पीएनपीसीटीएम, ये जो टीएम नीचे लिखा दिख रहा है, दरअसल उसे ऊपर होना चाहिये था, सुपरस्क्रिप्ट की तरह. लेकिन ब्लॉगपोस्ट का सॉफ्टवेयर शायद सपोर्ट नहीं करता. इसलिये लोवर फॉण्ट में नीचे लिख दिया है. कृपया इसे सुपरस्क्रिप्ट समझ कर पढ़ें. ये टीएम कुछ और नहीं ट्रेडमार्क का द्योतक है. यानि कि ये जो पीएनपीसी है, इस पर किसी और का कॉपीराईट होना चाहिये, लेकिन मुझे किससे परमिशन लेनी चाहिये ये पता नहीं चल रहा है.
आजकल जमाना बहुत ख़राब हो गया है, जैसा कि सब बुजुर्ग कहते चले आ रहे हैं, तो अब जब हमने भी बुजुर्गियत के पायदान पर कदम रख दिया है तो हमारा भी हक़ बनता है कि हम भी ये कह सकें कि जमाना वाकई ख़राब हो गया है. नवजवान अभी हमसे इत्तेफ़ाक न रखना चाहें तो न रखें, लेकिन अपने बुजुर्ग होने तक ये इंतज़ार कर सकते हैं. अब चूँकि वाणभट्ट, अपने गुरु बाणभट्ट के आदर्शों पर चलते हुये, सत्यवादिता और अचौर्य के सिद्धांत का पालन करने को विवश है, तो टीएम (ट्रेडमार्क) या गोले में आर (रजिस्टर्ड) या सी (कॉपीराइट), लगा कर, धड़ल्ले से उनका प्रयोग कर लेता है. अब कोई चाहे भी तो उस पर बौद्धिक सम्पदा की चोरी का इल्ज़ाम नहीं लगा सकता.
जमाना तो इतना ख़राब है कि यदि आप किसी से कहते हैं कि मै झूठ नहीं बोलता, चोरी नहीं करता, और ईमानदार हूँ, तो वो बुरा मान जाता है. पूछता है कि तुम कहना क्या चाहते हो. तो वैधानिक चेतावनी देनी पड़ती है कि भाई मै अपनी बात कर रहा हूँ. इसका तुमसे कुछ लेना-देना नहीं है. लेकिन भाई इतनी सी बात पर नाराज़ हो जाता है और सारी दुनिया में बोलता घूमता है कि वाणभट्ट बड़ा हरिश्चन्द्र की औलाद बना फिरता है. अब उसे कोई क्या समझाये कि चरित्र और संस्कार पिछले जन्मों के कर्मों से मिलते हैं. हाँ, यदि कोई चाहे तो अगले जन्म में अच्छे चरित्र और संस्कार के लिये इसी जन्म में अभी से प्रयास शुरू कर सकता है. लेकिन दुनिया में चरित्रवान-संस्कारवान लोगों के जीवन का हश्र देख कर शायद ही कोई इस दिशा में प्रयास करना चाहे. जिसे सच बोलने की बीमारी लग गयी घर-परिवार, देश-दुनिया को उसका दुश्मन बनने में देर नहीं लगती. सबको लगता है कि ये मिसफिट आदमी है, पहले समाज से इसे बाहर करो. ये तो वर्षों बाद पता चलता है कि ये तो सुकरात, अरस्तु और प्लूटो हो सकता था. ये जमाना ही था, जिसने तब उनका जीना मुहाल किया हुआ था. और इतने साल बाद अगर ये फिर धरा पर अवतरित हो जायें तो क्या जमाना इनकी पूजा करेगा, नहीं, वो फिर इन्हें जहर देगा, सूली पर चढ़ायेगा. और वे मुस्कुरा कर कहेंगे - प्रभु इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं.
