रविवार, 15 मई 2011

जीवन

जीवन

गर्मी की रात
छत पर लेटे-लेटे
यूं ही 
मै हर तारे पर 
लम्हों के नाम लिख देता हूँ
और फिर गिनता हूँ
उन्हें घास के तिनकों की तरह
कुछ भूलता सा, कुछ याद करता

इसी तरह सरकती जाती है
जिंदगी धीरे-धीरे
लम्हा-लम्हा

छिपकली की दुम की तरह
जो बढ़ती है धीरे-धीरे
और
कब पूरी हो जाती है
पता भी नहीं चलता

पर हर पल का अपना निशान
अपने में पूरा
और पूरे में अधूरा
फिर भी
वो इक कड़ी है
जो जोड़ती है
बीते और आने वाले पल को

इस प्रकार बनती है
श्रृंखला
जो टूटती है
पूरी हो कर.

- वाणभट्ट 


14 टिप्‍पणियां:

  1. इस बनने और टूटने का नाम तो जिंदगी है...

    बहुत बढ़िया.

    जवाब देंहटाएं
  2. आपने तो लगता है, हमारे यहाँ के हालात अपने शब्दों में ब्यान कर दिये है,
    जब बिजली चली जाती है, तो इस सुंदर कविता से हमारी तुलना आप कर सकते है

    जवाब देंहटाएं
  3. जिंदगी का यही तो सिलसिला है जो चलता रहता है|

    जवाब देंहटाएं
  4. हर पल का अपना निशान
    अपने में पूरा
    और पूरे में अधूरा
    फिर भी
    वो इक कड़ी है
    जो जोड़ती है
    बीते और आने वाले पल को... aur kahti hai, yahi hai zindagi

    जवाब देंहटाएं
  5. मै हर तारे पर
    लम्हों के नाम लिख देता हूँ
    और फिर गिनता हूँ
    उन्हें घास के तिनकों की तरह
    कुछ भूलता सा, कुछ याद करता

    बहुत सुन्दर ... यही जुडना और टूटना ज़िंदगी है

    जवाब देंहटाएं
  6. गर्मी की रात
    छत पर लेटे-लेटे
    यूं ही
    मै हर तारे पर
    लम्हों के नाम लिख देता हूँ
    और फिर गिनता हूँ
    उन्हें घास के तिनकों की तरह
    कुछ भूलता सा, कुछ याद करता
    ise hi kahte hai jindagi....jo yaade ban kar har pal sath hai .....

    जवाब देंहटाएं
  7. इसी को जीवन कहते हैं...बहुत अच्छी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  8. गर्मी की रात
    छत पर लेटे-लेटे
    यूं ही
    मै हर तारे पर
    लम्हों के नाम लिख देता हूँ

    सार्थक रचना |

    जवाब देंहटाएं
  9. पर हर पल का अपना निशान
    अपने में पूरा
    और पूरे में अधूरा
    फिर भी
    वो इक कड़ी है
    जो जोड़ती है
    बीते और आने वाले पल को

    बहुत सुंदर ......यूँ ही चलता रहता है जीवन.....

    जवाब देंहटाएं
  10. .

    कभी कभी तन्हाई के पलों में यूँ ही बैठकर सोचती हूँ तो कुछ ऐसा ही एहसास होता है , जैसा आपने बयान किया है इस रचना है । लगता है ज़िन्दगी इतनो छोटी क्यूँ है , कुछ और लम्बी होती तो बिखरती कड़ियों को सँभालने का कुछ वक़्त भी मिल जाता ।

    बहुत सुन्दर रचना । मन के कुछ आस-पास ही ...

    .

    जवाब देंहटाएं
  11. यादें बनती और खोती हैं और इसी के बीच के अंतराल को जीवन कहते हैं.. बहुत खूब...

    जवाब देंहटाएं
  12. जो नजर इस श्रृंखला को देखने लगता है..वह साक्षी हो जाता है ..सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  13. Bandhu,badhiya kavita ,jeevan ke satya ko darshati/hardik shubh kamnayen,sneh,
    aapka hi,
    dr.bhoopendra
    rewa
    mp

    जवाब देंहटाएं

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

आईने में वो

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. स्कूल में समाजशास्त्र सम्बन्धी विषय के निबन्धों की यह अमूमन पहली पंक्ति हुआ करती थी. सामाजिक उत्थान और पतन के व...