मिशन जीवन - I
चंद्रमा की सतह पर एक अत्याधुनिक भवन के सभा कक्ष में इसरो के कई मुख्य वैज्ञानिक और अधिकारी भारत के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में व्यस्त थे। जब से चंद्रयान ने चंद्रमा पर पानी होने की पुष्टि की, भारत का अंतरिक्ष मिशन काफी आगे निकल चुका है। ऑॅक्सीजन की जीवनी और हाइड्रोजन की ऊर्जा शक्ति दोनों को मिला कर इसरो ने चंद्रमा पर ही अपना अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र स्थापित कर दिया। इस प्रकार पृथ्वी के वातावरण और गुरुत्वाकर्षण से निकलने में जो ऊर्जा व्यय हो जाती थी उसका उपयोग यान को गति देने में किया जा सकता था। चन्द्रमा से प्रक्षेपण करने पर पृथ्वी से छह: गुना ज्यादा गति प्राप्त की जा सकती थी। इस नए मिशन के लिए यान को पृथ्वी की तुलना में १०० गुना अधिक एस्केप वेलोसिटी के लिए डिज़ाइन किया गया था। गणनाओं के अनुसार चंद्रमा से १००० किमी प्रति सेकेण्ड की स्पीड प्राप्त करना कठिन न होगा। मिशन का उद्देश्य अनंत अंतरिक्ष में गोता लगाने के सामान था। एक दिशा में बढ़ते हुए ब्रम्हांड में किसी जीवन की तलाश। योजना 'राह पकड़ तू एक चलाचल पा जायेगा मधुशाला' से प्रभावित जान पड़ती थी। लक्ष्य था ४०० साल तक यान को आगे ले जाना और उतना ही समय वापसी के लिए नियत किया गया था। निकटस्थ तारों में जीवन की सम्भावनाएं खोजने के लिए तक़रीबन ३५० वर्षों का समय लगाने कि सम्भावना थी। चंद्रमा से प्रक्षेपण का ये पहला मिशन था। इसे ले कर सभी वैज्ञानिक उत्साहित थे। प्रधानमंत्री और पूरा देश भी इस प्रोजेक्ट में विशेष रूचि रखते थे। मिशन के मुखिया डॉ संदीपन ने प्रोजेक्ट की पूरी रूप रेखा प्रधानमंत्री महोदय के समक्ष प्रस्तुत की।
अंतरिक्ष यान चार मुख्य इकाइयों का संयोजन था। पहला गाइड यूनिट : यान की दिशा पर नियंत्रण हेतु। इसमें यान चालकों के लिए कॉकपिट और रहने की व्यवस्था थी। इस यूनिट में ऑक्सीजन और तापमान का स्तर पृथ्वी के हिसाब से डिज़ाइन किया गया था। इसके फ्रंट एंड पर लगा था, इन्फ्रारेड गाइडेड टेलिस्कोप जो एक प्रकाश वर्ष दूरी तक आकाश के भीतर देख सकने की क्षमता से लैस था। इसकी सहायता से चालक को यान की दिशा नियंत्रण का निर्णय करने में मदद मिलती। गाइड यूनिट से ही लगी हुयी ट्रैकिंग यूनिट थी। इस यूनिट का कार्य स्पेस में यान की स्थिति को स्पष्ट करना, हाई रेजोल्यूशन कैमरे से यान के यात्रा मार्ग के चल-चित्र भेजना और वापस लौटते समय जाने वाले मार्ग को ट्रैक करते हुए ऑटो मोड में यान को वापस पृथ्वी की कक्षा तक लाना। तीसरा यूनिट फ्यूल या ईंधन के लिए समर्पित था। मुख्य रूप से ये पानी का वृहद् टैंक था। जिसके साथ एक हाइड्रोजन-ऑक्सीजन स्प्लिटिंग डिवाइस लगी थी। जो फ्यूल या ऑक्सीजन की आवश्यकता के अनुसार पानी को विभाजित कर लेती थी। निर्वात में एक बार गति प्राप्त कर लेने के बाद किसी तरह का घर्षण का होने के कारण यान की गति में कोई ह्रास नहीं होता। ईंधन का उपयोग सिर्फ यान की