इधर बाबाओं की शामत आई है. हिंदुस्तान का हर तथाकथित बुद्धिजीवी बाबाओं को पानी पी-पी कर कोस रहा है. शायद उसे लग रहा है कि इतना ज्ञानार्जन कर के भी वो अभी तक नौकरी में जूते चटका रहे हैं या दूसरों की चाकरी कर रहे हैं. और लम्पट बाबा सिर्फ लोगों पर आशीर्वाद बरसा कर अकूत दौलत इकठ्ठा कर रहे हैं. इधर जब से लोगों में समृद्धि बढ़ी है, वो अपने आगे किसी को कुछ भी समझने को तैयार नहीं है. बाबा की समृद्धि पर तो उसकी निगाह है, पर गलत तरीक़े से कमाये अपने रुपये उसे उचित जान पड़ते हैं. हर आदमी जब धन के प्रति लालायित है, तो उसे लगता है, उसके अलावा बाकि सबको महात्मा की तरह रहना चाहिये, ख़ास तौर पर बाबाओं को जिन्होंने अधिकारिक तौर पर माया को तिलांजलि दे रखी है. हाल ही में कुछ राजनेताओं ने तो बाबाओं को ढोंगी करार दे कर उन्हें पत्थर बाँध कर नदी में डूबा देने तक की बात कर डाली. धन्य हैं वो लोग जो अपनी सत्ता के आगे दूसरों की सत्ता से घबरा जाते हैं. ख़ुद तो हर ऐसा काम करने को तैयार हैं जिससे लक्ष्मी आती हो, पर दूसरा सिर्फ़ और सिर्फ़ ईमानदारी से धनार्जन करे. ऐसी ही स्थिति पर एक उक्ति बनी है, आपका प्यार, प्यार और हमारा प्यार चक्कर.
भक्त होना ठीक है पर अंध भक्त होना नहीं. इतने सारे चैनलों पर इतने सारे बाबा अवतरित हो गये हैं कि गिनती करना मुश्किल हो गया है. और हर एक के पीछे हजारों-लाखों की भीड़ खड़ी है, तो ज़रूर भारत को उनकी ज़रूरत है. किसी भी व्यापार का सीधा यही सिद्धांत है. जिसकी डिमांड होगी वही चीज़ सप्लाई होगी. जिस देश में जनता का नियम-क़ानून-न्याय से विश्वास डगमगा जाये, प्रजातंत्र के नाम पर भेंड़तंत्र हावी हो जाये, और सामाजिक ढांचा चरमरा जाये, तो ऐसे में आम आदमी कहाँ जाये. किस दीवार पर सर मारे. किस कंधे पर सर रख के रोये. कोई सुनने वाला हो तो कह के ही हल्का हो ले. पे-कमीशनों और पे-पैकेजों से पहले पास-पड़ोस, संयुक्त परिवार हुआ करते थे. हर समस्या का समाधान आपस में ही निकल आता था. सबके साझा सुख दुःख हुआ करते थे. अब हर आदमी अपनी-अपनी लड़ाई लड़ रहा है. हमारे बुद्धिजीवी, जिनका आस्था - विश्वास से कुछ लेना - देना नहीं है, कहेंगे दिमाग़ ख़राब हो तो मनोवैज्ञानिकों के पास जाओ. बाबा के पास क्यों जाते हो. पर वो भी कोई मुफ़्त इलाज तो कर नहीं रहा है. अपने अंग्रेजी ज्ञान की पाई-पाई वसूल रहा है. और जो दवाइयाँ लिख भी रहा है उसके साइड एफ़ेक्टस भी कम नहीं हैं. वही काम तो बाबा बिना साइड एफेक्ट के मुफ़्त कर रहा है. जिन्हें आराम मिल जाये तो वो बाबा को अपना तन-मन-धन सब न्योछावर करने को तत्पर हो जायें तो इसमें गलत क्या है.
