अमावा
दरवाज़े पर घण्टी बजी तो सामने वो खड़ा था. मुलाकात या जान पहचान कोई खास नहीं थी. इलेक्शन ड्यूटी में वो मेरा सेक्टर मजिस्ट्रेट हुआ करता था. नौकरी में आने के बाद कितने इलेक्शन का हिस्सा बना, अब याद भी नहीं रहा. बहुत से लोगों से मुलाक़ात होती है. एक उत्सव सा माहौल बन जाता है. कितने ही जन्मों के बिछड़े उसी तरह मिलते हैं, जैसे कुम्भ के मेले में खो गये हों. चार दिन की इंटीमेसी इलेक्शन्स ख़त्म होते ही ख़त्म हो जाती है. लेकिन उन भाई साहब का भाईचारा देख कर मन आल्हादित हो गया. बोले इधर से गुजर रहा था तो सोचा वर्मा जी को खटखटाता चलूँ. इतने प्यार से कोई मिले और हम चाय भी न पूछें, ऐसे तो हालात नहीं हैं. चाय पर चर्चा लम्बी चली और इतनी घनिष्ठता देख के मेरे मन में ये विचार आना स्वाभाविक था कि इसका कोई काम तो नहीं पड़ने वाला. लेकिन फिर ध्यान आया साइंटिस्ट जैसे निरीह प्राणी से किसी का क्या काम पड़ सकता है. वो अपना काम तो निकाल नहीं पाता तो भला दूसरे का क्या भला करेगा. बातें बहुत ही सौहार्द पूर्ण वातावरण में हुयीं. जाते-जाते फिर मिलने का वादा कर और करवा के भाई साहब निकल लिये. जिस आत्मीय तरीक़े से वो मिले थे, पत्नी को शक़ होना स्वाभाविक था कि उनके भोले-भाले पति फिर किसी को उधार देने के चक्कर में न पड़ जायें. जब से पे-कमिशन्स लगे हैं, लोग भयंकर रूप से आत्मनिर्भर हो गये हैं. कोई किसी के घर आना-जाना पसन्द नहीं करता. दुर्योग से अगर आप में कोई ऐब नहीं है, तो समाज आपको वैसे ही आइसोलेट कर देता है जैसे कोरोना से पीड़ित व्यक्ति को. जल्द ही आपको एहसास होने लगता है कि दारु-सिगरेट-पान-गुटका तो शुरू कर ही देना चाहिये. क्योंकि दोस्ती की पहली इबारत यहीं लिखी जाती है. ऐसे वातावरण में कोई एकदम अचानक टपक पड़े तो अतिथि देवो भव: वाला भाव आने लगता है.
ऐसी उम्मीद तो नहीं थी कि वो ज़नाब दोबारा जल्दी आयेंगे. लेकिन वो आये. इस बार उनकी श्रीमति जी भी साथ थीं. वो भी अपने पति की तरह खुशमिज़ाज़ और मिलनसार थीं. चाय बनाने के बहाने किचन का और सूसू के बहाने बाथरूम तक पूरे घर का मुआयना कर आयीं. लौटने के बाद वो थोडा संजीदा हो कर बैठ गयीं. धर्मपत्नी जी भी चाय-वाय, बिस्कुट-विस्कुट, दालमोट-वालमोट, सेंटर टेबल पर लगा कर उनके बगल में बैठ गयीं. चाय पीते हुये उन्होंने धीरे से कहा आप तो अच्छी खासी नौकरी पर हैं लेकिन सामान तो सारा बाबा जी वाला यूज़ करते हैं. जो बहुत ही सस्ते और घटिया होते हैं. वैसे तो मै ख़ुद को बहुत ही जमीन से जुड़ा व्यक्ति मानता हूँ, लेकिन जब कोई इनफेरियौरिटी कॉम्प्लेक्स थोपने का प्रयास करता है, तो मेरा सुपीरीयौरिटी कॉम्प्लेक्स जागने लगता है. बेसिकली इलाहाबादी होने के नाते उतना बदतमीज़ नहीं हूँ कि तू का जवाब तड़ाक से दूँ, इसलिये थोडा मुलम्मा चढ़ा कर विचारों को पेश कर देता हूँ. बोला भाभी जी बहुत बार एक्स्ट्रा क्रीम वाला साबुन ट्राई किया लेकिन अब मेरी गैंडे जैसी खाल तो मुलायम होने से रही. सर पर जब बाल ही नहीं रहे तो सतरीठा लगाओ या लॉरियाल, बाल तो उगने से रहे. मुझे लगा मेरे इतने उम्दा जोक पर कुछ ठहाका-वहाका लगेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस दिन मुझे पता चला कि मुँह बिचकाना किसे कहते हैं. मोहतरमा ने मुँह बिचकाते हुये बगल में बैठी मेरी श्रीमति जी की ओर कनखी से देखा. उन्हें ये नहीं पता था कि मेरी धर्मपत्नी यदि मार्केट ओरियेंटेड होतीं तो मेरे जैसे आउटडेटेड पति को कब का बदल चुकी होतीं. मेरी पत्नी ने कहा भाभी जी क्या बतायें ये तो मार्केट में घूम-घूम के, ढूँढ-ढूँढ के सबसे सस्ता सामान लाते हैं. कहते हैं साबुन-तेल-कंघी में कौन सी टेक्नॉलोजी लगी है. स्वदेशी सस्ता भी पड़ता है और चलता भी ज़्यादा है. लेकिन वो तो जलील करने पर आमादा लग रहीं थीं. बोलीं कभी मेरी कोठी पर आइये. उनके पति देव, जो अब तक मौन से बैठे थे, ने ऐन मौके पर इन्ट्री ली. सर ऐसा नहीं है, जब तक आप हाई एन्ड प्रोडक्टस यूज़ नहीं करते, आप उन चीजों की कमी नहीं देख पाते, जिन्हें आप यूज़ कर रहे हैं. आपके जो बाल झड़े हैं, उसमें रुसी से ज़्यादा शैम्पू का रोल हो सकता है. बहुत से हेल्थ प्रोडक्ट्स भी आते हैं, जो आपकी न्यूट्रीशन की आवश्यकता पूरी करते रहते हैं. बढती उम्र थम सी जाती है. अब हम ही लोगों को देख लीजिये पचास क्रॉस कर चुके हैं लेकिन कोई बता नहीं सकता. अगले शनिवार आप लोग आइये चाय पर फिर और बातें होंगी. वे लोग वाकई एलीट टाइप के लोग लग रहे थे. चलते समय उन्होंने एक कैसेट और बुक और पकड़ा दी. इसे सुनिये और पढियेगा. अब एक बात तो तय थी कि या तो उनका सामान वापस देने हमें उनके यहाँ जाना पड़ेगा या वो अपना सामान वापस लेने के बहाने एक बार फिर आयेंगे.
मेरी वाइफ़ मुझसे भी ज़्यादा भोली-भाली हैं. उन्होंने ने सोचा क्यों न एक बार चल कर उनकी कोठी भी देख ली जाये. दो बार तो बिना बुलाये आ कर मेहमाननवाज़ी करा चुके. एक मौका उन्हें भी देना चाहिये. इसलिये पहले ऑप्शन के लिये वो तैयार हो गयीं. जीपीएस की मदद से अपने घर से काफ़ी दूर एक पतली गली में उनकी कोठी खोजने में ज़्यादा दिक्क़त नहीं हुयी. हाँ, थोडा आश्चर्य ज़रूर हुआ कि अपने मकान, जिसे हम घर कहते हैं, से उनकी कोठी काफ़ी छोटी थी. लेकिन कोठी के अन्दर की दुनिया निराली थी. जितनी भी उपभोक्तावादी वस्तुयें आप सोच सकते हैं, उन सबके टॉप मॉडल घर में भरे पड़े थे. रंग-बिरंगी फॉल्स रूफ़ से छन के आती लाइट्स. महँगा पंखा-एसी-टीवी. सोफ़ा और सेंटर टेबल इतने बड़े कि इधर से उधर जाने की जगह दिख नहीं रही थी. जितना बड़ा टीवी उनके यहाँ लगा था, उतना बड़ा टीवी मैंने कभी देखा ही नहीं था. टीवी सेट और सोफ़े के बीच की दूरी बहुत नहीं थी, इसलिये गर्दन टेढ़ी कर के देखना पड़ रहा था. मुझे उन दिनों की याद आ गयी जब स्टूडेंट जीवन के दौरान सिनेमास्कोप फिल्में हॉल में आगे की पहली-दूसरी रो वाली सीट्स (बेंच कहना ज़्यादा उचित होगा) पर बैठ के देखनी पड़ती थी. बालकनी का टिकट औकात से बाहर हुआ करता था. जब बायीं तरफ से अमिताभ की एन्ट्री होती थी, तो शक़ होता था संजय दत्त आ गया क्या. उन्होंने थोड़ी देर बैठने के बाद ही इशारा किया कि आप लोग इधर अन्दर निकल आइये, डाइनिंग टेबल पर ही बैठते हैं. मुझे लगा सीधे मुद्दे पर आ गये. जल्दी चाय-वाय पिला कर रुखसत कर देंगे.
