गुड मॉर्निंग
आँख अभी पूरी तरह खुली भी नहीं थी कि उसके हाथ ने टटोल कर मोबाइल उठा लिया. रात देर से सोने के कारण आखों में कडुआहट बनी हुयी थी. देर से सोने की कोई खास वजह नहीं थी. सोने से पहले बस एक मिस्टेक गलती से हो गयी थी. उसने मोबाइल उठा लिया था.
सोशल मिडिया का उसका चस्का एक लिमिट से ऊपर था. जब तक इमेल और फेसबुक का ज़माना था कम्प्यूटर और लैपटॉप खोलने का झन्झट था. जब से ये मल्टी-फ़ीचर्ड हाई एन्ड मोबाइल का प्रादुर्भाव हुआ, ये अम्प्यूटर-कम्प्यूटर खोलने का चक्कर भी ख़त्म हो गया. हालात ये हैं कि - दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार, जब जरा गर्दन झुकाई देख ली. जब भी जरा सी भी बोरियत तारी हुयी, हाथों में अजीब सी फड़फड़ाहट होनी शुरू हो जाती है और वो ख़ुद-ब-ख़ुद उस जगह पहुँच जाते हैं, जहाँ मोबाइल रखा होता है. फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, लिंक्डइन और न जाने क्या-क्या नामाकूल चीजों ने आदमी का जीना दुश्वार कर रखा है. लेकिन फुल इन्टरटेन्मेंट में कोई कमी हो, ऐसा नहीं है. कुछ लोगों के लिये तो सोशल मिडिया आबादी में बर्बादी का सबब बन के रह गया है. हर समय ऑनलाइन रहना एक बीमारी बन गयी है. व्हाट्सएप्प इन सब बिमारियों में सबसे बड़ी बीमारी बन के उभरा है. आज हर व्यक्ति समय की कमी का रोना रो रहा है. लेकिन अपने समय 24 x 7 का वो कैसे उपयोग कर रहा है, उसे मालूम तो है पर जानना और मानना नहीं चाहता.
कुछ सिद्ध-अवतारी पुरुषों नें जिन्होंने मैटेरियलिस्टिक जगत में ख्याति अर्जित कर ली है, वो रोज यू-ट्यूब और अन्य मिडिया प्लैटफॉर्म्स से आम जनता की भलाई हेतु सोशल मिडिया पर लानत-मलानत भेजते रहते हैं. ऐसे बताते हैं कि समय का सदुपयोग करके हर व्यक्ति कैसे सफल बन सकता है, कैसे अपनी इनकम को बढ़ा सकता है, और कैसे अपने जीवन को सुख-सुविधाओं से सम्पन्न कर सकता है. इन ख्यातिलब्ध लोगों को ये भान नहीं है कि जिन्हें उनकी तरह सफल बनना है, उनके पास यू-ट्यूब देखने का समय नहीं है. दुनिया के सारे प्रवचन उनके लिये हैं जिनके पास समय है. सुख-समृद्धि की लालसा में व्यक्ति किसी से कुछ भी सीखने को आतुर रहता है. जबकि सफलता के लिये सुनना और गुनना उतना आवश्यक नहीं है जितना काम करना और करते रहना. लेकिन जब वक्ता अपने वक्तव्य के आखिरी चरण में चैनल को सब्सक्राईब करने का आग्रह करता है, तो शक़ होना लाज़मी है कि उसे अपनी बात पर कितना भरोसा है. जिन्हें भरोसा होता है उन्हें पता होता है कि बात निकलती है तो दूर तक जाती है. इनके प्रवचनों को सुन-सुन कर आम जनता को एक अपराध-बोध सा हो जाता है कि अपने समय का उपयोग इन्टरटेन्मेन्ट के लिये करना महापाप है. लिहाजा एक ऐसी पौध डेवेलप हो गयी जो सोशल मिडिया से जुडी तो रहना चाहती है लेकिन ये नहीं चाहती कि दूसरे जाने कि वो अपना अमूल्य समय सोशल मीडिया पर बर्बाद कर रहा है. वो फेसबुक पर जाता है, हर घन्टे दो घन्टे पर, ताकि लेटेस्ट अपडेट्स से वाकिफ़ रहे. लेकिन गलती से भी किसी पोस्ट को लाइक नहीं करता. वरना लोग जान जायेंगे कि वो कहाँ समय बर्बाद कर रहा है. इन्हें साइलेंट यूज़र कहा जा सकता है. ये वो प्राणी हैं जो वाट्सएप्प पर भी अपना नोटिफिकेशन ऑफ करके रखते हैं. जिससे पोस्ट देखी या नहीं देखी किसी को पता नहीं चलेगा. ये ग्रूप पर भी बस देखने का काम करते हैं. क्या मजाल कि गलती से भी कोई कमेन्ट कर दें. ये लोग वाट्सएप्प पर कितने एक्टिव हैं ये जानने के लिये बस आपको ये करना है कि सरकार की तारीफ़ में कुछ कशीदे पढ़ दीजिये या विपक्ष पर कोई कटाक्ष कर दीजिये. फिर ये भाई लोग अपना सारा आवरण उतार कर आमने-सामने आ जाते हैं. तब पता चलता है, इन स्लीपिंग सेल वालों का.
