बुधवार, 15 जून 2022

कुत्ते

आपको नहीं लगता कि आजकल सड़क पर कुत्ते बहुत बढ़ गये हैं. 

किसी गली-मोहल्ले से निकल जाओ तो लगता है कि शहरों में इनकी वाइल्ड लाइफ़ सेन्चुरी बन गयी है. क्या मजाल कि कोई उसमें अनधिकृत प्रवेश कर जाये. यदि आप अपने चौपहिया में सुरक्षित हैं तो आप इनकी चहेटने की असफल चेष्टा पर मुस्कुरा सकते हैं. गाड़ियों का पीछा करने के चक्कर में ये भूल जाते हैं कि गाड़ी में ब्रेक होता है, लेकिन ये अपना मोमेंटम ब्रेक नहीं कर पाते. यही कारण है कि आये दिन हर सड़क पर एक न एक कुत्ता मरा पड़ा मिलता है. और शायद इसीलिये कुत्ते की मौत का मुहावरा भी बना होगा. लेकिन यदि आप दुपहिया पर हैं, तो आपकी जान के लाले भी पड़ सकते हैं. आप सामने देखें या कुत्ते को, ये समझ नहीं आता. या तो आप अपनी स्पीड बढ़ा के उस इलाके से निकल सकते हैं या डर का सामना करके बच सकते हैं. कुत्तों से उतना डर नहीं लगता जितना उनके काटने के बाद के उपचार से. कुत्तों के डर से बचने के लिये कुत्तों की सायकोलोजी को समझना ज़रूरी है. ये तभी तक डराते जब तक आप इनसे डरते हैं. जैसे ही आप पलट के भौंकते हैं (धत-धत) या बाइक खड़ी करके उसे घूरने लगते हैं, तो उसे शीघ्र ये एहसास हो जाता है कि उसका साबका किसी उनसे भी बड़े कुत्ते से पड़ा है. और वो दुम से अपने शरीर के सबसे नाजुक पार्ट को कवर कर पतली गली से निकल लेता है. सबसे बुरा हाल तो पैदल चलने वालों का होता है.

गली के कुत्तों का सबसे फेवरेट पास टाइम है, पालतू कुत्तों के पीछे भौंकना. वैसे कुत्तों को दिशा-मैदान करने के उद्देश्य से निकले लोगों और उनके कुत्तों की मानसिकता में अधिक अन्तर नहीं होता. इन कुत्तों को भी मालिक की तरह फ़ारिग होने के लिये साफ़-सुथरे स्थान की आवश्यकता होती है. लेकिन ये कभी अपने गेट के सामने खड़े हो जायें, ऐसा हो नहीं सकता. इस कृत्य के लिये ये मोहल्ले का वो इलाका सेलेक्ट करते जहाँ रहने वालों को ये पड़ोसी की संज्ञा से सम्बोधित न कर सकें. ये कुत्ता मालिक जब प्रातः और सायं अपने कुत्ते के साथ निकलते हैं तो ये अंदाज़ लगाना मुश्किल होता है कि कौन किसको टहला रहा है. कुत्ता चलता है तो ये चलते हैं, कुत्ता रुकता है तो ये रुक जाते हैं. फिर ये नहीं देखते कि वो सड़क के बीचों बीच खड़े हैं या फुटपाथ पर या किसी के घर के गेट पर. इस मामले में स्ट्रीट डॉग्स बहुत सेंसिटिव होते हैं. इलाके के खम्भों से भले ही अपनी टेरिटरी डिफाइन करते हों लेकिन कभी भी बीच सड़क या किसी के गेट पर अपने अपशिष्ट नहीं छोड़ते.  

लेखक को ये आभास है कि कुत्ते को कुत्ता कहने पर बहुत से कुत्ता मालिक उसके नाम के फ़तवे भी निकलवा सकते हैं. शहर-शहर डॉग लवर्स उसके पुतले भी फूँक सकते हैं. लेकिन बहुसन्ख्यक डॉग हेटर्स के कुण्ठित विचारों को बाहर निकालने के उदेश्य से इस लेख का लिखा जाना अतिआवश्यक है. वैसे भी पुनर्जन्म में विश्वास रखने वाले देश में कुत्ता होना कोई गलत बात नहीं है. जब जातक की जन्म कुण्डली बनती है तो नक्षत्रों के अनुसार योनि का ज़िक्र भी होता है. और अक्सर ये बात मनुष्यों के आचार-व्यवहार में परिलक्षित भी होती है. जिस प्रकार सर्प योनि वाला कभी भी डस सकता है,  मूषक योनि वाला चालाकी कर सकता है, उसी प्रकार श्वान योनि वाला कभी भी पीछे से काट सकता है. योनि पर हमारा-आपका कोई कंट्रोल नहीं है, ये सब गृह-नक्षत्रों का खेल है. कुछ कुत्ते भाग्य के तेज होते हैं. वो ऐसे घरों में पहुँच जाते हैं जहाँ लोग उन्हें अपने बेटी या बेटा की तरह लाड़-प्यार से पालते हैं. आपके लिये आपका कुत्ता घर का सदस्य हो सकता है लेकिन दूसरे भी उसे अपना भतीजा या भांजा मान लें, ये उम्मीद कुछ ज़्यादा नहीं होगी.  