अन्दर का भी वही हाल था. उस लॉबी में जितनी बड़ी डाइनिंग टेबल और फ्रिज सम्भव थी, लगी हुयी थी. पूरा का पूरा घर सामान से भरा हुआ था और हर सामान ब्रान्डेड और हर सामान से पैसा टपक रहा था. अब मुझे घर और कोठी का अन्तर भी समझ आ रहा था. बस काम चलाऊ तरीक़े से सामान खरीद लेना, घर तो बना सकता है लेकिन उसे कोठी बनाने के लिये आपको पैसे खर्च करने पड़ते हैं. हम लोगों की सोच थी कि दिखाना किसे है, ख़ुद ही तो देखना है. इसलिये मार्केट सर्वे करके सबसे सस्ते विकल्पों की तलाश करते थे. तभी हमने ये भी मार्क किया कि इन दोनों के कपड़े-लत्ते-जूते-चश्मे सब ब्रैंडेड थे. ये मियाँ-बीवी तो ख़ुद चलते-फिरते ब्रैंड एम्बेसडर थे. उनकी बातों में भी दम था कि हम लोग वाकई बिलो स्टैण्डर्ड लाइफ़ जी रहे हैं. उनकी वाइफ़ का मुँह बिचकाना, मुझे जस्टिफाईड लगने लगा. डाइनिंग टेबल के परले सिरे की तरफ़ दीवार पर एक व्हाइट बोर्ड भी लगा था. मुझे लगा भाभी जी ज़रूर ट्यूशन क्लासेज़ लेती होंगी. चाय के इंतज़ार में हम लोग इधर-उधर की बातें करते रहे. ज़्यादातर विषय उनके और हमारे लिविंग स्टैण्डर्डस से ही रिलेटेड रहे.
इतने में घंटी बजी और मेजबान लोग दरवाज़े की ओर बढ़ गये. आगंतुक बिना किसी संकोच के अन्दर आ गया. डाइनिंग टेबल पर अपना भारी-भरकम बैग रख एक सीट पर कब्ज़ा करके बैठ गया. उनकी बातों से लगा कोई और भी आने वाला है. एक बार घन्टी और बजी. एक और बन्दा बिना तक़ल्लुफ़ के आ कर सामने बैठ गया. अब छ: सीटें थीं और आदमी भी छ: थे. किसी के साथ बेइंसाफी की गुंजाईश दिख तो नहीं रही थी. हमारे मेजबान ने नवागन्तुकों से हमारा परिचय कराना उचित नहीं समझा. जब सब लोग सेटेल हो गये तो होस्ट महोदय ने बात शुरू करने की गरज से बस इतना ही कहा - यही हैं वर्मा जी. उनकी परिचयात्मक शैली से ये आभास हो गया कि बाकी लोग हमारे बारे में उतना तो जानते ही होंगे जितना मेरे होस्ट को पता था.