जालिम ज़माने से पिटने-पिटाने के बाद, जब आदमी को ये एहसास होने लगता है कि इस दुनिया-महफ़िल का मजा लेने के लिये भगवान ने अलग प्रकृति के लोग बनाये हैं, तो उसकी खोज शुरू होती है कि भगवान ने उसे किस लिये बनाया है. जैसे आज आपको अन्जाने देश-दुनिया में घूमने के लिये जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) की आवश्यकता होती है, उसी तरह भव-सागर में बिना डूबे, उसे पार करने के लिये भी आपको जीपीएस (गुरु पोजिशनिंग सिस्टमटीएम) की आवश्यकता होगी. ये सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी का ट्रेडमार्क कोटेशन है. वैसे भी मेरा एक मुफ्त का मशविरा है कि जिस देश में कानून-व्यवस्था-परिवार-समाज में विश्वास की कमी हो जाये, वहाँ सबको किसी न किसी भगवान-बाबा-गुरु को पकड़ के रखना चाहिये. क्योंकि यहाँ जीते जी किसी को कन्धा देने का रिवाज नहीं है. कानून-व्यवस्था पर पैसे और ताकत वालों का कब्ज़ा है. इसलिये आम आदमी के लिये बाबा से बढ़िया कोई विकल्प नहीं है. और किसी विकसित या विकासशील देश में इतने सूफी-सन्त-पीर-फ़क़ीर-पैगम्बर हुये हों तो बताओ. इसी खोज में किसी ने मुझे ओशो के चेले के चेले के ग्रूप में जोड़ दिया. ओशो स्वयं अरस्तु-सुकरात से कहीं ज्यादा पहुँचे हुये सिद्ध थे, लेकिन उनके जीते जी कोई उनको नहीं पहचान सका. वो तो भला हो कि वो अमरीका चले गये, वर्ना अपने हीरों को तो हम कोयला बना के मानते हैं. मुझे ये तब पता चला कि जब उनके चेले के चेले को सुना. जब चेला इतना सिद्ध है, तो गुरु की थाह कहाँ होगी. ये पीएनपीसी उन्हीं का ट्रेडमार्क है. अब मुझे ये नहीं पता कि ये उनकी ओरिजिनल खोज है या उन्होंने अपने गुरु उद्घृत किया है. अब आप कहेंगे कि ट्रेडमार्क क्यों, कॉपीराइट क्यों नहीं, तो बाबागिरी से प्रॉफिटेबल कोई और ट्रेड या बिजनेस हो तो बताइये. हर्र न फिटकरी, रंग एकदमै चोखा.
यदि आप सन्त टाइप के हैं, तो माया-मोह छोड़ के दुनिया से निकल लीजिये और सन्त हो जाइये. अगर दुनिया में रहते हुये दुनिया को समझ आ गया कि ये सन्त टाइप का व्यक्ति है तो यही दुनिया आपका जीना हराम कर देगी. दुनिया एक फरमा बना के चलती है, जो उसमें फिट बस वो ही फिट. दुनिया में रहीम दास जी को गलती से लगने लगा था कि-
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग,
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग.
अर्थात्, यदि व्यक्ति उत्तम प्रकृति का है तो उस पर कुसंगति का प्रभाव नहीं पड़ता. जैसे चंदन पर विष का प्रभाव नहीं पड़ता जबकि उसके ऊपर कितने काले नाग लिपटे रहते हैं.
जल्द ही रहीम दास जी को अपनी गलती का एहसास हो गया होगा, कि आदमी अपनी मूल प्रकृति से बाज नहीं आने वाला. उन्होंने भूल सुधार करते हुये फिर लिखा-
कह रहीम कैसे निभे, बेर केर को संग,
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग.
अर्थात्, कंटीले बेर और मुलायम केले का संग भला कैसे निभ सकता है. जब बेर का पेड़ मस्ती में झूमता है, तो बगल के केले के पेड़ को झलनी कर देता है.
अब भी यदि आपको ये लगता है कि दुर्जनता का अन्त सज्जनता से हो सकता है तो आप अपने को ईसा और गाँधी की श्रेणी में रख सकते हैं.
अधिकांश सज्जनों की दुविधा का कारण भी यही है, वो सज्जनता त्यागना नहीं चाहते और दुनिया के हिसाब से वो अपने को फिट नहीं कर पाते. दुनिया उन्हें सुधारने पर आमादा रहती है. इस पूरी प्रक्रिया में सबसे बुरी बात ये है कि आप तो जानते हैं कि आप सज्जन हो, आपके दुश्मन भी जानते हैं कि आप सज्जन हैं. वो आपकी बेल्ट के नीचे भी वार कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने किसी प्रकार की नैतिकता-संस्कार की कसम तो खायी नहीं है. वो देश-समाज के फिट लोग हैं और सबने मान भी रखा है कि 'समरथ को नहीं दोष गोसाईं'. जब भी उन्हें काम पड़ता है, वो मुँह उठाये आपके पास पहुँच जाते हैं. और खुदा न खास्ता आपका कोई काम पड़ गया तो वो अपनी औकात बताने से नहीं चूकते. आप सज्जन बने रहिये, वहाँ तक तो ठीक है, लेकिन इसका ढिंढोरा कभी न पीटिये.