कोई भी बाबा गलत बात तो सिखाता नहीं है. अच्छी-अच्छी बातें बताता है, जो अमूमन सबको पता हैं. सच बोलो. पडोसी से प्रेम करो. समाज सेवा करो. प्यासे को पानी पिलाओ और भूखे को खाना खिलाओ. घंटे-दो घंटे के प्रवचन को लोग श्रद्धा भाव से सुनते हैं. कम से कम उन दो-घंटों में तो वो कोई बुरा काम नहीं कर रहे हैं. घर जाते-जाते भी उसका कुछ प्रभाव ज़रूर बचता होगा. हर कोई तो धक्का-मुक्की कर के बाबा को सुनने जा नहीं रहा. जिसमें कुछ जिज्ञासा होगी वो ही वहाँ तक पहुँच सकता है. हम अपने ज्ञानियों को ये बहुत ही सहज रूप से कहते और गर्वोक्ति स्वीकार करते सुन सकते हैं कि भारत सदियों से विश्व का अध्यात्मिक गुरु रहा है. हममें से हर किसी ने महसूस किया होगा कि धरती पर अगर कहीं भगवन बसते हैं, तो सिर्फ़ अपने भारत में. घर से दफ़्तर के रास्ते में जितने मंदिर-मजार पड़ते हैं, सर झुक ही जाता है. गैस सिलिंडर के लिये लाइन लगानी हो तो भगवान के आगे मत्था टेक कर निकलते हैं, कि हे भगवान आज गैस का ट्रक आ जाये. बच्चे का विज्ञान का परचा हो तो उसे दही-चीनी खिला के भेजा जाता है. शायद सरल प्रश्न-पत्र की उम्मीद रहती हो. पंडित से बिना बिचरवाये न तो शादी हो रही है, न समस्याओं का समाधान हो रहा है. पहले तो शादियाँ बिना कुंडली मिलाये हो भी जातीं थीं, पर अब विदेश में बसे लडके-लड़की के भी ३६ गुण मिला के देखे जाते हैं. ये बात अलग है कि शादी वहीं होने की सम्भावना ज्यादा होती है, जहाँ माल ज्यादा मिले. लोगों का गला और उंगलियाँ नाना प्रकार के मणि-माणिक्यों से लदा नज़र आना एक सामान्य सी बात है.
कोई भी बाबा गलत बात तो सिखाता नहीं है. अच्छी-अच्छी बातें बताता है, जो अमूमन सबको पता हैं. सच बोलो. पडोसी से प्रेम करो. समाज सेवा करो. प्यासे को पानी पिलाओ और भूखे को खाना खिलाओ. घंटे-दो घंटे के प्रवचन को लोग श्रद्धा भाव से सुनते हैं. कम से कम उन दो-घंटों में तो वो कोई बुरा काम नहीं कर रहे हैं. घर जाते-जाते भी उसका कुछ प्रभाव ज़रूर बचता होगा. हर कोई तो धक्का-मुक्की कर के बाबा को सुनने जा नहीं रहा. जिसमें कुछ जिज्ञासा होगी वो ही वहाँ तक पहुँच सकता है. हम अपने ज्ञानियों को ये बहुत ही सहज रूप से कहते और गर्वोक्ति स्वीकार करते सुन सकते हैं कि भारत सदियों से विश्व का अध्यात्मिक गुरु रहा है. हममें से हर किसी ने महसूस किया होगा कि धरती पर अगर कहीं भगवन बसते हैं, तो सिर्फ़ अपने भारत में. घर से दफ़्तर के रास्ते में जितने मंदिर-मजार पड़ते हैं, सर झुक ही जाता है. गैस सिलिंडर के लिये लाइन लगानी हो तो भगवान के आगे मत्था टेक कर निकलते हैं, कि हे भगवान आज गैस का ट्रक आ जाये. बच्चे का विज्ञान का परचा हो तो उसे दही-चीनी खिला के भेजा जाता है. शायद सरल प्रश्न-पत्र की उम्मीद रहती हो. पंडित से बिना बिचरवाये न तो शादी हो रही है, न समस्याओं का समाधान हो रहा है. पहले तो शादियाँ बिना कुंडली मिलाये हो भी जातीं थीं, पर अब विदेश में बसे लडके-लड़की के भी ३६ गुण मिला के देखे जाते हैं. ये बात अलग है कि शादी वहीं होने की सम्भावना ज्यादा होती है, जहाँ माल ज्यादा मिले. लोगों का गला और उंगलियाँ नाना प्रकार के मणि-माणिक्यों से लदा नज़र आना एक सामान्य सी बात है.