लेकिन यकीन मानिये यदि आपके पास कोई बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं है तो सोशल मिडिया से दिलचस्प कोई चीज़ नहीं है. लोगों ने बुक्स-मैगज़ीन्स पढना तो कब का छोड़ दिया है लेकिन ज्ञान की पिपासा कभी शांत होने वाली तो है नहीं. यहाँ सोशल मीडिया पर भाँती-भाँती का ज्ञान उमड़ा पड़ रहा है. यदि आप किताब से पढ़ेंगे तो आप को एक समय में एक विषय का ही ज्ञान मिलेगा. जबकि वाट्सएप्प पर जारी हर दो ज्ञान में भयंकर विषयांतर मिलने की सम्भावना प्रबल होती है. एक तरफ इस लोक में सफलता के सूत्र बताये जा रहे होंगे तो दूसरी ओर जन्म-जन्मान्तर का ज्ञान सहज रूप से बँट रहा होगा. हमारे पूर्वजों के अनुसार ज्ञान दो प्रकार के होते हैं - सार वाला और थोथा वाला. सार वान ज्ञान अक्सर नीरस होता है और थोथा प्रतीत होता है. लेकिन थोथा ज्ञान, वाह वाह क्या बात है. क्या बच्चे क्या बूढ़े सबको बहुत रास आता है. टिकटॉक, मौज़, जोश इत्यादि ने लोगों को अपनी क्रियेटिविटी के नये आयाम खोजने में जिस तरह सहयोग किया है, यकीन मानिये संभवतः पूरी फ़िल्म और टेलीविज़न इंडस्ट्री इतने कलाकारों के लिये कम पड़ जाती. रही सही कसर स्टारमेकर और एस्म्यूल ने पूरी कर दी. जिन गवैयों को बच्चे बाथरूम के बाहर गाने की इजाज़त नहीं दे रहे थे. वो पूरे सोशल मीडिया की नाक में दम किये पड़े हैं.
बाक़ी सोशल मीडियाओं की तुलना में वाट्सएप्प ज़्यादा श्रेष्ठ है. बाक़ी सोशल मिडिया में आपको कुछ तो करना ही पड़ेगा. चाहे फोटो अपलोड करनी हो या कमेन्ट, थोड़ी मेहनत तो करनी ही पड़ेगी. लेकिन वाट्सएप्प आपको कुछ करने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं है. मैसेज इधर से आना है, उधर फॉरवर्ड हो जाना है. बुरा हो दिन दूनी रात चौगुनी अफवाह फैलाने वालों का कि वाट्सएप्प को प्रतिबन्ध लगाना पड़ा कि एक बार में एक मैसेज सिर्फ़ और सिर्फ़ पाँच लोगों को भेजा जा सकेगा. तो भाई लोगों ने उसकी भी काट खोज लिया. व्हाट्सएप्प ग्रूप बना कर. अब अफवाह फैलाना थोडा आसन हो गया. लेकिन ग्रूप के सदस्यों पर ये निर्भर करता है कि वो अवांछित चैट को झेलें या ग्रूप से प्रस्थान ले लें. इस ग्रूप ने बहुत दुश्मनियों को अंजाम दिया. विशेष तौर पर राजनितिक पोस्ट के कारण. कोरोना के कारण आमने-सामने बैठ कर मुँह तोड़ जवाब देने का मौका नहीं मिल पा रहा है. इस लिये लोग-बाग़ मोबाइल तोड़ विमर्श करने को बाध्य हैं. कुछ मित्र मोदी-योगी के धुर विरोधी हैं. ग्रूप पर किसी ने सरकार के समर्थन में पोस्ट प्रेषित कर दी. बस क्या था, पूरे के पूरे ग्रूप का, जो साथ जीने-मरने की कस्में खाता था, दो-फाड़ हो गया. पहले बहस हिंदी में चली. फिर धीरे-धीरे अंग्रेजी में परिवर्तित हो गयी. सभी को डर था कि कहीं शुद्ध हिंदी का प्रयोग न होने लगे. बहरहाल इन बहस-मुसाहिबों से कुछ निकलने वाला नहीं. सब लोग अपने प्रारब्ध से जड़ रूप से जुड़े हुये हैं. किसी पक्ष ने अपना पाला बदला हो, ऐसा कभी नहीं हुआ. हाँ, दुश्मनियाँ अवश्य परवान चढ़ गयी. कोई ग्रूप छोड़ के भाग गया. किसी को मान-मनव्वल करके वापस इसलिये जोड़ा गया कि दमदार विपक्ष नहीं होगा तो ग्रूप रूपी पार्लियामेन्ट की डिबेट में आनन्द नहीं आयेगा. ये बात अलग है कि उन्हें सुलगाने के लिये लल्लू-पप्पू जैसे कुछ शब्द ही काफी थे. गुलदस्ते में यदि भिन्न-भिन्न फूल न हों तो गुलदस्ते का मज़ा ही क्या.
