योद्धा और कायर
देख तू
उनकी छाती
लहू से धरा
है जिसने सींची
हो किसान या
कोई मजदूर हो
देखने में लगता भला
कितना ही मजबूर हो
पर नहीं वो मांगता
भिक्षा किसी से
ऐसे अभिमानी को
शत-शत नमन हो
देख तू
उनकी आँखें
लाल हैं
पर
बोलतीं हैं
उनकी बलिष्ठ भुजाएं
छीन भी सकती हैं हक अपना
पर नहीं उनकी
आँखों में सपना
हक दूसरों का मार के
समृद्ध होना
उसने सीखा
अपनी रोटी के लिए
संघर्ष करना
पर नहीं सोचा
स्वप्न में भी संहार करना
ऐसे वीरों को
शत-शत नमन हो
देख उसको भी
कि जो भ्रष्ट है
दूसरों की समृद्धि से
जो त्रस्त है
इसलिए वो
घूस से ही मस्त है
जो गरीबों के लिए था
उस राशी को वो मार के
दौलत के
नशे से पस्त है
उसकी छाती में
वो बात नहीं
उसकी भुजाओं में भी
वो घात नहीं
ये अलग है बात
कि
कानून ने उसको न पकड़ा
पर मानसिक बीमारियों ने
उसको जकड़ा
उसकी कुंठित
सोच है
उसके मन में भी
भयानक लोच है
सारी दुनिया
चाहता है लूट लेना
भगवान् से भी चाहता है
घूस दे कर छूट लेना
उसमें नहीं है स्वाभिमान
हाथ फैलाना भी उसकी है शान
शायद उसे मालूम नहीं
सब ठाठ यहीं है रह जाता
जब है
वक्त आता
देख उसकी कमर से ऊपर निकलती
तोंद को
बेल्ट कस के चाहता है
इस समृद्धि को दे रोक वो
पर नहीं वो जानता
ऊपर की कमाई
जो ठूंस-ठूंस के खाई
जीते जी बदहजमी कर जायगी
या
मरने के बाद किसी और के काम आएगी
या कि
सारी धमनियां जाम कर देगी
या कहीं से
फाड़ के निकल लेगी
ऐसे गद्दारों को
पूरे देश की
धिक्कार हो
- वाणभट्ट
बहुत खूब लिखा है, वाणभट्ट जी,
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिये,
bahot sunder likhe.....
जवाब देंहटाएंउनकी बलिष्ठ भुजाएं
जवाब देंहटाएंछीन भी सकती हैं हक अपना
पर नहीं उनकी
आँखों में सपना
हक दूसरों का मार के
समृद्ध होना
उसने सीखा
अपनी रोटी के लिए
संघर्ष करना
बहुत ही प्रभावी और सशक्त रचना .........
समाज की वास्तविक स्थित को चित्रित करती रचना बहुत सशक्त शब्दों में हक़ीक़त का बयान करती है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही..यही होना भी चाहिये...उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंsamaj ke bhrasht logo par sateek prahar..
जवाब देंहटाएंकितना ही मजबूर हो
जवाब देंहटाएंपर नहीं वो मांगता
भिक्षा किसी से
ऐसे अभिमानी को
शत-शत नमन हो... kam log hain aise , per yahi log jivan ke gudh mayne pate hain ... sabkuch spasht hota jata hai inke aage
बहुत अच्छी रचना ..सटीक कहा है
जवाब देंहटाएंbahut sunder man ko chu gayi aapke ye sunder rachna, badhai
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 24 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
jwalant bhavon ka prakhar sambodhan ,mukhar ho uthha hai .shukriya ji .
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
प्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएंVery impressive creation !
जवाब देंहटाएंसमाज की वास्तविक स्थित को चित्रित करती बहुत ही बेहतरीन रचना|
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना|
जवाब देंहटाएं- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
प्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएं'भगवान से भी चाहता है
जवाब देंहटाएंघूस दे कर छूट लेना'
वैसे तो पूरी कविता ही प्रभावशाली है पर ख़ास तौर पर ये पंक्तियाँ दिल को छू जाती हैं..
देख उसकी कमर से ऊपर निकलती
जवाब देंहटाएंतोंद को
बेल्ट कस के चाहता है
इस समृद्धि को दे रोक वो
पर नहीं वो जानता
ऊपर की कमाई
जो ठूंस-ठूंस के खाई
जीते जी बदहजमी कर जायगी
या
मरने के बाद किसी और के काम आएगी
या कि
सारी धमनियां जाम कर देगी
या कहीं से
फाड़ के निकल लेगी
ऐसे गद्दारों को
पूरे देश की
धिक्कार हो!
वाजिब गुस्सा ! इस स्वर को और प्रखर करें तभी बदलेगी दुनिया ! बढ़िया लेखन.
यथार्थ का जीवंत चित्रण !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।