सोमवार, 15 अगस्त 2011

कुत्ते भौंक रहे हैं...

कुत्ते भौंक रहे हैं...

जब बौखलाते हैं, तो कुत्ते भौंकते हैं
फेंको बोटी-रोटी, तो दुम हिला कर डोलते हैं 

चौंसठ सालों से पकी-पकाई खाते खाते
ईमान और ज़मीर इनके खोखले हैं

अन्ना को देख इनको सब कानून याद आ गए
आज़ादी कैसे मिली कितनी जल्दी भूलते हैं

हक़ के लिए ही तो हुआ सविनय अवज्ञा
आज डर के इसी से गाँधी के बन्दे भागते हैं 

एक वो है जो गाँधी को अपने दिल बसाये घूमता है
सत्ता के पुजारी गाँधी को बस संसद में ही पूजते हैं

काली कारों से उतरते हैं अब मंत्रियों के काफिले 
काली करतूतें हैं, बस कपडे बदन पर ऊजले हैं

कानून की आड़ में विरोधों को दमन कर दो 
देशभक्तों को कलम करने के ये अंग्रेजी तरीके हैं 

नमक कानून को तोडा या किसी ने बम फोड़ा
तब आज़ादी की लड़ाई थी, अब दुश्मनों के चोचले हैं

देश की तरक्की की तसवीरें खींचते प्राचीर से 
भ्रष्टाचार से लड़ने के हथियार इनके भोथरे हैं


जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार है 
सोलह अगस्त को देखना, हम आज़ाद कीतने हैं 


- वाणभट्ट 

शनिवार, 6 अगस्त 2011

ढाई आखर...

कविता लिखनी है 
एक शब्द पर 
जो
है ढाई अक्षर का 
जिसे अमूमन होना चाहिये
किसी लड़की से 
जो हो ख़ूबसूरत बेइन्तहा
भले ही सपनों में

वैसे प्रेम मुझे विरासत में मिला है
माँ से माँ का
और बाप से बाप का
कुछ दादी और बाबा का भी
बहनों और भाइयों का भी 

बचपन में इसे
माँ के आँचल में महसूस किया
याद है मुझे अभी भी
फटकारों के पीछे
बाप की 
मुस्कराती आखें 


दादी के हाथों
खाये हर कौर
जो खाना खाते-खाते 
सारे रिश्ते गिना जाते 
बाबा की छड़ी
डरते थे जिससे 
पर जो पड़ी नहीं कभी

बहनों से झगडा
फिर मान-मुनव्वल
जरा-जरा सी बातों पर 
भाइयों से दंगल
दूरी ने बताई 
इन रिश्तों की कीमत

फिर ज़िन्दगी में
एक नया प्रवेश
जिसने बिना जाने
प्रेम की परिभाषा गढ़ डाली
बिन माँगे कितना कुछ दे डाला
इस प्रेम के प्रति 
सब कुछ समर्पित

मेरे लिये है 
ये ही प्रेम 
बस

लड़कियाँ जो अमूमन खूबसूरत होतीं हैं
या लडके उन्हें ख़ूबसूरत बना देते हैं
या वे ख़ुद को खूबसूरत ही समझतीं हैं
एक इंसान सी लगीं
त्वचा के नीचे
दिल के भीतर
और दिमाग के अन्दर
जो है
हमेशा उसे खोजता रहा

अमूमन पुरुष के लिये 
नारी एक देह से ज़्यादा कुछ नहीं
उन्हें भी एतराज़ है
लोग उन्हें सिर्फ देह समझते हैं
पर जब मैंने परतों के नीचे जा के देखा
वो ख़ुद को भी देह से ज्यादा समझ नहीं पातीं
नहीं तो इतनी सजावट
इतनी सज-धज
इतनी फरमाइशें  
इतनी उम्मीदें, क्यों 
एक देह के बदले ही तो 

तभी समझा 
ब्यूटी इज जस्ट स्किन डीप

इसीलिये
मेरे लिए प्रेम वो है
जिसे माँगना न पड़े
जिसे आपके अच्छे या बुरे होने से
ख़ूबसूरत या बदसूरत होने से
कोई फ़र्क न हो
या यूँ कहें
आप जैसे हैं, जिस हाल में हैं
वहां मिल जाये

वो खुद बिखरा हो
आपके आस-पास 
और ज़िन्दगी उसे
संजोते-संजोते
बीत जाये 
आप जितना बाँटें 
उतना ही बढ़ता जाये वो

प्रेम कुछ ऐसा ही होना चाहिये
हैं ना

- वाणभट्ट

कुत्ता प्रेम

कुछ लोगों को लेख के टाइटल से शिकायत होनी लाज़मी है. दरअसल सभ्यता का तकाज़ है कि कुत्ते को कुत्ता न कहा जाये. भले ही कुत्ता कितना बड़ा कमीना ...