जो सीनियर मोस्ट बन्दा था, उसने बिना गला खखारे बोलना शुरू किया तो मुझे अन्दाज़ लग गया था कि इसे बोलने और बोलते रहने की आदत है. उसने धीरे से कहा वर्मा जी आप वैज्ञानिक हैं, काफी पढ़े-लिखे भी हैं लेकिन ये बताइये नौ से पाँच नौकरी करने के बाद आप क्या करते हैं. मुझे उम्मीद है कि आप भी अन्य नौकरीशुदा लोगों की तरह ऑफिस से आकर सोफ़े पर बैठ जाते होंगे और, समाचार और टीवी पर अपना अमूल्य समय व्यर्थ कर देते होंगे. आप नौकरी में हैं, और आपकी एक निश्चित आय है इसलिये आपको कभी एक्स्ट्रा पैसे की आवश्यकता महसूस नहीं हुयी होगी. लेकिन एक्स्ट्रा पैसा किसे बुरा लगता है. नौकरी से गुजारा चल सकता है लेकिन शौक पूरा करने के लिये यू नीड समथिंग एक्स्ट्रा. एक ही जिंदगी मिलती है सबको, उसको खुल के जीना चाहिये और खुल के जीने के लिये आपको चाहिये पैसा. आप की पत्नी भी काफी पढ़ी-लिखी और क्वालीफाईड हैं और आप लोग शाम को अपने घर में बैठ के अपना पोटेन्शियल वेस्ट कर रहे हैं. पता नहीं आप लोगों ने कैसेट सुना या बुक पढ़ी की नहीं. लेकिन अब आप सही जगह आ गये हैं. हम लोग आपकी आय बढाने के लिये आपको नेटवर्क मार्केटिंग की दुनिया से इंट्रोड्यूस करने वाले हैं. मुझे ये एहसास होने लगा था कि कम से कम एक बार बुक को पलट के देख लेता, तो आज की स्थिति से बचा जा सकता था. नेटवर्क मार्केटिंग के गुर उसकी टिप्स पर थे. यदि हम एक ऐसी कम्युनिटी बनायें जो अपनी ही कंपनी के उत्पाद ख़रीदे, उपयोग करे और बेचे तो ये विन-विन सिचुएशन होगी. जो आपने ख़रीदा उस पर रिबेट मिलेगा और जो आप बेचेंगे उस पर कमीशन. वो बन्दा वाइट बोर्ड मार्कर उठा कर वाइट बोर्ड की ओर बढ़ गया. फिर बोर्ड पर उसने कुछ न्यूक्लियर फिशन जैसे चित्र बना डाले और उसके माध्यम से अपनी बात को और प्रभावशाली ढंग से रखने का प्रयास करने लगा. आपको बस चेन बनानी है. एक बार चेन बन गयी तो आपको लाख - डेढ़ लाख तो हर महीने घर बैठे मिलने लगेंगे. उसने अपने प्रेसेंटेशन में मेरी वर्तमान आर्थिक परिदृश्य यानि स्थिति, समस्या यानि संकुचित सोच और समाधान यानि नेटवर्क डेवलपमेंट, तीनों की बात की. उसकी वाक्पटुता निसंदेह अनुकरणीय थी. हम दोनों हिप्प्नोटाइज़ से होकर ये तक भूल गये कि भाई साहब ने शाम की चाय पर बुलाया था. इस चक्कर में हम घर की चाय बिना पिये ही नियत समय छ: बजे तक आ गये थे. आठ बजने को था और चाय का ज़िक्र तक नहीं हुआ. एक-एक करके अमावा कम्पनी के ढेर सारे प्रोडक्ट्स उनकी खूबियों का बखान करते हुये डाइनिंग टेबल पर सजा दिये गये.
बाक़ी तीनों एप्रेशियेशन के साथ उसको बोलते हुये सुन रहे थे और बीच-बीच में हमारे चेहरों पर आते-जाते मनोभावों को पढने का प्रयास कर रह थे. मुझे भी ये अन्दाज़ लग चुका था कि अगर जरा भी चूं-चपड़ की तो लेक्चर रात तक चलेगा. और जब अब तक चाय नहीं मिली तो डिनर क्या ख़ाक मिलेगा. मनोभावों को छिपा कर मै बार-बार गुड-गुड, वेरी गुड-वेरी गुड बोल कर उन्हें ये एहसास दिलाने की कोशिश करता रहा कि मुर्गा हलाल होने को सहर्ष तैयार है. वो लोग अपने विचारों से इतने कनविंस थे कि मुझे ये भी एहसास हुआ कि मार्केटिंग करनी हो तो इतना कन्विक्शन और पैशन होना जरूरी है. मै इमैजिन करने लगा लैब से लौट कर वर्मा जी टाई-सूट में अमावा का साबुन हाथ में लिये घर-घर घूम रहे हैं. हर तरफ से पैसा घुसा आ रहा है. घर बड़े-बड़े मँहगे सामानों से इतना भर गया है कि चलने तक की जगह नहीं मिल रही है. मुस्कुराते हुये जब मैंने अफ़र्मेटिव तरीक़े से सर हिलाया, तो थोड़ी देर में चाय भी आ गयी.
