चाहें...तो इसे ग़ज़ल कह लें...
बा-अदब, बा-मुलाहिजा, होशियार
बन्दर के हाथों लग गयी तलवार
अपनी खातिर जिनको राजा चुना
शेर की खाल में निकला सियार
गुनाह रोकने का जिसपे था जिम्मा
क़त्ल करके बन गया गुनाहगार
जनतंत्र पे गनतंत्र हावी हुआ
समय रहते, चुन तू भी हथियार
काली कमाई से भरे हैं पेट जो
कैंसर को कह रहे हल्का बुखार
चैनोअमन देने का करे जो वास्ता
ऐसे लोगों का कबतक करें हम ऐतबार
जनता करे फांकाकशी, उडाये मौज वो
उठ खड़े हो, गाँधी का मत कर इंतज़ार
- वाणभट्ट
bahut khoob aaj sab khal me chhupe siyar hai dhoort makkar aur moukaparst..saateek .
जवाब देंहटाएंआज के हालात पर कटाक्ष करती सुन्दर ग़ज़ल| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंजनता करे फांकाकशी, उडाये मौज वो
जवाब देंहटाएंउठ खड़े हो, गाँधी का मत कर इंतज़ार
kyun hai ye intzaar
kya khud pe nahi raha aitbaar
जनता करे फांकाकशी, उडाये मौज वो
जवाब देंहटाएंउठ खड़े हो, गाँधी का मत कर इंतज़ार
-बस, अब बहुत हुआ....उठ खड़े होना ही होगा.....
बहुत उम्दा रचना..
जोशीला....सत्य वचन
जवाब देंहटाएंबात तो सही है ...शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंजी हाँ सबको अपनी लड़ाई लड़नी होगी अब... अलग अलग भी और साथ में भी.. सुन्दर पेशकश..
जवाब देंहटाएंसमसामयिक प्रस्तुति अब भी नहीं तो और कब?
जवाब देंहटाएंगुनाह रोकने का जिसपे था जिम्मा
जवाब देंहटाएंक़त्ल करके बन गया गुनाहगार
हम तो इसे ग़ज़ल ही कहेंगे, जो दिल के साथ दिमाग में भे जगह बनाती है।
बहुत उम्दा रचना व सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
गुनाह रोकने का जिसपे था जिम्मा
जवाब देंहटाएंक़त्ल करके बन गया गुनाहगार
Badi prasangik panktiyan hain...
काली कमाई से भरे हैं पेट जो
जवाब देंहटाएंकैंसर को कह रहे हल्का बुखार.
सही कहा आपने । इन्हें समस्याएँ ऐसे ही देखने की आदत हो गई है ।
सत्य को कहती बेहतरीन रचना..आज यही तो हो रहा है...लाजवाब
जवाब देंहटाएंजिसकी लाठी , उसी की भैस क्या यह लोकतंत्र है ?
जवाब देंहटाएंक्या कटाक्ष है बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंप्रजा तंत्र पर लोक तंत्र हावी हुआ ,समय रहते चुन तू भी हथियार ।
जवाब देंहटाएं(बन राम देव ).सीधी सच्ची खरी खोटी खूब सुनाई अपनी बात ,क्या बात है बाण भट्ट साहब !
प्रजा तंत्र पर लोक तंत्र हावी हुआ ,समय रहते चुन तू भी हथियार ।
जवाब देंहटाएं(बन राम देव ).सीधी सच्ची खरी खोटी खूब सुनाई अपनी बात ,क्या बात है बाण भट्ट साहब !