जिन लोगों को अपने समय की कीमत का ज़रा भी भान था वो ग्रूप में बिल्कुल भी शिरकत न करते. जब पर्सनली बात कीजिये तो बताते भाई मै तो ग्रूप को बिना देखे ही डिलीट कर देता हूँ. दिन भर लोग कुछ न कुछ भेजते रहते हैं. बहुत खाली लोग हैं. पलट के ये पूछना की आप अपने खाली समय का क्या करते हैं, धृष्टता हो जाती इसलिये कभी पूछने की हिम्मत नहीं कर पाया. बहरहाल ग्रूप छोड़ने और जोड़ने के चक्कर में वर्मा जी को पता चला वाट्सएप्प में एक और फ़ीचर ब्रॉडकास्ट लिस्ट का. एक मैसेज कुछ सेकेंड्स में अपने सभी इष्ट-मित्रों को कैसे भेजा जाये - इन वन स्ट्रोक. बस फिर क्या था. वर्मा जी को मज़ा आ गया. आनन-फानन में दो-ढाई सौ लोगों को लिस्ट में डाल दिया. अब वन-वे ज्यादती शुरू हो गयी. अपना गाना स्टारमेकर पर बनाया और झेल दिया. कोई उल्टा-पुल्टा ब्लॉग लिखा और टिका दिया. ये तो भला हो कि टेक्नॉलोजी अभी थोड़ी कम एडवान्स है, वर्ना इतने लप्पड़ पड़ते कि बुद्धि हरी हो जाती.
बहरहाल उन्होंने अपने टाइम पास का आदर्श मूल्य स्थापित करने के उद्देश्य से गुड मॉर्निंग मैसेजेज़ भेजने का निर्णय लिया. स्टारमेकर और ब्लॉग्स का नम्बर तो हफ़्ते दस दिन में आता है. तब तक सबको शुभकामना सन्देश ही भेज दिया करें. उनको उनके इस नेक इरादे ने आनन्द से विभोर कर दिया. दूसरों की लाइक्स और डिसलाइक्स की परवाह करने की उम्मीद किसी को नहीं होनी चाहिये क्योंकि इस गुनाह में हर कोई कम या ज़्यादा शामिल है. कौन परवाह करता है कि टिकटॉक और मौज का कचरा न फैलाये. लेकिन जब और लोग नहीं मानते तो वर्मा जी भला क्यों मानें. उन्होंने अपना वन-वे प्रसारण जारी रखा. वर्मा जी नियम से प्रतिदिन प्रातः लोगों को गुड मॉर्निंग भेजने लगे. अब भेजने का काम तो कर दिया लेकिन किसने देखा किसने नहीं ये जानने का उनका काम और बढ़ गया. पहले तो थोडा समय बच भी जाता था लेकिन अब समय काटने की कोई चिंता न थी. पहले एक मैसेज भेज दो फिर चेक करो किस-किस का टिक डबल हुआ और किस-किस का हरा. लेकिन इस काम से जल्दी बोर हो गये. नतीजा नेकी करके दरिया में डालना ही समझदारी थी. भेज दिया तो भेज दिया कौन देखे किसने देखा या नहीं.