मैंने ये बताना जरूरी नहीं समझा कि भैया बेचना-वेचना मेरी फ़ितरत में होता तो जहाँ भी रहता वहाँ बहुत आगे निकल जाता. मुझे पहले से ही अपनी स्मार्टनेस पर डाउट था, इसीलिये शोध में अपना कैरियर बनाने का निर्णय लिया और शोध परीक्षा से पहले कहीं भी बायोडाटा नहीं भेजा. छिहत्तर लोगों के बैच में जब पूछा गया कि आप में से कितने लोग वैज्ञानिक ही बनना चाहते थे, तो सिर्फ़ तीन लोगों ने हाथ उठाया था. उसमें एक हाथ मेरा भी था. बहुत से लोगों ने प्रशासनिक सेवाओं में असफल होने के बाद इस सेवा का चयन किया. कुछ ने रौब और रुतबे की ख़ातिर तहसीलदारी पसंद कर ली. कुछ का इरादा रिटायरमेंट में बाद प्रधानी लड़ने का है. शायद इसीलिये उनके आचार-व्यवहार में वैज्ञानिक वाली सौम्य सहजता का नितान्त अभाव साफ़ दिखता है. यदा-कदा उनके हाव-भाव में प्रशासक की झलक देखने को मिल जाती. मेरा तो हाल ही ग़जब था. ऑफिस वाले हों या घर वाले सबको लगता, ये नार्मल लोगों की तरह क्यों नहीं रह पाता. कोई काम सीधे तरीक़े से क्यों नहीं करता. हर चीज़ में यूँ होता तो क्या होता करता रहता है. तीस साल के शोधार्थी जीवन के बाद ये लगता है कि अमावा हो या शोध, तरक्की के लिये मार्केटिंग और नेटवर्क दोनों स्किल्स का होना आवश्यक है. उस रात मुझे सपना आया कि गुरुदेव चौराहे पर मै टाई-वाई लगाये चीख़-चीख़ के कुछ बेचने का प्रयास कर रहा हूँ - एक हाथ में अमावा का दन्त मंजन है और दूसरे में शोधपत्र.
-वाणभट्ट
बहुत सुन्दर सृजन । इस तरह की परिस्थितियों से आप जैसे लोग गुजरते हैं उनकी हालत भी आप जैसी ही होती है ।
जवाब देंहटाएंवाह !! अति रोचक
जवाब देंहटाएंचर्चा अंक 4652 में इस लेख को शामिल करने के लिये हृदय से धन्यवाद...🙏🙏🙏
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जवाब देंहटाएंआदरणीय बाणभट्ट जी ! प्रणाम !
रचना सामायिक और कटु व्यावहारिकता को व्यंग्य + कहानी के अनूठे रूप में पढ़ कर आनंद भी आया और रिश्तों के व्यवसायी करण पर वितृष्णा भी हुई !
बहुत समीचीन सधी हुई रचना के लिए अभिनन्दन !
जय माता दी ! जय श्री राम !
अमावा हो या शोध, तरक्की के लिये मार्केटिंग और नेटवर्क दोनों स्किल्स का होना आवश्यक है. उस रात मुझे सपना आया कि गुरुदेव चौराहे पर मै टाई-वाई लगाये चीख़-चीख़ के कुछ बेचने का प्रयास कर रहा हूँ - एक हाथ में अमावा का दन्त मंजन है और दूसरे में शोधपत्र. ...............
जवाब देंहटाएंवाह...क्या खूब कही..!
जवाब देंहटाएंआज के समय का कटु सत्य। आज से चार साल पहले मैं भी कुछ आप जैसी परिस्थिति से गुजर चुकी हूं। और मैंने भी यही कहा " भैया बेचना-वेचना मेरी फ़ितरत में होता तो जहाँ भी रहता वहाँ बहुत आगे निकल जाती " आप की लेखन शैली का जवाब नहीं आनन्द आ गया,सादर नमन आपको 🙏
जवाब देंहटाएं👌👏🌹, प्रिय वाणभट्ट, अत्यंत सुंदर प्रस्तुति। आपके सादगी पूर्ण सरल व्यक्तित्व के अनुरूप ही आपकी हर प्रस्तुति की तरह यह प्रस्तुति भी एक आम भारतीय नागरिक के दैनिक जीवन संघर्ष का अति सुंदर, सच्चा चित्रण है। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🎉😊
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