दिशा में परिवर्तन के लिए करना था। ये स्प्लिटर यान के कक्ष में ऑक्सीजन का स्तर बनाये रखता था। चौथी यूनिट फ़ूड यानि खाद्य यूनिट थी। मिशन के यात्रियों के ऊर्जा या कार्य शक्ति को बनाये रखने के लिए भोजन आवश्यक था। भोजन का मुख्य स्रोत नूट्रीशनली एनरिच्ड टेबलेट्स थीं और पीने के लिए एनर्जी ड्रिंक्स। इस यान में एक विशेष लघु अंतरिक्ष यान की भी व्यवस्था की गयी थी। मुख्य यान को ग्रहों की वाह्य ऑर्बिट में छोड़ कर जीवन की तलाश में ग्रह के वातावरण में प्रवेश किया जा सकता था। इस लघु यान में लगीं प्रोब्स के द्वारा उस ग्रह के वातावरण के आंकड़ों के आधार पर जीवन की सम्भावनाओं को सुनिश्चित किया जा सकता था। आवश्यकता पड़ने पर इसे किसी ग्रह की भूमि पर उतारना और उसे वापस मुख्य यान तक वापस लाना सम्भव था। खाद्य यूनिट के बारे में वैज्ञानिकों ने सूचना गुप्त रखी थी। उन्हें डर था कि यदि मैन-मिशन की खबर लीक कर गयी तो पूरे विश्व के मानव वादी संगठन इस अभियान का विरोध शुरू कर देंगे।
यान की संरचना की संक्षिप्त जानकारी देने के बाद डॉ संदीपन ने गम्भीर लहजे में कहना शुरू किया। मिस्टर प्राइमिनिस्टर हम इस मिशन पर पूरे ५०० मिलियन डॉलर खर्च कर रहे हैं। ये मिशन अगले ६००-८०० सालों के लिए है। ये हम सभी पृथ्वी वासियों के लिए जीवन में एक बार वाला मिशन है। महोदय इसलिए मै आपसे कुछ सीमाओं के आगे जाने की अनुमति चाहता हूँ। हम इसे मैन-मिशन बनाना चाहते हैं। अब तक मानव रहित यानों को चंद्रमा से आगे भेजा गया है। ये अभियान मानव सहित ब्रम्हांड की अथाह गहराइयों में खोज के लिए आरम्भ किया गया है। अंतरिक्ष में यान भेज देने से हमारा काम सिर्फ फ़ोटो तक ही सीमित रह जाता है। यान यदि किसी अन्य ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आ जाये तो उसका मिशन वहीँ समाप्त समझिये। यदि हम इसमें किसी मानव को भेजते हैं तो निश्चय ही यान पर नियंत्रण बनाये रखना आसान हो जायेगा। यान में लैस इन्फ्रारेड टेलीस्कोप की सहायता से चालक अधिकतम एक लाइट इयर दूर तक देख सकता है और उसी के अनुसार अपनी यात्रा की दिशा निर्धारित कर सकता है। ये सुविधा अनमैन्ड मिशन में नहीं मिल सकती। उसे धरती या चंद्रमा पर स्थित कंट्रोल रूम से ही चालित करना पड़ता है।अंतरिक्ष रूपी समुद्र में यदि जीवन तलाशना है तो हमें गोता लगाने जैसा है। आप अंतरिक्ष में जितना अंदर घुसते जाएगे ब्रम्हांड में जीवन के खोज की सम्भावनाएं उतनी बढती जाएंगी। हाँ लौट के वापस आने की सम्भावना भी उतनी ही क्षीण होती जायेगी। पर मुझे उम्मीद है कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की रिवर्स ट्रैकिंग डिवाइस की सहायता से यान सकुशल वापस आ सकेगा। यदि मानव जीवित लौट आता है तो न सिर्फ भारत कि अपितु सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अनमोल उपलब्धि होगी।