हम मोहल्ले के एक दबंग के आगे नतमस्तक हो जाते हैं. इलाके का सभासद पार्क पर कब्ज़ा कर लेता है और हम उसके रसूख से डर कर उससे अपने सम्बन्ध बनाये रखते हैं. सरकारी दफ्तरों के बाबुओं का पेट भरने में हमें कतई संकोच नहीं होता, भ्रष्ट और देशद्रोही अफसरों के हम तलुए चाटने से भी नहीं चूकते. हत्यारों, बलात्कारियों, घोटालेबाजों को कानून से खिलवाड़ करने का अधिकार है. आतंकवादियों को पश्रय देना कोई हमारे विपक्षी नेताओं से सीखे. आतंकियों को भी वकील मिल जाते हैं. राजनेताओं और माफियाओं के मकडजाल में आम आदमी का जीना ही जी का जंजाल बन गया है. ऐसे में अगर एक आसरा, एक संबल नज़र आता है, तो वो है भगवान का. और उन तक पहुँचने के माध्यम हैं, बाबा जी. कम से कम बाबाओं की फ़ौज देख कर भारत में तो ऐसा ही लगता है.
मेरे एक मित्र के भाई ऑस्ट्रेलिया में बसे हुए हैं. उनके माता-पिता जी कई बार वहाँ जा चुके हैं. हर बार जब वो अपने अनुभव बाँटते हैं तो लगता है, जहाँ कानून और व्यवस्था का राज होता है, वहाँ न भगवान की ज़रूरत है न बाबाओं की. क्योंकि उनकी डिकश्नरी में भी भ्रष्टाचार-अपराध-रिश्वत आदि के समानार्थी शब्द हैं, इसलिये वहाँ भी मानवोचित स्वभाव के सभी कार्य हो रहे होंगे. किन्तु आम आदमी उससे कम से कम प्रभावित होता है. एक बार उनके भाईसाहब परिवार के साथ हार्बर ब्रिज घूमने गए. पिता जी ने विशुद्ध भारतीय अंदाज़ में कुछ खा कर उसका कागज़ (बाकायदा गोली बना कर) हार्बर ब्रिज से नीचे समुन्दर में गिरा दिया. ये देखते ही उनका ढाई साल का बच्चा चीख पड़ा, "पापा, बाबा हैज़ लिटर्ड". बच्चे की इस सत्यनिष्ठा की कीमत उन्हें पेनाल्टी दे कर चुकानी पड़ी. वहीं घर के अंदर किचेन में माता जी ने बहू का काम आसन करने के उद्देश्य से बर्तन माँजने का प्रयास किया. फिर उस देवदूत ने बहता नल देख, दादी को नसीहत दे डाली "दादी यू आर वेस्टिंग वाटर". एक सन्नाटी सड़क पर वही भाईसाहब किसी की फेंस में अपनी कार घुसेड बैठे. उतर कर मकान की घंटी बजाई, आस-पास देखा, कोई आदम न आदम जात. भाईसाहब ने सोचा जब किसी ने देखा नहीं तो निकल लो. पर ऑफिस पहुँचते ही फोन आया कि थाने चले आओ, दुर्घटना करके रिपोर्ट न करने पर भी पेनाल्टी है. और इंश्योरेंस क्लेम से बिना ज़्यादा लिखा - पढ़ी के उस फेंस का पुनः निर्माण हो गया. मेरे एक मित्र को वियतनाम जाने का मौका मिला. कोई वैज्ञानिक गोष्ठी थी. जिसमें वहाँ के मंत्री और विभाग के मुखिया को भी आना था. नियत समय पर कार्यक्रम बिना मुख्य अतिथि के आरंभ हो गया और मुख्य अतिथि बीच में ही आकर अपने आसन पर बैठ गए. कार्यवाही निर्बाध रूप से चलती रही. कोई बुके ज्ञापन या अपने स्थान पर खड़े होने जैसी औपचारिकता की भी आवश्यकता नहीं समझी गयी. एक मित्र कीनिया और नाइजेरिया