शनिवार, 25 जुलाई 2020

सन्तो

सन्तो

ये जो होता है न, हमेशा अच्छे के लिये ही होता है।  ऐसा धुर पॉज़िटिव एटीट्यूड रखने वाले निःसंकोच कहते रहते है। जब कोरोना की आहट हुयी तो लगा अब पॉसिटिव सोच वालों की शामत आयी। लेकिन नहीं आयी। दरअसल ये वो लोग हैं जो अलबत्ता तो तीर चलाते नहीं, और यदि किसी गरज़ से तीर चलाना पड़ ही गया तो लक्ष्य की तनिक भी परवाह नहीं करते। जहाँ तीर लग गया वहीं गोला खींच आते हैं। आत्मविश्वास को सफलता की कुन्जी कहा गया है। ये इन भाई लोगों कूट - कूट कर भरा होता है। ज्ञानी लोग तो सदैव आत्मसंशय  से पीड़ित रहे हैं। लेकिन इन भाई लोगों में संशय ली लेशमात्र भी गुंजाइश नहीं होती। कोरोना को किसी देश ने इतने हल्के में नहीं लिया होगा जितना कि भारत में। सरकारें लगी पड़ी हैं, लेकिन ये भाई लोग हैं  कि सब भगवान और अल्लाह पर छोड़ कर मस्त हैं। हम तो क़ुदरत के बन्दे हैं हमारा कोई क्या बिगाड़ लेगा और जब ऊपर वाला बुलाना चाहेगा तो बुला भेजेगा। नीचे वाला क्या रोकेगा। मेरे और भगवान के बीच में   कोरोना कहाँ से आ गया। कुछ ने फ़रमाया ये सिर्फ उन्हें होगा जो दूसरे पशु-पक्षियों को अपना आहार समझ के दिन-रात चर रहे हैं। शाकाहारियों को कोरोना छुयेगा भी नहीं। प्रकृति अपना बदला ले रही है। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक डिक्लेयर  कि भारत की गर्मी में कोरोना दम तोड़ देगा। ये तो भला हो मौसम का जो जून में भी प्रचंड गर्मी नहीं पड़ पायी वर्ना उन्हें कोई नया सिद्धान्त प्रतिपादित करना पड़ता। छूट-पुट  बूंदा-बांदी और बंगाल-गुजरात के तूफ़ानों तापमान को बढ़ने नहीं दिया। लेकिन जो ज्ञान की आँधी इन दिनों बही है उसने सभी अगले - पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिये। लॉकडाउन ने लोगों को सोचने - समझने का इतना मौका कि कम्बख़्त टाइप के लोगों ने अपने ज्ञान को गुलज़ार-ग़ालिब-बच्चन के नाम से पेल दिया। उन्हें इतना कॉन्फिडेंस तो था ही की उनके नाम पर लोग मैसेज बिना पढ़े ही डिलीट कर देंगे। ग़ालिब के चक्कर में कइयों ने ज्ञान कई - कई बार आगे फॉरवर्ड कर दिया। लेकिन ऐसे लोगों से गुजारिश है कि जिसने इन कवियों को पढ़ रखा हो उनके मासूम दिलों पर रहम करें।  

जैसे हर किसी को अपनी किसी न किसी बात पर बेवजह फ़क्र होता है वैसे ही शर्मा जी को ग़लतफ़हमी हो गयी थी कि व्हाट्सएप्प और फेसबुक के जरिये वो दोस्तों और दोस्ती की वो इबारत गढ़ेंगे जो जय और वीरू की दोस्ती से भी आगे निकल जायेगी। लिहाज़ा उनके दिन का अधिकांश हिस्सा सोशल मिडिया पर बीतने लगा। पहले तो हर बार कम्प्यूटर या लैपटॉप खोलने की जहमत उठानी पड़ती थी। जबसे चीन द्वारा निर्मित सस्ते, सुन्दर और अच्छे स्मार्ट फोन्स की मार्केट में भर मार हो गयी है, सोशल मिडिया पर एक्टिव रहने वालों की तो लॉटरी खुल गयी। हर हाथ में मोबाईल है, हर गर्दन झुकी हुयी है, हर समय। गोया कि-  

दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार 
जरा गर्दन झुकायी देख ली 