लेकिन जैसे पहले भी बताया जा चुका है कि लोग आज कल अपने को व्यस्त दिखाने के चक्कर में नोटिफिकेशन ऑफ़ करके बैठ जाते हैं ताकि वो तो मैसेज देख लें लेकिन किसी को पता नहीं चले कि उन्होंने देखा. काफी दिनों से वर्मा जी ने मैसेज का डिलीवरी स्टेटस देखना बन्द कर रखा था. एक दिन फुर्सत में देखना शुरू किया तो देखा कई लोगों का मैसेज महीनों से हरा नहीं हुआ था. करोना काल में ये वाट्सएप्प और फेसबुक ही था जिसने लोगों को डीप डिप्रेशन में जाने से बचा लिया. यदि किसी ने मैसेज नहीं देखा तो वर्मा जी की चिन्ता स्वाभाविक थी. सभी तो नाते-रिश्तेदार-दोस्त थे. उनसे रहा नहीं गया डरते-डरते फोन लगा दिया कि कहीं कोई अप्रिय समाचार न सुनने को मिले. उधर से दोस्त की खनकती हुयी आवाज़ सुन कर जान में जान आयी. क्या यार बहुत दिनों बाद फोन किया. इधर तो दूसरी वेव बहुत सख्त गुज़री. हर कोई किसी न किसी रूप से इससे प्रभावित हुआ है. तुम सभी ठीक हो न. वर्मा जी देसी अंदाज़ में आ गये. दो-चार सम्पुट लगा कर बोले - अबे साले रोज-रोज गुड मॉर्निंग भेज रहा हूँ, तुम हो कि देखते ही नहीं. मुझे तो बहुत चिंता हो गयी. पता नहीं क्या क्या सोच लिया. दोस्त ने जवाब दिया - यार कम पापी थोड़ी न हूँ. अभी नम्बर नहीं लगने वाला. क्या बताऊँ दोस्त मैंने वाट्सएप्प का नोटिफिकेशन ऑफ़ कर रखा है. नहीं तो लोग समझते हैं वर्क फ्रॉम होम के नाम पर घर पर ऐश कर रहा है. भाई आज कल यही सब तो टाइम पास है. देखता मै रोज था, बस रिस्पोंस नहीं करता था. लोग भी न इतना सारा गुड मॉर्निंग ज्ञान भेज देते हैं कि मोबाइल की मेमोरी रोज फुल. डिलीट करते करते हालत ख़राब हो जाती है. मै तो मॉर्निंग मैसेज खोलता भी नहीं. मेरी राय मानो तो स्टेटस पर अपना गुड मॉर्निंग भेज दिया करो. बिना किसी प्राइवेसी के, जिसे चाहिये होगा देख लेगा और तुम्हें भी इतने लोगों को भेजने के लिये ज़्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. आइडिया में दम था. वर्मा जी ने उसे अपना लिया. अब ब्रॉडकास्ट करने के बाद उसी मैसेज को स्टेटस पर भी डाल देते. टिक के हरे होने की चिन्ता समाप्त. बस फ़र्क इतना था कि अब उनकी गुड मॉर्निंग विशेज़ कॉन्टैक्ट लिस्ट के हर व्यक्ति तक उपलब्ध थीं. लेकिन क्या फ़र्क पड़ता है.
उनका जो फ़र्ज़ है, वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है, जहाँ तक पहुँचे
(जिगर मुरादाबादी)
- वाणभट्ट
:) सही है | हम पर है तकनीक को कैसे से और कितना इस्तेमाल करें | अच्छे बुरे दोनों पक्ष हैं
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंसभी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पे जा जा के लौट आए और फिर कचूकर कर के एक जूस निकाल दिया है आपने ... हर हालात का सैकोलोगिकल विश्लेषण कर डाला इस [ओसत में ... जय हो ...
आज के दैनिक जीवन की सच्चाई को इस तरह पेश किया है आपने जैसे दर्पण देख रहे हो । प्रभावी और रोचक सृजन ।
जवाब देंहटाएंसमझ ही नहीं आता कि इस बला से छूटें तो कैसे छूटें.. इतना अवश्य किया है कि फोन से ट्विटर और फेसबुक ऐप उड़ा दिया है इसलिए घड़ी घड़ी खोलकर नहीं देखता हूँ।
जवाब देंहटाएंसोशल मिडिया का उसका चस्का एक लिमिट से ऊपर था. - आम है अब :)
जवाब देंहटाएंसत्य वचन = लेकिन यकीन मानिये यदि आपके पास कोई बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं है तो सोशल मिडिया से दिलचस्प कोई चीज़ नहीं है.
. मै तो मॉर्निंग मैसेज खोलता भी नहीं. - मैं भी :)
Social media par ekdam sateek jaankari evam broadcast/good morning par prakash dala. Padhkar maja aaya.
जवाब देंहटाएंउनका जो फ़र्ज़ है, वो अहल-ए-सियासत जानें
जवाब देंहटाएंमेरा पैग़ाम मोहब्बत है, जहाँ तक पहुँचे
(जिगर मुरादाबादी)
भेजते रहो संदेश कोई देखे या न देखे
जवाब देंहटाएंरहे इल्म कि कोई याद तो करता है।