प्रधानमंत्री की व्यग्रता बढती जा रही थी। संदीपन जी आप क्या कहना चाहते हैं। निकटतम तारे की कक्षा में घुसने में हमें ३५० साल लगते हैं और एक आदमी को जो सौ-पचास साल में ख़त्म हो जायेगा हम उस यान में भेज दें। ये तो जान बुझ कर किसी को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है और आप इस पर मेरी सहमति भी चाहते हैं। नहीं ये कदापि सम्भव नहीं है। सर मै एक नहीं दो लोगों को इस मिशन पर भेजना चाहता हूँ। इसके लिए एक स्त्री और पुरुष युगल को स्पेशल ट्रेनिंग दी गयी है। ये दोनों भारतीय योग पद्यति से एक मिनट में मात्र १-२ साँस प्रति मिनट पर जीवित रह सकते हैं। शुद्ध ऑक्सीजन के साथ ये २-३ मिनट में एक साँस पर भी रह सकते हैं। कम सांसों से शरीर का मेटाबॉलिक रेट कम हो जाता है। ऑक्सीडेशन और फ्री रेडिकल्स की प्रक्रिया क्षीण पड़ जाती है। जिससे उम्मीद है कि ये खुद को ८००-१००० सालों तक जीवित रखने में सफल होंगे। पृथ्वी पर दीर्घ आयु प्राणियों की श्वसन दर अत्यंत कम होती है।कछुए ४-५ श्वांस प्रति मिनट की दर से आसानी से ४००-५०० साल जीवित रह लेते हैं। इस युगल की आयु मात्र २० वर्ष है। बचपन से इन्हें इसी मिशन के लिए तैयार किया गया है। इन्हें यान चलाने, उसके रख-रखाव और ज़ीरो ग्रेविटी पर रहने का भी प्रशिक्षण दिया गया है। ये कम ऑक्सीजन और जीरो ग्रेविटी पर भी एक सामान्य मानव कि तरह व्यवहार करने में सक्षम हैं। निर्वात और ज़ीरो ग्रेविटी पर वैसे भी में जीर्णन की गति मंथर पड़ जाती है। ये दोनों भी इस मिशन के प्रति आश्वस्त हैं और तत्पर भी। इन पर किसी तरह की कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। बल्कि ये स्वयं इस पुनीत कार्य में आपका आशीर्वाद चाहते हैं। प्रधानमंत्री जी ने कहा मित्रों मै कैसे अपने होनहारों को जानबूझ कर मौत के मुंह में धकेल दूँ। पर डॉ संदीपन अपनी योजना के प्रति कृतसंकल्प लग रहे थे। उन्होंने कहा यदि लोग ऐसे ही भयभीत हो जाते तो शायद दुनिया गोल है ये पता कर पाना भी मुश्किल होता। अंतरिक्ष में प्रवेश से पहले भी तो ऐसी ही किम्वदंतियां थीं। और हमें ऐसे युवा तैयार करने में भी २० से २५ साल का समय लग जाता है। मेरे विचार से वर्त्तमान ही इस कार्य के संपादन का सर्वश्रेष्ट समय है। आप चाहें तो अमर और मानसी से मिल भी सकते हैं।
अमर, मानसी, डॉ संदीपन और उनकी प्रतिबद्ध टीम के हौसलों को देखते हुए प्रधानमंत्री जी को इस मिशन को आज्ञा देनी पड़ी और आशीर्वाद भी। पूरा चन्द्र अंतरिक्ष केंद्र ख़ुशी और जश्न के माहौल में डूब गया।
(क्रमशः)
- वाणभट्ट
(चित्र : साभार http://2.bp.blogspot.com/gqSOnXfNPQc/T1RGhAj9Q6I/AAAAAAAADI0/CTx62mP7Cmo/s400/ring-galaxy.jpg)
रुचिकर ज्ञान-वर्धक लेख । सुन्दर शब्द-चित्र । मज़ा आ गया ।
जवाब देंहटाएंअंतरिक्ष की रोचक कहानियाँ
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़ना..
जवाब देंहटाएंSachhai hai
जवाब देंहटाएंरोचक कहनी । गज़ब की कल्पना ।
जवाब देंहटाएंwat a imgination....l...vey nice
जवाब देंहटाएंरोचक और ज्ञानवर्धक लेख
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