शर्मा जी ने आव देखा ना ताव। धड़ाधड़ फ्रेंड रिकवेस्ट भेज डालीं फेसबुक पर। देखते, न देखते उनका फेसबुक फ्रेंड्स का आँकड़ा हजार के अल्ले - पल्ले पहुँच गया। देखते, वो वाले थे जिन्हें उन्होने रिकवेस्ट भेजी थी और न देखते वाले वो थे जिनसे शर्मा जी कभी न कभी टकराये होंगे। पुरानी गर्लफ्रेंड्स खोजी गयीं। उन्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी गयी। और वो तब तक भेजते रहते जब तक कि उनका निवेदन स्वीकार न कर लिया जाता। लेकिन कानून भी कोई चीज़ है। किसी महिला को दो बार से ज़्यादा फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना गुनाह बन चुका है। इसलिये शर्मा जी मन मसोस कर रह गये। जैसे ताली एक हाथ से नहीं बजती, वैसे ही दोस्ती के लिये भी दोनों तरफ़ आग बराबर लगी होनी चाहिये। किसी पुरानी दुश्मनी को ख़त्म करने का तरीका है, फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दो या एक्सेप्ट कर लो और फिर लड़ो फेसबुक पर। उसके हर विचार की सामूहिक आलोचना करो और तब तक करते रहो जब तक वो या आप या दोनों एक-दूसरे को ब्लॉक न कर दें। अब आपको ये अफ़सोस नहीं होगा कि दोस्ती बढ़ाने के प्रयास में कोई कमी रह गयी। पहले तो बेशर्म बन कर दूसरे के पास जाना पड़ता था। अपनी इज्ज़त ताक पर रख कर बोलना पड़ता था - भाई बुरा मान गया क्या। अब तो बहुत आसान है फेसबुक पर लड़ लो, व्हाट्सएप्प ग्रुप पर लानत-मलानत भेज दो, बाद में पर्सनल मेसेज से माफ़ी माँग लो। माफ़ कर दिया तो ठीक, वर्ना पे-कमीशन लग जाने के बाद से किसको किसकी ज़रुरत पड़नी है।  

हर किसी के जन्मदिन पर शुभकामनाओं की झड़ी सी लग जाना आम सी बात हो गयी है। अक्सर लोगों को ये समझ नहीं आता कि कितनों को वाकई धन्यवाद देना है। अगले दिन वो बड़ी विनम्रता से सभी के लिये एक कॉमन मैसेज डाल देते हैं कि उन्होंने उसके दिन को यादगार बना दिया इसलिये सभी को हृदय से धन्यवाद। एक बार तो शर्मा जी को खुशफ़हमी हो गयी, जब उनकी बर्थडे पर दो - ढाई सौ बधाइयाँ आ गयीं। उन्होंने हर किसी को व्यक्तिगत तौर पर धन्यवाद ज्ञापित किया। बैंक-जीवन बीमा-म्युचुअल फण्ड-सिम कम्पनियों ने  भी शुभ सन्देश देने की व्यवस्था कर रखी है। बीवी भले जन्म दिन भूल जाये, पर ये अपने ग्राहक को एसएमएस और ईमेल के जरिये फील गुड़ कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। एक बार तो हद हो गयी। उन्नीस के आम चुनाव से पहले प्रधानमन्त्री का पर्सनलाइज़्ड मैसेज आ गया ईमेल पर। शायद कभी माई गॉव पर अपनी जानकारी दी होगी। अब क्या कहने शर्मा जी ने उसे कॉपी पेस्ट करके फेसबुक पर चेप दिया। लेकिन वोट पक्का हो जाने के बाद कभी पीएम साहब की नज़र-ए-इनायत नहीं हुयी। उसके बाद से लगता है नये वोटरों को सन्देश जा रहे होंगे। शायद ऐसे ही एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों तक  पहुँचा जा सकता है। एक बार प्रोफ़ाइल पर कुछ छेड़-छाड़ करते हुये शर्मा जी की डेट ऑफ़ बर्थ हट गयी। यकीन मानिये बैंक और एलआईसी वालों के अलावा न तो एक मेल आया न मैसेज। दिल बस टूटने ही वाला था लेकिन उन्होंने ख़ुद को समझाया कि भाई लोग बिज़ी हैं, फेसबुक ही है जो सबको जन्मदिन याद दिलाता रहता है, नहीं तो दुनिया में कौन जानने वाला है। 