एक समय था जब कुत्ते शौक के लिये पाले जाते थे, बड़े मँहगे-मँहगे. फिर वो दौर आया, जब सेक्योरिटी के लिये लोगों ने सस्ते कुत्ते पालने शुरू कर दिये. कुछ लोगों ने तो देसी को ही पट्टा पहना कर अपना लिया. वो भी पालतू बनने के बाद ख़ुद को अपनी बिरादरी से एलीट समझने लगता. एक दौर ऐसा भी आया जब लोग सिर्फ़ बदला लेने के लिये कुत्ता पालने लगे. तुमने मेरे गेट पर कुत्ते का मल विसर्जन कराया इसलिये मै तुम्हारे गेट पर भी वही करवाऊँगा. ऐसे कुत्ता प्रेमियों की संख्या में वृद्धि देखने को मिल रही है. आदमी को बात करने के लिये आदमी नहीं मिल रहा है किन्तु कुत्ते के बहाने हफ्ते में दो-चार दिन किसी न किसी से गुफ़्तगू (तूतू-मैमै) हो ही जाती है. इसीलिये कुत्ता पालक रोज नये-नये इलाकों में भ्रमण करना-कराना पसन्द करते हैं ताकि नये-नये लोगों से परिचय हो सके.  

अब एक नयी ब्रीड आयी है जो कुत्ता पालने की जिम्मेदारी से मुक्त रहना चाहती है. कहीं आना-जाना हो तो पहले कुत्ते साहब का इंतजाम करो. कार से घूमने वाले अक्सर कुत्तों के साथ ही नाते-रिश्तेदारों के यहाँ पहुँच जाते हैं. जिसने पेडिग्री का ख़र्च बचाने के लिये कुत्ता नहीं पाला, उसे भी मेहमान के कुत्ते के भोजन की समुचित व्यवस्था करनी पड़ती. हिन्दुस्तान में कभी भी जरुरत से ज़्यादा समझदार लोगों का टोटा नहीं रहा. और इसीलिये हमारा इतिहास गद्दारी और ग़ुलामी की दास्तानों से भरा पड़ा है. कमोबेश यही स्थिति आज भी देखने को मिल जाती है. जब सरकार विरोध करते-करते लोग देशद्रोह की सीमा लाँघ जाते हैं. ये समझदार लोग कुत्ता पालने की जहमत नहीं उठाते लेकिन कुत्ते की उपस्थिति से होने वाले सारे फ़ायदे लेना चाहते हैं. फ़ायदा नम्बर एक - घर की सुरक्षा और फ़ायदा नम्बर दो - बचे हुये भोजन को स्वारथ करना. इसे ही कहते हैं बिना हर्र फिटकरी के चोखा रंग. कुत्ते भी यदि उतने ही समझदार होते तो कहते पहले पट्टा डालो, फिर चाकरी करवाओ. बेचारे बासी भोजन पर पूरी निष्ठा के साथ सेवा को तत्पर हो जाते हैं. और फिर ऐसे कुत्ता प्रेमियों के लिये कुत्तों की जनसंख्या से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. उन्हें तो दो रोटी के बहत्तर टुकड़े करने हैं, उसमें चार खायें या दस. लेकिन मिलती है दसों की वफ़ादारी लगभग फ्री में. इससे बढ़िया कोई कुता पालने का मॉडल नहीं हो सकता. पड़ोसी ने यदि गलती से पंगा ले लिया तो आपके बस 'शू' करने की देर है. 

सूरज जब रात्रि के भोजन के बाद अपने ढाई साल के बच्चे को लेकर टहलने के लिये निकला तो गली में ऐसे ही फ्री के चार-पाँच वफ़ादार कुत्तों ने झुण्ड बना कर उन्हें घेर लिया और जोरों से भौंकने लगे. एक कुत्ता तो बच्चे के ऊपर झपट ही पड़ा. सूरज कुत्तों की सायकोलोजी अनभिज्ञ न था. वो झुक कर पत्थर उठाने की एक्टिंग करने लगा. वो जानता था की सड़क पर कोई पत्थर नहीं है, लेकिन वो ये भी जानता था कि कुत्ते इतने समझदार नहीं हैं कि इस बात को समझ सकें. कुत्ते थोड़े सहम के ठिठक गये. इतने में एक मकान की छत से एक पत्थर सनसनाता हुआ नीचे आया. सूरज की जान में जान आयी कि इस सन्नाटी सड़क पर भी ऊपर वाले ने उसकी रक्षा के लिये किसी देव पुरुष को भेज दिया. उसने कृतज्ञता व्यक्त करने के उद्देश्य से ऊपर देखा तो छत पर एक भरा-पूरा परिवार खड़ा था. ऊपर से आवाज़ आयी - तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी हमारे कुत्तों को पत्थर मारने की. सूरज ने प्रतिवाद किया - तुमने पाले हैं तो घर के अन्दर रखो, बाहर क्यों खुला छोड़ रखा है. आते-जाते किसी को भी काट सकते हैं. इतना सुनते ही ऊपर वाले चीखने-चिल्लाने लग गये. सड़क के कुत्ते शांत हो गये. जब मोर्चा बिरादरी वालों ने खोल ही दिया है तो उनकी भूमिका समाप्त हो गयी. दोनों तरफ से वाक् युद्ध प्रारम्भ हो गया. सूरज ने थोड़ी देर बहसबाजी कर अपना पक्ष रखने का प्रयास किया लेकिन दूसरे पक्ष का शायद ये रोज का शगल था. सूरज को ये भी मालूम था कि कुत्तों के मुँह नहीं लगना चाहिये. इसलिये वो उस परिवार को भौंकता हुआ छोड़ के दूसरी गली में मुड़ गया.

कभी-कभी लगता है कि सड़क ही नहीं समाज में भी कुत्ते बहुत बढ़ गये हैं.  

- वाणभट्ट 

पुनश्च: यह लेख कुत्ता प्रेमियों की भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है. इस लेख का मूल उद्देश्य कुत्तों में मानवीय मूल्यों की स्थापना में निहित है.

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