूँ
वो मै अपने बच्चों को
लौटाता हूँ
यही प्रकृति है
जो व्यक्ति अपने पितरों से पाता है
उन्हें नहीं
अपने बच्चों को लौटता है
आकाश में उड़ने से रोकने का
अधिकार नहीं है किसी भगवान को
उड़ने का सामर्थ्य दिया
तो उड़ने भी दो
मेरे बच्चों, मै मुक्त करता हूँ
तुम्हें इस ऋण से
कभी भगवान बन के आये थे तुम भी
मेरे जीवन में
हम बराबर के भगवान् हैं
और भगवान स्वार्थ से हैं परे
तुम उड़ो अपने आकाश में
हम भी अपना आकाश बना लेंगे
व्यस्त हो रहे जीवन में
ये कटु सत्य अपनाना होगा
बच्चों के पंखों को सबल करने
हमें अपना ओल्ड होम बनाना होगा
-वाणभट्ट
उड़ना तो है ही,पर जब भी मन थके, एक बसेरा है आशीषों का, यह याद रखना, रुकना नहीं है, लेकिन कुछ छोड़ भी मत देना । हम अपना ख्याल रखेंगे, लेकिन कभी एक स्पर्श की ज़रूरत हो तो दे जाना
जवाब देंहटाएंNice...
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप कहाँ पीछे हटते हैं अपना कर्तव्य निभाने से...हाल ही में 54 वर्ष कम्प्लीट किये हैं...बेटी और बेटा अब उस स्टेज पर हैं...कभी भी उड़ सकते हैं अपने आकाश में...तब लगता है उस परिकल्पना को मूर्त रूप देने का समय आ रहा है...ये उसी की अभिव्यक्ति है...हर तरफ देखता हूँ बुजुर्ग दम्पति बच्चों से दूर उनकी राह में जीवन व्यतीत कर रहे हैं...तब लगता है परिंदों के पर क्यों बांधना...अपने इष्ट-मित्रों का एक ग्रुप बना कर रहा जाये...
जवाब देंहटाएंयही यथार्थ है, मुझे बुला लेना अनुज, ओल्ड होम ही सही कोई तो पकोई तो परिचित हो ...
जवाब देंहटाएंअवश्य...चार बुजुर्ग अलग अलग रहें...इससे अच्छा ये न होगा कि एक छत के नीचे रहें...खोज रहा हूँ लाइक माइंडेड जो अपने मकान प्रेम से मुक्त होने को तैयार हों...😊
हटाएंयही सत्य है इस जीवन का अब! यह कविता टाईप नहीं..कविता इस टाईप की होनी चाहिये. बधाई!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका...👍
हटाएंVery correct
जवाब देंहटाएंकितनी सकारात्मकता से यथार्थ स्वीकारा है | यह बहुत कुछ सिखाने समझाने वाला भाव | कुछ छूटने की पीड़ा से जूझ रहे मन का आभार स्वीकारें | जीवन सचमुच सरल नहीं |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका...👍
हटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंएक ऐसा सत्य जो आज तो फिर कई स्वीकार कर लेते हैं पर है मुश्किल.
कई बात हम अपने सपने भी लाद देते हैं बच्चों पर और दिए जब वो उड़ना चाहते हैं ... रोकने की कोशिश करते हैं ...
मानव मन यही है कभी स्वार्थी तो कभी उदार ...
मन की इस आपाधापी को US द्वन्द को उभारा है आपने और फिर मुक्ति का अहसास दे कर सोचने की दिशा भी प्रदान की है ...
बहुत सी लाजवाब रचना ...
दिगम्बर जी...धन्यवाद आपका...👍
हटाएंyesterday,today,tomorrow
जवाब देंहटाएंबनाओ भाई ओल्ड होम।इस यज्ञ में मेरी भी एक आहुति रखना।
जवाब देंहटाएंVaah👌
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंATI Sunday air shandaar
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