धीरे-धीरे फेसबुक का उफ़ान जैसे चढ़ा था, उतरने लगा। आज ऐसा दौर आ गया जब सब लोग फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर एक्टिव तो रहते लेकिन कोशिश करते कि लोग उन्हें बिज़ी समझें। इसलिये उन्होंने प्रोफ़ाइल के नोटिफिकेशन्स बंद कर दिये। ताकि खोजी लोग ये न जान सकें कि उन्होंने पोस्ट पढ़ ली है। जहाँ पहले कमेंट देना सामाजिक पुण्य समझा जाता था, वहाँ अब पोस्ट का आनन्द ले कर भी कमेंट न करने का फैशन चल पड़ा। समाज सेवा के लिये पहले भी समय निकालना पड़ता था। लेकिन तब थोड़ा अडोसी-पडोसी से मिलने-मिलाने का रिवाज़ हुआ करता था। अब तो सारी दोस्ती व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर सिमट कर रह गयी है। किसी ने आपको यहाँ समय दे दिया तो समझ लीजिये आप उसके घर की चाय पी आये। यदि वास्तविक दुनिया में यारी-दोस्ती जैसी चीज़ बची होती तो वर्चुवल दोस्ती को कौन पूछता। अब दोस्ती का क्राइटेरिया ये हो गया है कि आपकी पोस्ट पर कितने कमेंट आये या कितने लाइक मिले। दुश्मनी भी लोग ऐसे ही निकाल रहे हैं - पोस्ट को अनदेखा करके। शुक्र है अनलाइक का ऑप्शन नहीं है। अब जब लोगों ने व्हाट्सएप्प और फेसबुक को भी टाइम वेस्ट करने का ज़रिया मान ही लिया है तो दोस्ती का तो भगवान ही मालिक है। अब सोचने वाली बात ये है कि तीन-चार प्राणियों के परिवार वाले लोग बिज़ी कहाँ हैं। पडोसी से भी मुलाकात अब मॉल में ही होती है। कोई किसी को डिस्टर्ब नहीं करता कि अगला पता नहीं कितना बिज़ी है। एक साहब ने अपने मातहतों को निर्देश दे रखा था कि मिलने  पहले पर्ची में नाम और काम लिख कर भेजो, यदि उचित होगा तभी मिलना संभव होगा। सुबह से शाम तक वो अपने काम में व्यस्त रहते। एक दिन किसी ने गलती से मिस्टेक कर दी। अन्दर का नज़ारा कुछ और था। फाइलों के ढेर के पीछे साहब हाथ में मोबाईल लिये मशगूल थे। 

और इधर दिन प्रतिदिन शर्मा जी बदनाम हुये जा रहे थे। कोई काम नहीं है सुबह से ही गुड मॉर्निंग करने लग जाते हैं और गुड नाइट के बाद ही सोते हैं। दिन भर पोस्ट पर कमेंट और रिएक्ट करने का टाइम कहाँ से मिल जाता है। बड़का लोगों की तरह इनके पास कोई ट्विटर सेल तो है नहीं। पता नहीं कितना समय है बर्बाद करने के लिये। शनै - शनै शर्मा जी का परिचय भी कुछ इस प्रकार हो गया। लोग पूछते - कौन से शर्मा जी हैं ? दूसरे बताते - फेसबुक वाले। लेकिन शर्मा जी बिना निराश और हताश हुये अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में लगे पड़े हैं। उन्हें कभी-कभी आश्चर्य भी होता था लोग अपने समय का करते क्या हैं। सबसे कीमती समय है ऐसा लोग कहते रहे हैं। लेकिन समय का करना क्या है ये किसी ने नहीं बताया है। 

