रविवार, 21 जुलाई 2013

सदाशयता

सदाशयता 


मंदिरों में इन दिनों भीड़ ज्यादा होने लगी है। सब लोग धार्मिक हुए जा रहे है। ऐसा लगता तो है। पर जो होता है वो लगता नहीं और जो लगता है वो होता नहीं। जो पूजा मुझे घर के कोने में मिल जाती है वो मै बद्रीनाथ और केदारनाथ में नहीं पा सका। मै अपने आपको धार्मिक मानता तो नहीं हूँ पर धर्म के साथ ज़रूर रहने का प्रयास करता हूँ। इस लिए भगवत प्राप्ति का कोई भी सुअवसर हाथ से जाने नहीं देता। 

सो जब गुप्ता जी ने मंदिर चलने को कहा तो मै मना नहीं कर सका। भीड़-भाड़ और शोर-शराबे में मंदिर तो पहुँच जाता हूँ पर भगवान् गुम हो जाते हैं। उस दिन भी बहुत भीड़ थी। शनिवार का दिन था। शनि देव को प्रसन्न करने के जितने जतन मैंने बचपन से कभी न सुने न देखे वो आजकल प्रचलित हो उठे हैं। मंदिरों में भगवानों का एडीशन हो रहा है, मार्किट वैल्यू के हिसाब से। कानपुर के मंदिर में जब काम लगा देखा तो पता चला शीघ्र ही शनि महाराज की स्थापना होने वाली है। स्थापना होते ही वहां तेल-दिए-बाती सब उपलब्ध हो गए। एक नया व्यवसाय पनपते हुए मैंने देखा।

लुधियाना में भी कुछ ऐसा ही हुआ। बारह साल बाद जब यहाँ आना हुआ तो पुराने काली मंदिर में शनिदेव की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी थी। ठेलों पर वो सारी चीजें मुहैया थीं जो कानपुर में मिला करतीं थीं। शनिदेव की महिमा है जहाँ-जहाँ न पहुँच जाए। क्या यूपी क्या पंजाब। सब जगह प्रभु का वास है। इसी को देख कर भारत की अनेकता में एकता वाली किम्वदंती सत्य लगने लगती है। माइंड इट...लगती है।

बहरहाल मंदिर में शनि देव की कृपा से बहुत भीड़ थी। माता रानी का जागरण भी चल रहा था। एक ही काम्प्लेक्स में सभी भगवान् होने से दर्शनार्थियों को इधर-उधर भटकने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। वन स्टॉप मन्दिर। राम भी हैं, कृष्ण भी, हनुमान भी और शंकर भी। मैंने भीड़ को देखते हुए वहीँ से असीम श्रद्धा के साथ सभी भगवानों का अभिवादन किया और मंदिर प्रांगण में घुसने का विचार त्याग दिया। गुप्ता जी बिना दर्शन किये लौटने को राजी न थे।   

बाहर एक बहरूपिया शनि देव के वस्त्र धारण किये। उसके सामने एक रुपयों से भरी टोकरी रक्खी हुई थी। मंदिर से जो भी निकलता उसकी टोकरी में कुछ न कुछ डाल देता। उसका आशीर्वाद पा लोग कृतज्ञ हो अपनी-अपनी दिशा में बढ़ जाते। संपन्न प्रदेश में चढ़ावा भी किसी को संपन्न बना सकता है। यूपी  में तो लोग घर से फुटकर रुपये लेकर मंदिर या कथा में जाते हैं। यहाँ दस-पांच-बीस के नोट उस टोकरी की शोभा बढ़ा रहे थे।

मै सर्वव्याप्त प्रभु की महिमा का गुणगान करने लगा। तू ही सबका सहारा है। शनि देव का भी आवाह्न किया। प्रभु धरा पर बहुत शनिचर सवार हो गए हैं। मेरे भले के लिए आपने अच्छा किया जो उन से दूर कर दिया। पर भगवन उन शनिचरों का भी तो कुछ निपटारा कीजिये जो देश-समाज को खोखला किये जा रहे हैं। 

मेरी प्रार्थना ज्यादा देर नहीं चल पायी। एक बच्चा जोर-जोर से रो रहा था। किसी जिद पर अड़ गया था। थोड़ी निगाह घुमाई तो एक गुब्बारे वाला पास ही खड़ा था और बच्चा एक बड़ा गुब्बारा खरीदने पर आमादा था। गुब्बारे वाला उसका मूल्य बीस रुपये आंक रहा था। माँ को शायद ये फिजूलखर्ची लग रही हो या उसके पर्स में सिर्फ लौटने का किराया हो। महिला बहुत संपन्न नहीं थी पर कपड़ों की चमक से उसे गरीब नहीं कहा जा सकता था।

माँ बच्चे को घसीटने के साथ-साथ डाँट  भी रही थी। तभी शनि देव बने उस व्यक्ति ने रास्ता रोक लिया और बीस का नोट माँ के हाथ पर रख दिया। बोला "बेटी, दिला क्यों नहीं देती, बच्चे का दिल नाहक दुखा रही हो।" 

किम्कर्तव्यविमूढ़ सी महिला को समझ नहीं आ रहा था कि वो पैसा ले या न ले। 

बच्चे की ज़िद जारी थी। 

- वाणभट्ट 



     

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