रह कर लौटे. उन्होंने बताया वहाँ सुबह-सुबह लोग रेलवे लाइन की पटरियों पर तीतर लड़ाने नहीं जाते. बल्कि उन्होंने पूरे अपने प्रवास के दौरान किसी को कहीं भी तीतर लड़ाते नहीं देखा. एक नाइजेरियन हमारे यहाँ ट्रेनिंग पर आया, वो हतप्रभ रह गया जब प्रातः भ्रमण के दौरान सब उसे घूर रहे थे पर उसकी गुड मोर्निंग का किसी ने जवाब देना भी उचित नहीं समझा. ये सब मै इसलिये लिख रहा हूँ कि आप ये महसूस कर सकें कि भगवान तो यहीं बसते हैं, बाकि जगह आदमियों का वास है और अगर वाकई हम सुधारना चाहते हैं तो किस उम्र से प्रयास करना चाहिये. या तो आदमी नियम-कानून से चल सकता है, या समाज से, या धर्म से. किसी का तो डर होना चाहिये. पर दबंगों के देश में सिर्फ समझदार को जीने की इजाज़त है. मूर्खों के ऊपर ही तो ये समझदार टिके हैं. किसी भी नेता या अभिनेता का मंदिर तो बन सकता है. उन्हें चाँदी-सोने से तौला जा सकता है, पर बाबा जो किस्मत और समय के मारे लोगों को जीवन जीने का हौसला दे रहा है, वो कैसे सोने के सिंघासन पर बैठ सकता है.
सबके अपने-अपने हुनर हैं. कोई झूठ बेच रहा है, कोई छल. रोज धन को अल्प समय में दो गुना-चार गुना करने के प्रलोभन दिये जा रहे हैं. काले जादू वाले बहुतों की मन माँगी मुराद पूरी कर रहे है. खानदानी शफाखाने अभी भी सड़क के किनारे दिख जायेंगे. नीम-हकीमों में हमारी आस्था कम नहीं हुई है. गंजों के सर पर बाल उगाये जा रहे है. रातों-रात सिर्फ चाय पी कर एक्स्ट्रा फैट को गायब किया जा रहा है. इन्टरनेट फ्राड और शेयर के माध्यम से लोगों के पैसे निकलवाये जा रहे हैं. सबका लक्ष्य भोली-भाली जनता है, जो 125 करोड़ पार कर चुकी है. 125 से ऊपर दो-चार करोड़ जो घुसपैठ कर के देश में घुस आये हैं, उनकी चिंता नहीं है. वो खुद किसी न किसी तरह लूट-खसोट कर खा-पी रहे हैं. अगर आप में कोई भी हुनर है, आजमाइये इस देश में कद्रदानों की कमी नहीं है. जहाँ लोग आरती की थाली के लिये 5 रूपये का सिक्का अलग से ले कर जाते हों, वहाँ कोई बाबा को लाखों दान कर दे, तो शक़ नहीं होना चाहिये जो मिला होगा वो दान से कहीं ज़्यादा होगा.
मेरे मित्र जिनके भाई ऑस्ट्रेलिया में बस गये हैं, उनके माँ-बाप अपने उसी लायक बेटे के गुण गाते रहते हैं. और मेरे मित्र के जीवन का लक्ष्य है, अपने वृद्ध माता-पिता को खुश रखना-देखना. एक बाबा जिसे उसने गुरु मान रखा है, उससे ये कह कर ढाढ़स बँधाता है कि बेटा प्रभु की इच्छा सर्वोपरि है. वो जिस हाल में रखे उसी का आनंद लो. निष्काम भाव से कर्म किये जाओ. ईश्वर सब देख रहा है. तुम्हें तुम्हारे सत्कर्मों का फल अवश्य मिलेगा. गुरु की तस्वीर जो उसने गले में और घर की दीवार पर टाँग रखी है, उसे हर विपत्ति और गलत कामों से बचाती है. कम से कम उसका तो यही मानना है.