जब लोगों के जीवन में आप-धापी अपने चरम पर थी, तब पदार्पण हुआ - कोरोना का। सारी दुनिया वहीं रुक गयी। ज़िन्दगी जो फ्री में मिली हुयी लगती थी, उसकी कीमत लोगों को अनायास समझ आ गयी। थाली-घण्टी किसी से ऐसे ही बजवा कर देख लो। लॉजिकल लोग जो अभी तक चपेट में नहीं आये हैं, इसका मज़ाक बना सकते हैं। लेकिन ज़िन्दगी लॉजिक से कहीं उपर विश्वास के लेवल पर चलती है। इस त्रासदी ने क्या-क्या नहीं देखा-दिखाया - सरकारों के खुले ख़ज़ाने, दान वीरों का दान, कर्म वीरों का त्याग, किसान और जवान का योग दान और आम नागरिकों का नियम पालन। सबने सिद्ध कर दिया कि संकट जितना बड़ा होता है जिजीविषा भी उतना बड़ा रूप ले लेती है। लेकिन इस स्थिति में जिसने आपको-हमको-सबको सम्बल दिया वो क्या था - व्हाट्सएप्प और फेसबुक। भाई लोगों ने क्या - क्या ज्ञान नहीं बाँटा। हल्दी, अदरक, निम्बू , कालीमिर्च और गुड़ की ऐसी मार्केटिंग कभी नहीं देखी। मार्च से शुरू हुआ लॉक डाउन लगभग चार महीने का होने जा रहा है। शुरुआत जोरशोर से हुयी। दसियों जोक्स रोज इधर से उधर घूमते रहते। फिर लोगों की छिपी हुयी प्रतिभायें, गायन-वादन-कुकिंग आदि उभरने लगीं। महीना बीतते न बीतते जोक्स कार्टून का सर्कुलेशन घटने लगा। करोना से बचने-बचाने की बातें शुरू हो गयीं। डॉक्टर्स के इंटरव्यूज़ घूमने लगे। जीवन दर्शन पर पता नहीं कितनी थीसिसें लिख दीं गयीं। लेकिन काबिल-ए-गौर बात ये थी कि हास्य और व्यंग जिसकी पहले प्रधानता हुयी करती थी, वो गायब हो गया। ज्ञान बिन माँगे धड़ाधड़ बँट रहा है मानो सबके ज्ञान चक्षु खुल गये हैं। इस स्थिति का कबीर साहब ने कुछ इस तरह बखान किया था  - 
संतो भाई आई ज्ञान की आँधी रे 
भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बाँधी 
हिति चित्त की द्वै थूंनी गिरानी, मोह बेलिंडा टूटा 

बड़ी - बड़ी विभूतियाँ भी जब कोरोना की चपेट में आ चुकी हैं तो ये तय है कि कोरोना किसी को कभी भी, कहीं भी पकड़ सकता है। इसलिये सन्त जनों से निवेदन है कि ज्ञान को विराम देने कष्ट का करें। शायद व्हाट्सएप्प के लिए चुटकुले लिखने वाली कम्पनियाँ भी लॉक डाउन का शिकार हो गयी हो। जो कार्टून्स आ भी रहे हैं वो राजनितिक होते चले गये। जिनके कारण ग्रुप्स में वाद-विवाद भी बढ़े। नतीजा ये कि कोई ग्रुप छोड़ के भाग रहा है, कोई वाद-विवाद में उलझ रहा है, कोई सिर्फ देख रहा है कमेंट नहीं कर रहा है। जब ईमेल शुरू हुआ था, तब लोग दिन में चार बार इंटरएक्ट करते थे। अब ईमेल पूरी तरह ऑफिशियल हो चुका है। व्हाट्सएप्प के भी ऑफिशियल ग्रुप बनते जा रहे हैं। यदि यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब सब वर्चुअल दोस्ती से भी महरूम हो जायेंगे। शर्मा जी बस समाज कल्याण के उद्देश्य से इस सेवा को चालू किये पड़े हैं। भला हो शर्मा जी का वर्ना आज के युग में जब सबको अपने अलावा सोचने का समय नहीं है, वो फेसबुक और व्हाट्सएप्प की विधा पर अपना निरंतर योगदान दे रहे हैं। फूल बाँटने वालों के हाथ भी महकते हैं, ऐसा ज्ञान आज ही कहीं से टपका है। अच्छे चुटकुलों और कार्टून्स के लिये लगता है शर्मा जी को किसी वर्चुअल टैलेंट सर्च का कम्पटीशन करवाना पड़ेगा - बेस्ट चटकुला ऑफ़ द डे। 

- वाणभट्ट 






न ब्रूयात सत्यम अप्रियं

हमारे हिन्दू बाहुल्य देश में धर्म का आधार बहुत ही अध्यात्मिक, नैतिक और आदर्शवादी रहा है. ऊँचे जीवन मूल्यों को जीना आसान नहीं होता. जो धर्म य...