जब वो कमरे में आ कर गिरा तो, सज्जन, हाँ यही नाम था उसका, को मालूम था कि आज बॉस ने इसकी थ्रैशिंग की होगी और इसे कोई कन्धा नहीं मिल रहा होगा, इसलिये यहाँ बियाबान में मिलने चला आया है. आने वाले को मालूम था कि सज्जन उसको रुमाल भी देगा और कन्धा भी. उसकी भड़ास भी निकल जाएगी और ये किसी को कुछ बतायेगा भी नहीं. इतना विश्वास बनाने में लोगों का जीवन निकल जाता है. लोग मान लेते हैं कि सज्जन ने कहा होगा तो सच ही कहा होगा और सज्जन को भी इस प्रतिष्ठा को जीना पड़ता. एक भी असत्य उसके जीवन भर के अर्जित पुण्य को मटियामेट कर सकता है. उसने आते ही अपनी व्यथा-कथा शुरू कर दी. सज्जन ने पानी दिया, तो बॉस को पानी पी-पी कर कोसने लगा, और जब चाय दी, तो चाय पी-पी कर. किसी की बुराई बतियाने में जो रस है, उसका कोई सानी नहीं है. वैसे इस रस की महिमा का बखान परसाई जी बहुत पहले कर गये थे - रस का नाम था - निन्दारस. सज्जन तो, सज्जन था लेकिन इस रस का मौका हाथ से जाने न देता. इसके माध्यम से उसे बहुत सी वो बातें पता चल जाती थीं, जो अक्सर सज्जनता के कारण किसी से पूछने में वो सन्कोच करता था.
ये सीसीटीवी कैमरे क्या लगे, कौन-कब-कहाँ गया या जा रहा है, ये कोई छिपा नहीं सकता. बॉस की बुराई-बुराई खेलते, अभी कुछ ही देर हुयी थी कि सज्जन के इण्टरकॉम पर बॉस का फोन आ गया - तुरन्त इधर आइये. सज्जन को लगा हो न हो कोई अर्जेंट काम आ पड़ा हो. रुमाल पकड़ा कर, उसने जल्दी से बॉस का रुख किया. बॉस अपने तख़्त-ए-ताउस पर विद्यमान था. उसका रुख देख के लग गया कि आज बॉस का रुख ठीक नहीं है. उसने घुसते ही पूछा - आपके पास कौन बैठा था. उसे मालूम था कि सज्जन झूठ नहीं बोलेगा. सज्जन भी इतनी सी बात के लिये भला क्यों झूठ बोलता. बता दिया. बॉस को होना ही था, आपे से बाहर. आप लोग क्या बातें करते हैं, मुझे सब पता है. आप लोग बैठ कर मेरी बुराई करते हैं. बताइये करते हैं ना. अब सज्जन झूठ तो बोलेगा नहीं. बता दिया. बॉस फट गया. मै देख लूँगा तुमको भी. डिपार्टमेंट का माहौल ख़राब कर रखा है. सबको यहाँ मै सुधारने में लगा हूँ और तुम उन्हें सपोर्ट करने में लगे हो. सज्जन ने कहा - सर मानवता की बात है. आदमी परेशान होगा तो कहीं तो उदगार निकालेगा. आप बॉस हैं और हमेशा रहेंगे. अगले का कुछ बोझ कम हो जायेगा, फिर से मन लगा के काम करेगा. हम लोगों की चर्चा सिर्फ विभाग तक सीमित नहीं रहती हम तो पॉलिसीज़ के लिये प्रधानमंत्री और मंत्री को भी नहीं छोड़ते. धोनी और तेंदुलकर को खेलना आता है या नहीं आता, ये भी हम बतियाते हैं. दरअसल हम लोग जिस विभाग में हैं वहाँ बोने और काटने के बीच में पर्याप्त समय है, तो हम पंचायत-पॉलिटिक्स नहीं करेंगे तो और कौन करेगा. आप बताइये कि आप लोगों को जब समय काटना होता है, तो क्या और कैसी बातें करते हैं. आपका स्टैण्डर्ड कोई हमसे छुपा है क्या. बुराई बतियाना कोई बुरी बात नहीं है. ये बात आप समझ लीजिये. बुराई भी उसी की होती है जो हमसे आगे होता है. आप हमसे आगे हैं. वैसे भी परसाई जी के अनुसार दुनिया के सारे रस एक तरफ और निन्दारस एक तरफ. निन्दारस बुराई नहीं, टॉनिक है. भड़ास निकालिये और पुन: रिचार्ज हो कर काम पर लग जाइये. आपको भी कभी अपनी भड़ास निकालनी हो तो मेरे पास आ जाया कीजिये. गारेंटी है कमरे की बात बाहर तक नहीं जायेगी.
गुरू जी के चेले के चेले ने ये ही बताया है कि व्यक्ति को बचना चाहिये - पीएनपीसी यानि परनिन्दा-परचर्चा से. लेकिन सज्जन से सज्जन व्यक्ति सज्जनता तो छोड़ सकता है लेकिन पीएनपीसी नहीं. यदि सज्जन ने ये भी छोड़ दिया तो उसे डर है कि वो आदमी ही नहीं रह जायेगा. देवता उसे सशरीर स्वर्ग चलने के लिये लेने ना आ जायें.
-वाणभट्ट