-वाणभट्ट
सार्थकता लिए हुए सटीक बात कही है आपने ... आभार ।
जवाब देंहटाएंतर्कसंगत बात कही
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दर विश्लेषण के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंसार्थक सामयिक पोस्ट, आभार.
हटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .
हम तो दादा को बाबा कहते आये है लेकिन अब जाकर पता लगा कि बाबा बोले तो ठग लोग(सारे नहीं तो ज्यादातर तो है ना)
जवाब देंहटाएंखरी खरी.... सारी बातें विचारणीय भी हैं और सटीक भी
जवाब देंहटाएंबाबा के माध्यम से देश की व्यवस्था पर सटीक सवाल उठाए हैं ... विचारणीय पोस्ट ... काश हम सुधारना शुरू कर दें
जवाब देंहटाएंSimply awesome :)
जवाब देंहटाएंsakratmak vyangya ke liye badhai
जवाब देंहटाएंसबके अपने-अपने हुनर हैं. कोई झूठ बेच रहा है, कोई छल....सो तो एक कला है ही....मगर सही कहा....कितना विचारें...
जवाब देंहटाएंसटीक लेखन...जिओ!!
आपने बहुत ही अच्छी तरीके से इस बात कों रखा है ... दरअसल इंसान की परिवृति होती है की जिसको गन्दा मान लेती है उसके बारे में नहीं सोचती चाहे वो जितना ज्यादा गन्दा करता रहे.. पर अगर एक अच्छे व्यक्ति ने कुछ गलत किया तो उसको भुला नहीं पाते और इसी बात का गंदे लोग फायदा उठाते हैं ... मीडिया भी ऐसे गलत लोगों के हाथों खेलता है ...
जवाब देंहटाएंयही कारण है की राजा, चिदाम्बर जैसे अनेकों नेता भरष्ट होते हुवे भी मस्त अहिं मीडिया भी कुछ नहीं कहता ... और किरण बेदी या कुछ बाबाओं की इतनी भद्द होती रहती है ...
बाबाओं के विरुद्ध यो ये एक कुचक्र है जो समाज में इनकी साख ... धर्म विशेष की साख कम करने के लिए हो रहा है ... कोई गहरी गहरी साजिश ...
हमारी सोच सकारात्मक हो बस ।
जवाब देंहटाएंसोचने लायक बातें|
जवाब देंहटाएंबात में दम है भाई जी....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
आपके तर्क से सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंआश्चर्यजनक किन्तु सत्य |
जवाब देंहटाएंसही कहा....कितना विचारें...
जवाब देंहटाएंशोचनीय पोस्ट । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंये सारी बातें हमें बार बार याद दिलाये जाने की आवश्यकता है। इस पोस्ट के लिये आपका आभार!
जवाब देंहटाएंसार्थक सामयिक पोस्ट, आभार.
जवाब देंहटाएंमुझे तो सिंघवी बाबा , नारायण दत्त तिवारी बाबा और शाही इमाम बुखारी टाइप बाबाओं से ज्यादा भय लगता है।
जवाब देंहटाएंaapki post itni vajandaar hai kibaat me kahin bhi atishyokti ki jhalak nahi dikhti.
जवाब देंहटाएंjis behtreen tareeke se aapne apni baat prastut ki hai vah aaj ke samaaj ka aaina hai.
hardik badhai
poonam
आपकी यह पोस्ट बहुत गहरे अर्थ सामने लाती है .....!
जवाब देंहटाएंअच्छा विचारणीय लेख है वाणभट्ट , हमें अपने विवेक का प्रयोग करना होगा !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से मातृदिवस की शुभकामनाएँ।
सचमुच माँ हमेँ ईश्वर की सर्वोत्तम देन है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से मातृदिवस की शुभकामनाएँ।